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सिय  : स्त्री० [सं० सीता] सीता। जानकी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सियना  : सं० [सं० सर्जन] उत्पन्न करना। रचना। स०=सीना (सिलाई करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० [हिं० सीना] सीया जाना।
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सियरा  : वि० [सं० शीतल, प्रा० सीअड़] [स्त्री० सियरी, भाव० सियराई] १. ठंडा। शीतल। २. अपरिपक्व। कच्चा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सियराई  : स्त्री० [हिं० सियरा+ई (प्रत्य०)] १. शीतलता। ठंडक। २. कच्चापन। कचाई।
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सियह  : वि० [फा०]=सियाह (काला)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिया  : स्त्री०=सीता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सियाना  : स०=सिलाना। वि०=सयाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सियापा  : पुं०=स्यापा।
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सियार  : पुं० [सं० श्रंगाल, प्रा० सिआड़] [स्त्री० सियारी० सियारिन] गीदड़।
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सियार लाठी  : पुं० [हिं०] अमलतास।
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सियारा  : पुं० [सं० सीता, प्रा० सरिया+रा] एक प्रकार का फावड़ा जिससे जोती हुई जमीन समतल की जाती है। पुं०=सियाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=सियरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सियारी  : स्त्री० [हिं० सियार] गीदड़ की मादा।
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सियाल  : पुं० [सं० श्रृंगाल] गीदड़।
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सियाला  : पुं० [सं० शीतकाल] जाड़े का मौसम। शीत काल।
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सियाला पोका  : पुं० [हिं० सीप+पोका=कीड़ा] एक प्रकार का बहुत छोटा कीड़ा जो सफेद चिपटे कोश के अंदर रहता है, और पुरानी लोनी मिट्टी वाली दीवारों पर मिलता है। लोना-पोका।
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सियाली  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का बिदारन कंद। वि० [सं० शीतकाल, हिं सियाला] जाड़े में तैयार होने वाली फसल खरीफ।
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सियावड़  : पुं०=सियावड़ी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सियावड़ी  : स्त्री० [हिं० सीता+वटी] १. अनाज का वह हिस्सा जो फसल कटने पर खलिहान में से साधुओं के निमित्त निकाला जाता है। २. बिजुखा। (दे०)
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सियासत  : स्त्री० [अ०] [वि० सियासती] १. देश का शासन प्रबन्ध तथा व्यवस्था। २. राजनीति। स्त्री०=साँसत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सियासती  : वि० [अ०] राजनीतिक।
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सियाह  : वि० [फा० स्याह] कृष्ण वर्ण का काला। २. दूषित। बुरा। जैसा—सियाह-बख्त=अभागा। ३. ले० ‘स्याह’।
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सियाह कलम  : स्त्री० दे० स्याहकलम। (चित्र-कला)
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सियाह-नवीस  : पुं० [फा०] वह कर्मचारी जो सियाहा लिखता हो।
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सियाहगोश  : वि० पुं०=स्याह-गोश।
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सियाहत  : स्त्री० [अ०] १. सैर करने की क्रिया या भाव। सैर। २. देश-देशांतरों का पर्यटन या भ्रमण।
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सियाहपोश  : पुं०=स्याहपोश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सियाहा  : पुं० [फा० स्याहः] १. वह पंजी या बही जिसमें नित्य के आय लिखा जाता है। २. मुगल-शासन में वह पंजी जिसमें सैनिकों की उपस्थित लिखी जाती थी। ३. आज-कल वह पंजी या रजिस्टर जिसमें सरकार को प्राप्त होने वाली मालगुजारी या लगान का हिसाब लिखा जाता है।
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सियाही  : स्त्री०=स्याही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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