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वै  : अव्य० एक निश्चय बोधक अव्यय। वि० [सं० द्वि] दो। प्रत्यय [सं० वा] १. भी। जैसे—कढुवै (कुछ भी) २. ही। जैसे—भुत वै (भूत ही)।
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वैकक्ष  : पुं० [सं० वि√कक्ष् (व्याप्त होना)+अण्] १. वह माला जो जनेऊ की तरह शरीर पर धारण की जाय। २. उक्त प्रकार से माला पहनने का ढंग।
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वैकक्ष्यक  : पुं० [सं० वैकक्ष+यत्+कन्] एक प्रकार का हार जो कन्धे और पेट पर जनेऊ की तरह पहना जाता था।
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वैकटिक  : पुं० [सं० विकट+ठक्-इक] जौहरी। वि० विकट।
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वैकट्य  : पुं० [सं० विकट+ष्यञ्]=विकटता।
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वैकथिक  : वि० [सं० विकथ+ठक्-इक] डींग हाँकनेवाला। शेखीबाज।
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वैकर्ण  : पुं० [सं० विकर्ण+अण्] १. वैदिक काल का एक जनपद। २. वात्स्य मुनि का दूसरा नाम।
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वैकर्णायन  : पुं० [सं० वैकर्ण+फक्-आयन] वह जो वैकर्ण या वात्स्य मुनि के वंश में उत्पन्न हुआ हो।
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वैकर्तन  : पुं० [सं०] १. सूर्य के एक पुत्र का नाम। २. कर्ण का एक नाम। वि० १. सूर्य-सम्बन्धी। २. जो सूर्यवंश में उत्पन्न हुआ हो। पद—वैकर्तन कुल=सूर्यवंश।
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वैकर्म  : पुं० [सं० विकर्म+अण्] बुरा कर्म। दुष्कर्म।
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वैकल्प  : पुं० [सं० विकल्प+अण्] १. ऐसी स्थिति जिसमें किसी को दो या अधिक चीजों में से कोई एक चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। २. इस प्रकार चुनी हुई वस्तु।
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वैकल्पिक  : वि० [सं० विकल्प+ठक्-इक] १. जो विकल्प के रूप में हो। २. जिसके विषय में विकल्प का उपयोग या प्रयोग किया जाने को हो अथवा किया जा सकता हो। जिसके चुनाव में अपनी इच्छा या रुचि का प्रयोग किया जा सकता हो। (आप्शनल) ३. संदिग्ध। ४. किसी एक ही अंग या पक्ष से संबंध रखनेवाला।
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वैकल्य  : पुं० [सं० विकल+ष्यञ्] १. विकल होने की अवस्था या भाव। विकलता। २. उत्तेजना। ३. बल या शक्ति से हीन होना। निर्बलता। ४. कमी। न्यूनता। ५. भ्रम उत्पन्न करनेवाली त्रुटि या दोष। जैसे—श, ष, और स अथवा व और ब के उच्चारण में वैकल्प जनित सादृश्य है। ६. कातरता। ७. अंग-हीनता। ८. अभाव। वि० अधूरा। अपूर्ण।
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वैकारिक  : वि० [सं० विकार+ठक्] १. विकार। युक्त। २. विकार संबंधी। २. किसी प्रकार के विकार के फलस्वरूप होनेवाला। पुं०=विकार।
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वैकारिकी  : स्त्री० [सं० वैकारिक से] आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की वह शाखा जिसमें इस बात का विचार या विवेचन होता है कि शरीर में किस प्रकार के विकार होने से कौन-कौन से अथवा कैसे-कैसे रोग उत्पन्न होते हैं (पैथालोजी)।
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वैकार्य  : पुं० [सं० विकाल+ष्यञ्] विकार का भाव या धर्म। वि० जिसमें विकार होता या हो सकता हो।
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वैकाल  : पुं० [सं० विकाल+अण्] १. दिन का तीसरा पहर। २. शाम। सन्ध्या।
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वैकालिक  : वि० [सं० विकाल+ठक्—इक] १. विकाल-संबंधी। २ सन्ध्या का। सान्ध्य।
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वैकासिक  : वि० [सं०] १. विकास संबंधी। २. विकास के रूप में होनेवाला।
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वैकुंठ  : पुं० [सं०] [वि० वैकुठीय] १. विष्णु का एक नाम। २. वह स्वर्गीय लोक जिसमें विष्णु निवास करते हैं। ३. स्वर्ग। ४. इन्द्र। ५. सफेद पत्तोंवाली तुलसी। ६. संगीत में एक प्रकार का ताल।
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वैकृत  : वि० [सं० विकृत+अण्] [भाव० वैकृति] १. जो विकार के कारण उत्पन्न हुआ हो। २. दुस्साध्य। ३. विकारी। परिवर्तनशील। पुं० १. विकार। खराबी। २. वीभत्स रस या उसका कोई आलंबन।
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वैकृत-ज्वर  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह ज्वर जो प्रस्तुत ऋतु के अनुकूल न हो, बल्कि किसी और ऋतु के अनुकूल हो।
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वैकृतिक  : वि० [सं० विकृति+ठक्] १. विकृति से संबंध रखने या उसके कारण उत्पन्न होनेवाला। २. नैमित्तिक।
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वैकृत्य  : पुं० [सं० विकृत+ष्यञ्] १. विकार। २. परिवर्तन। ३. दुःखावस्था। ४. बीभत्स काम या बात।
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वैक्रम  : वि० [सं० विक्रम+अण्] विक्रम-संबंधी।
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वैक्रमीय  : वि० [सं० विक्रम+अण्-ईय] विक्रम संबंधी। जैसे—वैक्रमीय संवत्।
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वैक्रांत  : पुं० [सं० विक्रांति+अण्] चुन्नी नामक मणि।
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वैक्रिय  : वि० [सं० विक्रिय+अण्] जो बिकने को हो। बेचे जाने के योग्य। विक्रेय।
