शब्द का अर्थ
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					सावर					 :
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					पुं० [सं० सवर+अण्] १. लोभ। २. अपराध। दोष। ३. पाप। पुं० १. =शाबर। २. =साबर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सावरणी					 :
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					स्त्री० [सं० सावरण—ङीप्] वह बुहारी जो जैन यति अपने साथ रखते हैं।				 | 
			
			
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					सावरिका					 :
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					स्त्री० [सं० सावर+कन्-टाप्,इत्व] एक प्रकार की जोंक जो जहरीली नहीं होती।				 | 
			
			
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					सावर्ण					 :
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					वि० [सं० सवर्ण+अण्] जो एक जाति या वर्ण के हों। सवर्ण। पुं० दे० सावर्णि।				 | 
			
			
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					सावर्णक					 :
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					पुं० [सं० सावर्ण+कन्]=सावर्णि।				 | 
			
			
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					सावर्णि					 :
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					पुं० [सं सवर्णा+इञ्] सूर्य के पुत्र आठवें मनु। २. उक्त मनु का मन्वन्तर।				 | 
			
			
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					सावर्णिक					 :
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					वि० [सं० सावर्णि+कन्] जिनका संबंध एक ही जाति या वर्ण से हो।				 | 
			
			
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					सावर्ण्य					 :
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					पुं० [सं० सवर्ण+ष्यञ्] सवर्ण होने की अवस्था, गुण या भाव।				 | 
			
			
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