शब्द का अर्थ
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					षट्					 :
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					वि० [सं०√ सो+क्विप्+सु] जो गिनती में पाँच से एक अधिक हो। छः। पुं० १. छः का सूचक अंक या संख्या। २. संगीत में षाड़व जाति का एक राग जो सबेरे के समय गाया जाता है। ३. कुछ लोगों के मत से यह असावरी, टोड़ी, भैरवी आदि छः रागिनियों के योग से बना हुआ संकर राग है।				 | 
			
			
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					षट्-कर्म					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] १. शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों के ये छः कर्म-यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रतिग्रह। २. स्मृतियों के अनुसार ये छः कर्म जिनके द्वारा आपातकाल में ब्राह्मण अपना निर्वाह कर सकते हैं-उछवृत्ति, दान लेका, भिक्षा, कृषि, वाणिज्य और महाजनी (लेन-देन)। ३. तंत्र-शास्त्र के अनुसार मारण, मोहन (या वशीकरण) उच्चारण, स्तंभन, विदूषण और शांति के छः कर्म। ४. योगशास्त्र में, धौति, वस्ति, नेती, नौलिक, त्राटक और कपाल भाती ये छः कर्म। ५. साधारण लोगों के लिए विहित ये छः काम जो उन्हें नित्य करने चाहिए-स्नान, संध्या, तर्पण, पूजन जप और होम। ६. लोक व्यवहार और बोल-चाल में व्यर्थ के झगड़े-बखेड़े या प्रपंच।				 | 
			
			
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					षट्-कर्मा					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] षट्-कर्म करनेवाला ब्राह्मण, तांत्रिक, योगी और गृहस्थ।				 | 
			
			
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					षट्-कला					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] संगीत में ब्रह्मताल के चार मुख्य भेदों में से एक।				 | 
			
			
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					षट्-चक्र					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] १. योग में ये छः चक्र-मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा। २. झगड़े-बखेड़े या झंझट के काम।				 | 
			
			
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					षट्-चरण					 :
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					वि० [सं० ब० स०] छः पैरोंवाला। पुं० १. भौंरा। २. जूँ। ३. टिड्डी।				 | 
			
			
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					षट्-तिल					 :
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					स्त्री० [सं०] संगीत में मृदंग का एक प्रकार का ताल।				 | 
			
			
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					षट्-तिला					 :
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					स्त्री० [सं०] माघ के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिस दिन तिलदान करने का माहात्म्य है।				 | 
			
			
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					षट्-दर्शन					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] हिन्दुओं के तत्त्व-ज्ञान सम्बन्धी ये छः दर्शन या शास्त्र-सांख्य योग, न्याय, वैशेषिक पूर्व-मीमांसा और उत्तर-मीमांसा।				 | 
			
			
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					षट्-दर्शनी					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] वह जो हिन्दुओं के दर्शनों का अच्छा ज्ञाता या पंडित हो।				 | 
			
			
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					षट्-पद					 :
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					वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० षट्पदी] छः पैरोंवाला।				 | 
			
			
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					षट्-प्रज्ञ					 :
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					वि० [सं० ब० स०] चारों पुरुषार्थ अर्थात् लोकार्थ और तत्त्वार्थ का ज्ञाता।				 | 
			
			
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					षट्-भुज					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] ज्यामिति में वह क्षेत्र या आकृति जिसकी छः भुजाएँ हों। (हेक्सागन)				 | 
			
			
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					षट्-रस					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] खाने-पीने की चीजों के ये छः रस या स्वाद-मधुर, लवण, तिक्त, कटु, कषाय और अम्ल।				 | 
			
			
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					षट्-राग					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] १. संगीत के ये छः मुख्य राग-भैरव, मला, श्री, हिंडोल, मालकोश और दीपक। २. व्यर्थ का झगड़ा या बखेड़ा।				 | 
			
			
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					षट्-रिपु					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] धर्मशास्त्र के अनुसार ये छः मनोविकार जो मनुष्य के शत्रु माने गये हैं—काम, क्रोध, भय, मोह, लोभ और अहंकार या (किसी किसी के मत से) मत्सर।				 | 
			
			
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					षट्-वर्ग					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] १. एक ही तरह की छः चीजों का वर्ग या समूह। २. फलित ज्योतिष में क्षेत्र, प्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश और त्रिशांश का वर्ग या समूह। ३. दे० ‘षट्-रिपु’।				 | 
			
			
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					षट्-विकार					 :
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					पुं० [सं० द्वि० स०] १. दार्शनिक क्षेत्र में प्राणियों के ये छः विकार या परिणाम-जन्म,शरीर-वृद्धि, बाल्यावस्था, प्रौढ़ता वार्द्धक्य और मृत्यु। २. =षट्-रिपु।				 | 
			
			
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					षट्-शास्त्र					 :
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					पुं० [सं०]=षट्-दर्शन।				 | 
			
			
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					षट्क					 :
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					वि० [सं०] १. छः गना। २. छठी बार होनेवाला या किया जानेवाला। पुं० १. छः का अंक या संख्या। २. एक ही प्रकार की वस्तुओं का वर्ग या समूह। ३. दर्शन-शास्त्रों के अनुसार, इच्छा द्वैष प्रयत्न सुख दुःख और ज्ञान का वर्ग या समूह।				 | 
			
			
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					षट्कोण					 :
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					वि० [सं० ब० स०] छः कोणोंवाला (हेक्सेंगुलर)। पुं० ज्यामिति में छः कोणोंवाली आकृति।				 | 
			
			
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					षट्पदी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] छप्पय छंद जिसमें छः पद या चरण होते हैं।				 | 
			
			
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					षट्वांग					 :
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					पुं० [सं०] एक प्राचीन राजर्षि जिन्हें केवल दो घड़ी की साधना से मुक्ति प्राप्त हुई थी।				 | 
			
			
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