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वैक्लव्य  : पुं० [सं० विक्लव+ष्यञ्] १. विकलता। व्याकुलता। २. पीढ़ा। ३. शोक। ४. अस्त-व्यस्तता।
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वैखरी  : स्त्री० [सं० वि+ख√रा (लेना)+क+अण्+ङीष्] १. मुँह से उच्चरित होनेवाला शब्द। २. बोलने की शक्ति। ३. सरस्वती। वाग्देवी।
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वैखानस  : पुं० [सं० विखन+ड+असुन्+अण्] १. जो वानप्रस्थ आश्रम में प्रवृत्त हो चुका हो। २. एक प्रकार के संन्यासी जो वनों में रहते हैं। ३. कृष्ण यजुर्वेद की एक शाखा। ४. भागवत के दो स्कंधों में से एक।
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वैखानसीय  : स्त्री० [सं० वैखानस+छ-ईय] एक उपनिषद् का नाम।
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वैगन  : पुं० [अं०] मालगाड़ी का डब्बा जिसमें माल भेजा जाता है।
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वैगलेय  : पुं० [सं० विगला+ढक्-एय] भूतों का एक गण (पुराण)।
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वैगुण्य  : पुं० [सं० विगुण+ष्यञ्] १. विगुण होने की अवस्था या भाव। विगुणता। २. दोष। ३. नीचता। ४. अपराध।
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वैग्रहिक  : पुं० [सं० विग्रह+ठक्-इक] विग्रह या शरीर संबंधी। शारीरिक।
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वैघटिक  : पुं० [सं० विघट+ठक्-इक] जौहरी।
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वैघात्य  : वि० [सं० वि√हन् (मारना)+णिच्-ण्यत्] जिसका घात किया जा सके या हो सके।
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वैचक्षण्य  : पुं० [सं० विचक्षण+ष्यञ्] विचक्षणता।
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वैचारिकी  : स्त्री०=विचारधारा (आइडियालोजी)।
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वैचित्त्य  : पुं० [सं० विचित्ति+ष्यञ्] १. चित्त की भ्रांति। भ्रम। २. अन्यमनस्कता।
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वैचित्र  : पुं० [सं० विचित्त+अण्] १. विचित्रता। विलक्षणता। २. भेद। फरक। ३. सुन्दरता।
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वैचित्र्य  : पुं० [सं० विचित्र+ष्यञ्] विचित्रता।
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वैचित्र्यवीर्य  : पुं० [सं०] विचित्रवीर्य की संतान-धृतराष्ट्र, पांडु, विदुर आदि।
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वैच्युति  : स्त्री० [सं० वैच्युत+इति] १. विच्युत होने की अवस्था या भाव। विच्युति। २. पतन।
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वैजनन  : पुं० [सं० विजनन+अण्] गर्भ का अन्तिम मास।
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वैजन्य  : पुं० [सं० विजन+ष्यञ्] १. विजनता। एकांत। २. इन्द्र की पुरी का नाम।
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वैजयंत  : पुं० [सं०] १. इंद्र। २. घर। मकान। ३. अग्निमंध।
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वैजयंतिक  : पुं० [सं० वैजयन्त+ठक्-इक] वह जो पताका या झंडा उठाकर चलता हो। (हेरल्ड)।
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वैजयंती  : स्त्री० [सं०] १. पताका। झंडा। २. जयंती नामक पौधा। ३. घुटनों तक लंबी मोतियों की पंचरंगी माला।
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वैजयिक  : वि० [सं० विजय+ठञ्-इक] १. विजय संबंधी। २. विजय के फलस्वरूप मिलने या होनेवाला।
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वैजात्य  : पुं० [सं० विजाति+ण्य] १. विजातीय होने की अवस्था, धर्म या भाव। २. विलक्षणता। ३. बदचलनी। लंपटता।
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वैजिक  : पुं० [सं० वीज+ठक्-इक] १. आत्मा २. कारण। हेतु। वि० १. बीज-संबंधी। २. वीर्य संबंधी। ३. बिजली संबंधी।
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वैज्ञानिक  : वि० [सं० विज्ञान++ठक्] १. विज्ञान संबंधी। २. ठीक रीति या सिलसिले से होनेवाला। पु० विज्ञान का ज्ञाता। विज्ञान-वेत्ता।
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वैडाल-व्रत  : पुं० [सं० उपमि० स०] [वि० वैडाल-व्रती] पाप और कुकर्म करते हुए भी ऊपर से साधु बने रहने का ढोंग।
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वैण  : वि० [सं० वेणु+अण्, उ-लोप] वेणु संबंधी। बाँस का। पुं० बाँस की खमाचियों आदि से चटाइयाँ टोकरियाँ आदि बनानेवाला कारीगर।
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वैणव  : पुं० [सं० वेणु+अण्] १. बाँस का फल। २. बाँस का वह डंडा जो यज्ञोपवीत के समय धारण किया जाता है। ३. वेणु। बाँसुरी। वि० वेणु-संबंधी। वेणु का।
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वैणविक  : पुं० [सं० वैणव+ठक्-इक] वह जो वेणु बजाता हो। वंशी बजानेवाला।
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वैणवी (विन्)  : पुं० [सं० वैणव+इनि] १. वह जो वेणु बजाता हो। २. शिव।
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वैणिक  : पुं० [सं० वीणा+ठक्-इक] वह जो वीणा बजाता हो। बीनकार। वि० वीणासंबंधी। वीणा का।
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वैणुक  : पुं० [सं० वेणु√कै (प्रकाश करना)+क+अण्] वह जो वेणु बजाने में चतुर हो। वंशी बजानेवाला। २. हाथी चलाने का अंकुश।
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वैण्य  : पुं० [सं० वेणु+ष्यञ्] राजा वेणु के पुत्र का एक नाम।
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वैतंडिक  : पुं० [सं० वितंड+ठक्-इक] वितण्डा खड़ा करनेवाला। बहुत बड़ा झगड़ालू व्यक्ति।
