शब्द का अर्थ
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					सरस					 :
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					वि० [सं०] [भाव० सरसता] १. रस अर्थात् जल या किसी अन्य द्रव-पदार्थ से युक्त। २. किसी की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक अच्छा। ३. हरा और ताजा। ४. (रचना) जो भावमयी हो तथा जिसमें पाठक के मन के कोमल भाव जगाने की शक्ति हो। ५. रसिक। सहृदय। ६. सुन्दर। मनोहर। पुं० छप्पय छंद के ३५वें भेद का नाम जिसमें ३६ गुरु, ८॰ लघु, कुल ११६ वर्ण या १५२ मात्राएँ होती हैं। पुं० [सं० सरः] [स्त्री० अल्पा० सरसी] तालाब। जलाशय।				 | 
			
			
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					सरसई					 :
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					स्त्री० [हिं० सरसों] फल के छोटे अंकुर या दाने जो पहले दिखाई पड़ते हैं। जैसे—आम की सरसई। स्त्री० १.=सरस्वती (देवी और नदी)। २.=सरसता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरसता					 :
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					स्त्री० [सं०] १. सरस होने की अवस्था, गुण या भाव। २. रचना आदि का वह गुण जिसमें वह बहुत ही भावमयी और प्रिय लगती है। ३. व्यक्ति में होनेवाली रस ग्रहण करने की शक्ति। रसिकता। ४. मधुरता।				 | 
			
			
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					सरसती					 :
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					स्त्री०=सरस्वती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरसना					 :
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					अ० [सं० सरस] १. हरा होना। पनपना। २. उन्मत होना। ३. अधिक होना। बढ़ना। ४. शोभित होना। सोहना। ५. रसपूर्ण होना। ६. बहुत अधिक कोमल या सरल भाव से युक्त होना। उदा०—सब देवनि सादर प्रनाम कर अति सुख सरसे।—रत्नाकर। ७. (आशय, कार्य आदि) पूरा होना। उदा०—कहि कबीर मन सरसी काज।—कबीर।				 | 
			
			
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					सरसराना					 :
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					अ० [अनु० सर-सर] १. सर-सर की ध्वनि होना। जैसे—वायु का सरसराना, साँप का चलने में सरसराना। २. जल्दी-जल्दी काम करना। स० सर-सर शब्द उत्पन्न करना।				 | 
			
			
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					सरसराहट					 :
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					स्त्री० [हिं० सर-सर+आहट (प्रत्य०)] १. वायु आदि चलने या साँप आदि के रेंगने से उत्पन्न ध्वनि। २. शरीर के किसी अंग में होनेवाली सुरसुराहट।				 | 
			
			
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					सरसरी					 :
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					वि० [फा० सरासरी] १. जमकर या अच्छी तरह नहीं, बल्कि यों ही और जल्दी में होनेवाला। जैसे—सरसरी नजर से देखना। २. चलते ढंग से या मोटे तौर पर होनेवाला। (समरी) जैसे—सरसरी प्रक्रिया। (समरी प्रोसिडिंग); सरसरी व्यवहार दर्शन (समरी ट्रायल)।				 | 
			
			
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					सरसाई					 :
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					स्त्री० [हिं० सरसना+आई] सरसने की अवस्था या भाव। शोभा। सुहावनापन। स्त्री०=सरसता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरसाना					 :
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					स० [हिं० सरसना का स०] सरसने में प्रवृत्त करना। दे० ‘सरसना’। अ०=सरसना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरसाम					 :
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					पुं० [फा०] सन्निपात या त्रिदोष नामक रोग।				 | 
			
			
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					सरसार					 :
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					वि०=सरशार (मग्न)।				 | 
			
			
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					सरसिका					 :
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					स्त्री० [सं०] १. छोटी सरसी। तलैया। २. बावली। ३. हिंगपुत्री।				 | 
			
			
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					सरसिज					 :
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					वि० [सं० सरसि√जन् (उत्पन्न करना)+ड] जो ताल में होता हो। पुं० कमल।				 | 
			
			
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					सरसिज-योनि					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा।				 | 
			
			
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					सरसिरुह					 :
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					वि०, पुं०=सरसिज।				 | 
			
			
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					सरसी					 :
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					स्त्री० [सं०] १. छोटा सरोवर या जलाशय। २. बावली। ३. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २७ मात्राएँ (१६वीं मात्रा पर यति) और अंत में गुरु और लघु होते हैं। इसे सुमंदर भी कहते हैं। होली के दिनों में गाया जानेवाला कबीर प्रायः इसी छंद में होता है। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)स्त्री० [हिं० सरस] वह जमीन जिसमें सरसता या नमी हो।				 | 
			
			
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					सरसीक					 :
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					पुं० [सं० सरसी(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)कै (शब्द करना)+क] सारस पक्षी।				 | 
			
			
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					सरसीरुह					 :
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					पुं० [सं०] १. कमल। २. संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।				 | 
			
			
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					सरसुति					 :
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					स्त्री०=सरस्वती। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरसेटना					 :
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					स० [अनु] किसी को दबाने के लिए खरी-खोटी सुनाना। फटकारना।				 | 
			
			
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					सरसों					 :
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					स्त्री० [सं० सर्षम] १. एक प्रसिद्ध फसल जिसकी खेती होती है। इसमें पीले-पीले रंग के फूल और काले रंग के छोटे-छोटे दाने लगते हैं। मुहावरा—(किसी की) आँखों में सरसों फूलना=अभिमान=प्रेम आदि के कारण सब जगह हरा-भरा दिखाई पड़ना। २. उक्त पौधे के बीज जिन्हें पेर कर कडुआ तेल निकाला जाता है।				 | 
			
			
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					सरसौहाँ					 :
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					वि० [हि० सरसना+औहाँ (प्रत्य)] १. सरस। २. मधुर। ३. प्रिय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरस्वती					 :
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					स्त्री० [सं०] [वि० सारस्वत] १. भारतीय पुराणों में, विद्या और वाणी की अधिष्ठाती देवी जिनका वाहन हंस कहा गया है, और जिनके एक हाथ में पुस्तक दिखाई जाती है। वाग्देवी। भारती। शारदा। २. विद्या। इल्म। ३. पंजाब की एक प्राचीन नदी जिसका सूक्ष्म अंश अब भी कुरुक्षेत्र के पास वर्तमान है। ४. हठयोग में सुषुम्मना नाड़ी। ५. संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। ६. उत्तर भारतीय संगीत में एक प्रकार की संकर रागिनी। ७. सोम लता। ८. ब्राह्मी बूटी। ९. मालकंगनी। १॰. गौ। ११. एक प्रकार का छंद या वृत्त।				 | 
			
			
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					सरस्वती-कंठाभरण					 :
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					पुं० [सं०] १. ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक। २. धार के परमार वंशी राजा भोज के द्वारा स्थापित की हुई एक प्रसिद्ध प्राचीन पाठशाला।				 | 
			
			
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					सरस्वती-पूजा					 :
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					स्त्री० [सं०] १. सरस्वती की की जानेवाली पूजा। २. वसंत पंचमी जिस दिन सरस्वती की पूजा की जाती है। ३. उक्त अवसर पर होनेवाला उत्सव।				 | 
			
			
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					सरस्वान् (स्वत्)					 :
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					वि० [सं० सरस्वत-नुम्-दीर्घ, नलोप] [स्त्री० सरस्वती] १. जलाशय संबंधी। २. रसीला। ३. स्वादिष्ट। ४. सुन्दर। ५. भावुक। पुं० १. समुद्र। २. नद। ३. भैसा।				 | 
			
			
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