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वैतत्य  : पुं० [सं० वितत+ष्यञ्]=वितति (विस्तार)।
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वैतथ्य  : पुं० [सं० वितथ+ष्यञ्] १. वितथ होने की अवस्था या भाव। २. विफलता।
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वैतनिक  : वि० [सं० वेतन+ठक्-इक] १. वेतन संबंधी। वेतन का। २. जिसे किसी पद पर काम करने के फलस्वरूप वेतन मिलता हो। जैसे—वैतनिक मंत्री। पुं० नौकर। भृत्य।
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वैतरणी  : स्त्री० [सं० वितरण+अण्+ङीष्] १. उड़ीसा की एक नदी का नाम जो बहुत पवित्र मानी जाती है। २. पुराणानुसार परलोक की एक नदी जिसे (यह शरीर छोड़ने पर) जीवात्मा को पार करना पड़ता है।
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वैतंसिक  : पुं० [सं० वितंस+ठक्—इक] कसाई।
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वैतस्त  : वि० [सं० वितस्ता+अण्] १. वितस्ता। नदी संबंधी। २. वितस्ता नदी से प्राप्त।
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वैतानिक  : वि० [सं० वितान+ठक्-इक] १. यज्ञ-संबंधी। २. पवित्र।
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वैताल  : पुं० [सं० वेताल+अण्] स्तुत पाठक। वैतालिक। वि० वेताल सम्बन्धी। वेताल का।
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वैतालिक  : पुं० [सं० वेताल+ठक्-इक] १. प्राचीन काल का वह स्तुति पाठक जो प्रातःकाल राजाओं को उनकी स्तुति करके जगाया करता था। स्तुति पाठक। २. ऐन्द्रजालिक। जादूगर।
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वैताली (लिन्)  : पुं० [सं० वैताल+इनि] कार्तिकेय का एक अनुचर।
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वैतालीय  : वि० [सं० वेताल+छ—ईय] वेताल संबंधी। पुं० १. एक प्रकार का विषम वृत्त जिसके पहले और तीसरे चरणों में चौदह-चौदह और दूसरे और चरणों में सोलह-सोलह मात्राएँ होती है।
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वैतुष्ण्य  : पुं० [सं० वितृष्ण+ष्यञ्] वितृष्ण होने की अवस्था या भाव।
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वैत्तिक  : वि० [सं०] वित्त-संबंधी।
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वैद  : पुं०=वैद्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैदक  : पुं०=वैद्यक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैदग्ध (दग्ध्य)  : पुं० [सं० विदग्ध+अण्, विदग्ध+ष्यञ्] १. विदग्ध या पूर्ण पंडित होने की अवस्था,धर्म या भाव। पांडित्य। विद्वान। २. कार्य कुशलता। दक्षता। पटुता। ३. चातुरी। चालाकी। ४. रसिकता। ५. शोभा। श्री। ६. हाव-भाव।
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वैदंभ  : पुं० [सं० विदंभ+अण्] शिव का एक नाम।
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वैदर्भ  : वि० [सं० विदर्भ+अण्] १. विदर्भ देश का। २. विदर्भ देश में उत्पन्न। ३. बात-चीत करने में चतुर। पुं० १. विदर्भ का राजा या शासक। २. दमयंती के पिता भीमसेन। ३. रुक्मिणी के पिता भीष्मक। ४. वाकचातुरी। ५. मसूड़ा फूलने का रोग।
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वैदर्भक  : पुं० [सं० विदर्भ+अण्+कन्] विदर्भ का निवासी।
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वैदर्भी  : स्त्री० [सं० विदर्भ+अण्+ङीष्] १. संस्कृत साहित्य में साहित्यिक रचना का वह विशिष्ट प्रकार या शैली जो मुख्यतः विदर्भ और उसके आस-पास के देशों में प्रचलित थी, और जो प्रायः सभी गुणों से युक्त सुकुमार वृत्तिवाली तथा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती थी। करुणा श्रृंगार आदि रसों के लिए यह विशेष उपयुक्त मानी गई है। २. अगस्त्य ऋषि की पत्नी। ३. दमयन्ती। ४. रुक्मिणी।
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वैदांतिक  : वि० [सं० वेदान्त+ठक्—इक] वेदांत जाननेवाला। वेदांती।
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वैदारिक  : पुं० [सं० विदार+ठक्-इक] सन्निपात ज्वर का एक भेद।
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वैदिक  : वि० [सं० वेद+ठक्-इक] १. वेद-संबंधी। वेद का। जैसे—वैदिक काल, वैदिक कर्म। २. जो वेदों में कहा गया हो। पुं० १. वह जो वेदों में बतलाये हुए कर्मकांड का अनुष्ठान करता हो। वेद में कहे हुए कृत्य करनेवाला। २. वह जो वेदों का अच्छा ज्ञाता या पंडित हो।
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वैदिक-धर्म  : पुं० [सं० कर्म० स०] आर्यो का वह धर्म जो वेदों के युग में प्रचलित था। (इसमें प्रकृति की उपासना पितरों का पूजन, यज्ञकर्म, तपस्या आदि बातें मुख्य थी, और जादू-टोने या मंत्र-तंत्र का भी कुछ प्रचलन था)।
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वैदिक-युग  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह युग या समय जब वेदों की रचना हुई थी और वैदिक धर्म प्रचलित था।
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वैदिश  : वि० [सं० विदिशा+अण्] १. विदिशा सम्बन्धी। विदिशा का। २. विदिशा में होनेवाला। पुं० विदिशा का निवासी।
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वैदिश्य  : पुं० [विदिशा+ष्यञ्] विदिशा के पास का एक प्राचीन नगर।
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वैदुरिक  : पुं० [सं० विदुर+ठक्-इक] १. विदुर का भाव। २. विदुर का मत या सिद्धान्त।
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वैदुष  : पुं० [सं० विद्वस्+अण्] विद्वान। पंडित।
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वैदुष्य  : पुं० [सं० विद्वस्+ष्य़ञ्] विद्वत्ता। पांडित्य।
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वैदूर्य  : पुं० [सं०] १. हरे रग के रत्नों का एक वर्ग। (बेरिल)। २. लहसुनिया नामक रत्न। (लैपिस लेजूली)।
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वैदेशिक  : वि० [सं० विदेश+ठक्-इक] १. विदेश में होनेवाला। २. विदेशों से संबंध रखनेवाला। पुं० विदेशी व्यक्ति।
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वैदेश्य  : वि०=वैदेशिक।
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वैदेहक  : पु० [सं० वैदेह+कन्] १. वणिक। व्यापारी। २. एक प्राचीन वर्णसंकर जाति।
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वैदेही  : स्त्री० [सं० विदेह+अण्+ङीष्] १. विदेह राजा जनक की कन्या, सीता। २. वैदेह जाति की स्त्री। ३. पिप्पली। ४. रोचना।
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वैद्य  : पुं० [सं० विद्या+अण्] १. पंडित। विद्वान। २. आयुर्वेद का ज्ञाता। ३. आयुर्वेद द्वारा निर्दिष्ट चिकित्सा पद्धति के अनुसार चिकित्सा करनेवाला। ४. एक जाति जो प्रायः बंगाल में पाई जाती है। इस जाति के लोग अपने आपको अंबष्ठसंतान कहते हैं। ४. वासक। अडूसा। वि० वेद संबंधी। वेद का।
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वैद्यक  : पुं० [सं० वैद्य+कन्] वह शास्त्र जिसमें रोगों के निदान और चिकित्सा का विवेचन हो। आयुर्वेद।
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वैद्याधर  : वि० [सं० विद्याधर+अण्] विद्याधर-सम्बन्धी।
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वैद्युत्  : वि० [सं० विद्युत+अण्] विद्युत-सम्बन्धी। बिजली की।
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वैद्रुम  : वि० [सं० विद्रुम+अण्] विद्रुम-सम्बन्धी। मूँगे का।
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वैध  : वि० [सं० विधि+अण्] विधि-सम्मत। २. विधि की दृष्टि में ठीक। विधि के अनुकूल।
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वैधता  : स्त्री० [सं०] वैध होने की अवस्था, धर्म या भाव।
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वैधर्मिक  : वि० [सं० विधर्मी+कन्+अण्] १. ध्रर्म-विरुद्ध। २. विधर्मियों जैसा।
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वैधर्म्य  : पुं० [सं० विधर्म+ष्यञ्] १. विधर्मी होने की अवस्था या भाव। २. नास्तिकता। ३. वह जो अपने धर्म के अतिरिक्त अन्यान्य धर्मों के सिद्धान्तों का भी अच्छा ज्ञाता हो।
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वैधव  : पुं० [सं० विधु+अण्] विधु अर्थात् चन्द्रमा के पुत्र, बुध। वि० विधु-सम्बन्धी। विधु का।
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वैधवेय  : वि० [सं० विधवा+ढक्—एय] विधवा के गर्भ से उत्पन्न।
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वैधव्य  : पुं० [सं० विधवा+ष्यञ्] विधवा होने की अवस्था, या भाव। रँड़ापा।
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वैधस  : पुं० [सं० वेधस्+अण्] राजा हरिशचन्द्र जो राजा वेधस के पुत्र थे। वि० वेधस संबंधी। वेधस का।
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वैधात्र  : पुं० [सं० विधातृ+अण्] सनत्कुमार जो विधाता पुत्र माने जाते हैं।
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वैधात्री  : स्त्री० [सं० वैधात्र+ङीष्] ब्राह्मी (जड़ी)।
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वैधिक  : वि० [सं० विधि+ठक्-इक] वैध। विधि-सम्मत।
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वैधी  : स्त्री० [सं० विधि+अण्+ङीष्] ऐसी भक्ति जो शास्त्रों में बतलाई हुई विधि के अनुसार या अनुरूप हो। जैसे—कीर्तन, भजन आदि।
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वैधूर्य  : पुं० [सं० विधुर+ष्यञ्] १. विधुर होने की अवस्था या भाव। २. हताश या कातर होने की अवस्था या भाव। ३. भ्रम। धोखा। ४. सन्देह। ५. कंप।
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वैधृति  : पुं० [सं० ब० स० पृषो० सिद्धि] १. ज्योतिष में विष्कंभ आदि सत्ताइस योगों में से एक जो अशुभ कहा गया है। २. पुराणानुसार विधृति के पुत्र एक देवता।
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वैधेय  : वि० [सं० विधि+ढक्-एय या विधेय+अण्] १. विधि संबंधी। विधि का। २. संबंधी। रिश्तेदार। ३. मूर्ख। बेवकूफ।
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वैध्य  : वि० [सं० विध्य+अण्] १. विंध्य पर्वत पर होनेवाला अथवा उससे संबंध रखनेवाला। २. विध्यवासी।
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वैनतक  : पुं० [सं० विनता+अण्, अकच्] एक प्रकार का यज्ञ पात्र जिसमें घी रखा जाता था।
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वैनतेय  : वि० [सं० विनता+ढक्-एय] विनता सम्बन्धी। विनता का। पुं० १. विनता की संतान। २. गरुड़। ३. अरुण।
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वैनतेयी  : स्त्री० [सं० वैनतेय+ङीष्] एक वैदिक शाखा।
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वैनत्य  : वि० [सं० विनत+ष्यञ्] विनीत। विनम्र।
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वैनयिक  : पुं० [सं० विनय+ठक्—इक] १. विनय २. निवेदन। प्रार्थना। ३. वह जो शास्त्रों आदि का अध्ययन करता हो। ४. युद्ध रथ। वि० १. विनय संबंधी। २. विनय अर्थात् नीतिपूर्ण आचरण करनेवाला।
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वैनायक  : वि० [सं० विनायक+अण्] विनायक या गणेश संबंधी। विनायक का। पुं० पुराणा-नुसार भूतों का एक गुण।
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वैनायिक  : पुं० [सं० विनाय+ठक्-इक] बौद्ध धर्म का अनुयायी। बौद्ध।
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वैनाशिक  : पुं० [सं० विनाश+ठक्-इक] १. फलित ज्योतिष में जन्म नक्षत्र से तेरहवाँ नक्षत्र। २. जन्म नक्षत्र से सातवाँ दसवाँ और अठारहवाँ नक्षत्र। ये तीनों नक्षत्र अशुभ समझे जाते हैं और निधन तारा कहलाते हैं। इन नक्षत्रों में यात्रा करना वर्जित है। ३. बौद्ध। वि० १. विनाश सम्बन्धी। विनाश का। २. परतन्त्र। पराधीन।
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वैनीतक  : पुं० [सं० विनीत√कै (प्रकाश करना)+क+अण्] १. एक तरह की बड़ी पालकी। विनीतक। २. वाहन का साधन अर्थात् कहार, घोड़ा आदि।
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वैन्य  : पुं० [सं० वेन+ण्य] वेन के पुत्र, पृथु।
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वैपथक  : वि० [सं० विपथ+कन्+अग्] १. विपथ संबंधी। विरथ का। २. विपथ पर चलनेवाला।
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वैपरीत्य  : पुं० [सं० विपरीत+ष्यञ्] विपरीतता।
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वैपार  : पुं०=व्यापार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैपारी  : पुं०=व्यापारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैपित्र  : वि० [सं० विपितृ+अण्] (संबंध के विचार से ऐसे भाई या बहनें) जो एक ही माता के गर्भ से परन्तु विभिन्न पिताओं के वीर्य से उत्पन्न हुए हों।
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वैपुल्य  : पुं० [सं० विपुल+ष्यञ्] विपुलता।
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वैफल्य  : पुं० [सं० विफल+ष्यञ्] १. विफलता। २. साहित्य में रचना का एक दोष जो उस समय माना जाता है जब रचना में शब्दालंकार मात्र होता है पर चमत्कार का अभाव होता है।
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वैबांधिक  : पुं० [सं० विवोधिक+ठक्—इक] १. रात को पहरा देनेवाला व्यक्ति। २. जगानेवाला व्यक्ति। विशेषतः स्तुति पाठ द्वारा राजा को जगानेवाला व्यक्ति।
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वैबुध  : वि० [सं० विबुध+अण्] विबुध अर्थात् देवता-संबंधी।
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वैभव  : पुं० [सं० विभु+अण्] १. विभव अर्थात् धनी होने की अवस्था या भाव। २. धन-दौलत। ऐश्वर्य। ३. बड़प्पन। महत्ता। ४. शान-शौकत। ५. शक्ति। सामर्थ्य।
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वैभवशाली  : वि० [सं०] १. (व्यक्ति) जिसके पास बहुत अधिक धन संपत्ति हो। विभववाला। २. अत्यधिक समर्थ।
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वैभविक  : वि० [सं० वैभव+ठक्-इक] १. वैभव संबंधी। २. वैभवशाली।
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वैभातिक  : वि० [सं० विभात+ठक्-इक] विभात अर्थात् प्रभात संबंधी।
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वैभार  : पुं० [सं०] राजगृह के पास का एक पर्वत।
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वैभावर  : वि० [सं० विभावरी+अण्] विभावरी अर्थात् रात-संबंधी।
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वैभाषिक  : वि० [सं० विभाषा+ठक्-इक] १. विभाषा में होनेवाला। विभाषा संबंधी। २. वैकल्पिक। ३. बौद्धों के विभाषा नामक संप्रदाय से संबंध रखनेवाला अथवा उसका अनुयायी।
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वैभाष्य  : पुं० [सं० विभाषा+ष्यञ्] किसी मूल या सूत्रग्रन्थ का विस्तृत भाष्य।
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वैभूतिक  : वि० [सं० विभूति+ठक्—इन] १. विभूति संबंधी। विभूति का। २. विभूति के फलस्वरूप होनेवाला। ३. प्रचुर।
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वैभोज  : पुं० [सं० विभोज+अण्] एक प्राचीन जाति जिसका मूल पुरुष् द्रुह्यु माना गया है (महाभारत)।
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वैभ्राज्य  : पुं० [सं० विभ्राज्य+अण्] १. देवताओं का उद्यान या बाग। २. पुराणानुसार मेरु के पश्चिम में सुपार्श्व पर्वत पर का एक जंगल। २. स्वर्ग के अन्तर्गत एक लोक।
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वैमत्य  : पुं० [सं० विमति+ण्य] १. विमति अर्थात् मतभेद की अवस्था या भाव। फूट। २. मतों का न मिलना। ३. मतों में होनेवाला अंतर या फरक।
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वैमनस्य  : पुं० [सं० विमनस्+ष्यञ्] १. विमनस् या अन्यमनस्क होने की अवस्था या भाव। २. दुश्मनी। वैर। शत्रुता। ३. मानसिक। शैथिल्य। उदासी।
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वैमल्य  : पुं० [सं० विमल+ष्य़ञ्]=विमलता।
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वैमात्र  : वि० [सं० विमातृ+अण्] [स्त्री० वैमात्रा] (संबंध के विचार से ऐसे भाई या बहनें) जो विभिन्न माताओं के गर्भ से उत्पन्न, परन्तु एक ही पिता की संतान हों।
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वैमात्रक  : पुं० [सं० वैमात्र+कन्] [स्त्री० वैमात्री] सौतेला भाई।
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वैमात्रेय  : वि० [सं० विमातृ+ढक्-एय] [स्त्री० वैमात्रेयी] १. विमातृ संबंधी। विमाता का। २. विमाता या सौतेली माँ की तरह का। (स्टेप मदरली)। जैसे—किसी के साथ किया जानेवाला वैमात्रेय व्यवहार।
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वैमानिक  : वि० [सं० विमान+ठक्-इक] १. विमान संबंधी। २. विमान में उत्पन्न। पुं० १. वह जो विमान पर सवार हो। २. हवाई जहाज चलानेवाला। (पायलट)।
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वैमानिकी  : स्त्री० [सं० वैमानिक+ङीष्] विमान पर हवाई जहाज चलाने की क्रिया, विद्या या शास्त्र। (एयरोनाटिक्स)।
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वैमुध  : पुं० [सं० विमुध+अण्] इंद्र।
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वैमुरुय  : पुं० [सं० विमृख+ष्यञ्] १. विमुखता। २. विरक्ति। घृणा। ३. पलायन।
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वैमूढ़क  : पुं० [सं०] नृत्य का वह प्रकार जिसमें स्त्रियों का वेश धारण करके पुरुष नाचते हैं।
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वैमूल्य  : पुं० [सं० विमूल्य+अण्] मूल्य की भिन्नता।
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वैयक्तिक  : वि० [सं० व्यक्ति+कन्+अण्] १. किसी विशिष्ट व्यक्ति अथवा उसके अधिकार, गुण, स्वभाव आदि से संबंध रखनेवाला (पर्सनल)। २. जो पारिवारिक सामूहिक या सार्वजनिक कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आता हो। बल्कि जिस पर एक ही व्यक्ति का विधिक अधिकार हो (प्राइवेट)।
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वैयक्तिक बंध  : पुं० [सं०] वह बंध या प्रतिज्ञापत्र जिसके अनुसार लेखक या हस्ताक्षरकर्ता अपने आप को कोई काम करने या कोई प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए वद्ध करता है (पर्सनल बाण्ड)।
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वैयक्तिक विधि  : स्त्री० [सं०] आधुनिक राजकीय विधानों में देशव्यापी विधियों या कानूनों से भिन्न वह विधि या कानून जिसका प्रयोग किसी क्षेत्र के विशिष्ट निवासी या निवासियों के संबंध में कुछ विशिष्ट अवस्थाओं में होता है। (पर्सनल ला)।
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वैयग्र  : पुं० [सं०]=व्यग्रता।
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वैयर्थ्य  : पुं० [सं० व्यर्थ+ष्यञ्] व्यर्थ होने की अवस्था या भाव। व्यर्थता।
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वैयसन  : वि० [सं० व्यसन+अण्] व्यसन संबंधी। व्यसन का।
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वैयाकरण  : वि० [सं० व्याकरण+अण्] व्याकरण संबंधी। व्याकरण का। पुं० १. वह जिसे व्याकरण-शास्त्र का पूर्ण ज्ञान हो। व्याकरण का ज्ञाता। २. व्याकरण शास्त्र की रचना करनेवाला।
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वैयाघ्र  : पुं० [सं० व्याघ्र+अण्] १. व्याघ्र संबंधी। २. व्याघ्र की तरह का। ३. जिस पर व्याघ्र की खाल मढ़ी गई हो। पुं० पुरानी चाल का एक तरह का रथ जिस पर बाघ की खाल मढ़ी होती थी।
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वैयास  : वि० [सं० व्यास+अण्] व्यास-संबंधी। व्यास का।
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वैयासकि  : पुं० [सं० व्यास+इञ्, अकङ-आदेश,ऐच] वह जो व्यास का वंशज हो। पुं० व्यास द्वारा रचित।
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वैर  : पुं० [सं० वीर+अण्] शत्रुता का वह उत्कृष्ट या तीव्र रूप जो प्रायः जाग्रत रहता और बहुत कुछ स्थायी या स्वाभाविक होता है। विशेष—‘वैर’ या ‘शत्रुता’ का अंतर जानने के लिए देखें ‘शत्रुता’ का विशेष।
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वैर-शुद्धि  : स्त्री० [सं०] वैरी से उसके लिए किये गए अपकार का बदला लेने के लिए उसका कोई अपकार करना। वैर का बदला चुकाना।
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वैरक्त  : पुं० [सं० विरक्त+अण्] विरक्त होने की अवस्था या भाव। विरक्तता।
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वैरता  : स्त्री० [सं० वैर+तल्+टाप्] वैर का भाव। पूर्ण शत्रुता।
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वैरल्य  : पुं० [सं० विरल+ष्यञ्] १. विरलता। २. एकांत स्थान।
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वैरस्य  : पुं० [सं० विरस+ष्यञ्] १. विरक्त होने का भाव। विरसता। २. अनिच्छा।
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वैराग  : पुं०=वैराग्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैरागिक  : वि० [सं० विराग+ठञ्-इक] १. विराग संबंधी। २. विराग उत्पन्न करनेवाला।
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वैरागी  : वि० [सं० वैराग्य+इनि] जिसके मन में विराग उत्पन्न हुआ हो। जिसका मन संसार की ओर से हट गया हो। विरक्त। जैसे—बंदा वीर वैरागी। पुं० उदासीन वैष्णवों का एक संप्रदाय।
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वैराग्य  : पुं० [सं० विराग+ष्यञ्] १. वह अवस्था जिसमें मन में किसी के प्रति राग-भाव नहीं होता। २. मन की वह वृत्ति जिसके कारण संसार की विषय-वासना तुच्छ प्रतीत होती है और व्यक्ति संसार की झंझटें तोड़कर एकांत में रहता है और ईश्वर का भजन करता है। विरक्ति।
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वैराज  : पुं० [सं० विराज+अण] १. विराट् पुरुष। परमात्मा। २. एक मनु का नाम। ३. पुराणानुसार सत्ताइसवें कल्प का नाम। ४. पितरों का एक वर्ग। ५. वैराग्य। (दे०)।
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वैराजक  : पुं० [सं० वैराज+कन्, अथवा वि√राज् (सुशोभित होना)+ण्वुल्-अक+अण्] उन्नीसवाँ कल्प (पुरा०)।
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वैराज्य  : पुं० [सं० विराज+ष्यञ्] १. ऐसी शासन-प्रणाली जिसमें दो प्रभु-सत्ताएँ किसी राष्ट्र का शासन सूत्र सँभाले रहती हैं। २. ऐसा देश जिसमें उक्त प्रकार की शासन-प्रणाली प्रचलित हो।
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वैराट  : वि० [सं० विराट+अण्] १. विराट संबंधी। विराट का। २. लंबा-चौड़ा। विस्तृत। पुं० १. महाभारत का विराट पर्व। २. बीरबहूटी। इन्द्रगोप।
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वैराटक  : पुं० [सं० वैराट+कन्] शरीर के किसी अंग में होनेवाली जहरीली गाँठ या गिलटी। (सुश्रुत)
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वैरि  : पुं० [सं० वैर+इनि] वैरी शत्रु। दुश्मन।
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वैरिंचि  : वि० [सं० विरिच+इञ्] विरिंचि या ब्रह्मा-संबंधी। ब्रह्मा का।
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वैरिंच्य  : पुं० [सं० विरिंच+ष्यञ्] ब्रह्मा की संतान सनक सनन्दन आदि ऋषि।
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वैरी  : पुं० [सं० वैरिन्] वह जिसके साथ वैर-भाव हो। दुश्मन।
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वैरूपाक्ष  : पुं० [सं० विरूपाक्ष+अण्] विरूपाक्ष के गोत्र या वंश में उत्पन्न।
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वैरूप्य  : पुं० [सं० विरूप+ष्यञ्] विरूप होने की अवस्था या भाव। विरूपता। २. विकृति। ३. बेढंगापन।
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वैरेचन  : वि० [सं० विरेचन+अण्] विरेचन-संबंधी। विरेचन का।
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वैरोचन  : वि० [सं० विरोचन+अण्] १. विरोचन से उत्पन्न। २. सूर्यवंश में उत्पन्न। पुं० १. बुद्ध का एक नाम। २. राजा बलि का एक नाम। ३. सूर्य का एक नाम। ४. सूर्य का एक पुत्र। ४. अग्नि का एक पुत्र।
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वैरोचनि  : पुं० [सं० विरोचन+इञ्] १. बुद्ध का एक नाम। २. राजा बलि का एक नाम। ३. सूर्य का एक पुत्र।
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वैरोद्धार  : पुं० [सं० ष० त०]=वैर-शुद्धि।
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वैरोधक, वैरोधिक  : वि० [सं०] अनुकूल न पडनेवाला अथवा विरोधी सिद्ध होनेवाला।
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वैल-स्थान  : पुं० [सं० विलस्थान+अण्] वह स्थान जहाँ मुरदे गाड़े जाते हैं। कब्रिस्तान।
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वैलक्षण्य  : पुं० [सं० विलक्षण+ष्यञ्] १. विलक्षण होने की अवस्था या भाव। विलक्षणता। २. ऐसा गुण या धर्म जिसके कारण कोई चीज विलक्षण प्रतीत होती हो।
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वैलक्ष्य  : पुं० [सं० विलक्ष+ष्यञ्] १. लज्जा। शर्म। २. आश्चर्य। ताज्जुब। ३. स्वभाव की विलक्षणता।
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वैलिंग्य  : पुं० [सं० वेलिंग+ष्यञ्] लिंग अर्थात् परिचायक चिन्ह से रहित होने की अवस्था या भाव। लिंगहीनता।
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वैलोम्य  : पुं० [सं० विलोम+ष्यञ्]=विलोमता।
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वैवक्षिक  : वि० [सं०] १. विवक्षा संबंधी। २. विवक्षा-जन्य।
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वैवधिक  : पुं० [सं० विवध+ठक्—इक] १. फेरी लगानेवाला व्यापारी। २. अनाज या गल्ले का व्यापारी। ३. दूत। ४. मजदूर।
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वैवर्ण  : पुं० [सं० विवर्ण+अञ्] १. विवर्ण होने की अवस्था या भाव। २. लावण्य या सौन्दर्य का अभाव। ३. मलिनता। ४. वैवर्ण्य (दे०)।
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वैवर्णिक  : पुं० [सं० विवर्ण+ठक्—इक] वह जो जाति-च्युत कर दिया गया या अपने वर्ण से निकाल दिया गया हो।
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वैवर्ण्य  : पुं० [सं० विवर्ण+ष्यञ्] १. विवर्णता। २. साहित्य में एक सात्त्विक भाव जो उस समय माना जाता है जब क्रोध, भय, मोह, लज्जा, रोग, शीत या हर्ष के कारण किसी के मुँह का रंग उड़ने लगता है। ३. मलिनता। ४. जाति से च्युत होने की अवस्था या भाव।
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वैवर्त  : पुं० [सं० विवर्त्त+अण्] चक्र या पहिए की तरह घूमना।
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वैवश्य  : पुं० [सं० विवश+ष्यञ्] १. विवश होने की अवस्था या भाव। विवशता। २. कमजोरी। दुर्बलता।
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वैवस्वत  : पुं० [सं० विवस्वत+अण्] १. सूर्य के एक पुत्र का नाम। २. एक रुद्र का नाम। ३. शनैश्चर। ४. पुराणानुसार (क) वर्तमान मन्वंतर और (ख) उसके मनु का नाम। ५. कलियुग के अधिष्ठाता सातवें मनु। वि० १. सूर्य संबंधी। २. मनु-संबंधी। ३. यम-संबंधी।
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वैवस्वती  : स्त्री० [सं० वैवस्वत+ङीष्] १. दक्षिण दिशा। २. यमुना। ३. यम की बहन।
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वैवाह  : वि० [सं० विवाह+अण्] विवाह संबंधी। विवाह का।
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वैवाहिक  : वि० [सं० विवाह+ठक्—इक] १. विवाह संबंधी। विवाह का (मैरिटल) २. विवाह के फलस्वरूप होनेवाला। पुं० १. विवाह। २. विवाह के फलस्वरूप होनेवाला संबंध। ३. श्वसुर।
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वैवाह्य  : वि० [सं० विवाह+ष्यञ्] १. विवाह संबंधी। विवाह का। २. जो विवाह के योग्य हो या जिसका विवाह होने को हो। पुं० विवाह संबंधी कृत्य।
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वैवृत्त  : पुं० [सं० विवृत्त+अण्] उदात्त आदि स्वरों का क्रम।
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वैशद्य  : पुं० [सं० विशद+ष्यञ्] १. विशद होने का भाव। विशदता। २. निर्मलता।
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वैशंपायन  : पुं० [सं० विशम्प+फञ्-आयन] एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम जो वेदव्यास के शिष्य थे। कहते हैं कि महर्षि वेदव्यास की आज्ञा से इन्होंने जन्मेजय को महाभारत की कथा सुनाई थी।
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वैशली  : स्त्री०=वैशाली।
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वैशल्य  : पुं० [सं० विशल्य+अण्] बहुत बड़े कष्ट या वेदना से होनेवाली मुक्ति।
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वैशाख  : पुं० [सं० विशाखा+अण्] १. भारतीय वर्ष के बारह महीनों में से एक जो चांद्र गणना से दूसरा और सौर गणना के अनुसार पहला महीना होता है। इस मास की पूर्णिमा विशाखा नक्षत्र में पड़ती हैं, इसलिए इसे वैशाख कहते हैं। २. एक प्रकार का वह ग्रह जिसका प्रभाव घोड़ों पर पड़ता है, और जिसके कारण उसका शरीर भारी हो जाता है और वह काँपने लगता है। ३. बाण चलाने की एक प्रकार की मुद्रा। ४. मथानी का डंडा। ५. लाल गदहपूरना।
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वैशाखी  : स्त्री० [सं० विशाखा+अण्+ङीष्] १. ऐसी पूर्णिमा जो विशाखा नक्षत्र से युक्त हो। वैशाख मास की पूर्णिमा। २. सौर मास की संक्रान्ति के दिन होनेवाला उत्सव। ३. पुराणानुसार वसुदेव की एक पत्नी। ४. लाल गदहपूरना।
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वैशारद  : वि० [सं० विशारद+अण्] विशारद।
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वैशारद्य  : पुं० [सं० विशारद+ष्यञ्] विशारद या पंडित होने की अवस्था, कर्म या भाव। विशारदता।
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वैशाली  : स्त्री० [सं०] आधुनिक मुजफ्फरपुर (बिहार) में स्थित एक प्राचीन नगरी जिसे विशाल नामक राजा ने बसाया था तथा जो महावीर वर्द्धमान की जन्मभूमि है। आज-कल वह वसाढ़ नाम से प्रसिद्ध है।
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वैशालीय  : पुं० [सं० विशाला+छण्—ईय] जैन धर्म के प्रवर्त्तक महावीर का एक नाम।
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वैशालेय  : पुं० [सं० विशाल+ढक्-एय] १. विशाल का वंशज। २. तक्षक।
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वैशिक  : पुं० [सं० वेश+ठक्-इक] तीन प्रकार के नायकों में से वह नायक जो वेश्याओं के साथ भोग-विलास, करता हो। वेश्यागामी नायक। वि० १. वेश्यावृत्ति से संबंध रखनेवाला। २. वेश्या-संबंधी। वेश का।
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वैशिष्ठ्य  : पुं० [सं०] विशिष्ठता।
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वैशेषिक  : पुं० [सं० विशेष+ठक्—इक] १. छः दर्शनों में से एक जो महर्षि कणादकृत है और जिसमें पदार्थों के स्वरूप आदि का विचार तथा द्रव्यों का निरूपण है। पदार्थ विद्या। २. उक्त दर्शन का अनुयायी।
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वैशेष्य  : पुं० [सं०विशेष+ष्यञ्] विशेष का भाव। विशेषता।
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वैश्मिक  : वि० [सं० वेश्म+ठक्-इक] वेश्म अर्थात् घर या मकान में रहनेवाला।
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वैश्य  : पुं० [सं०√विश्+क्विप्+ष्यञ्] हिन्दुओं में तीसरे वर्ण का व्यक्ति जिसका मुख्य कर्म व्यापार तथा खेती कहा गया है।
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वैश्यता  : स्त्री० [सं० वैश्म+तल्+टाप्] वैश्य का धर्म या भाव। वैश्यत्व।
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वैश्यभद्रा  : स्त्री० [सं० द्व० स०] बौद्धों की वैश्या और भद्रा नाम की दो देवियाँ।
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वैश्या  : स्त्री० [सं० वैश्य+टाप्] १. वैश्य जाति की स्त्री। २. हल्दी।
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वैश्रंभक  : पुं० [सं० विश्रंभक+अण्] देवताओं का एक उद्यान। (पुराण)
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वैश्रंभक  : पुं० [सं० विश्रवण+अण्] १. कुबेर। २. शिव।
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वैश्रवणालय  : पुं० [सं० ष० त०] १. कुबेर के रहने का स्थान। २. बड का पेड़। वट वृक्ष।
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वैश्लेषिक  : वि० [सं०] १. विश्लेषण संबंधी। २. विश्लेषण के फलस्वरूप ज्ञात होनेवाला। (एनैलिटिकल)
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वैश्व  : वि० [सं० विश्व+अण्] विश्वदेव संबंधी। विश्वदेव का। पुं० उत्तराषाढ़ा। नक्षत्र।
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वैश्वजनीन  : वि०=विश्वजनीन।
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वैश्वदेव  : पुं० [सं० विश्वदेव+अण्] विश्वदेव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से किया जानेवाला यज्ञ।
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वैश्वदेवत  : पुं० [सं० विश्वदेवता+अण्] उत्तराषाढ़ा नक्षत्र जिसके अधिष्ठाता विश्वदेव माने जाते हैं।
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वैश्वयुग  : पुं० [सं० विश्व-युग, ष० त०+अण्] फलित ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति के शोमकृत, शुभकृत क्रोधी, विश्वावसु और पराभाव नामक पाँच सवत्सरों का युग या समूह।
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वैश्वरूप  : वि० [सं० विश्वरूप+अण्] १. बहुत से रूपोंवाला। २. विभिन्न प्रकार का।
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वैश्वानर  : पुं० [सं० विश्वानर+अण्] १. अग्नि। २. परमात्मा। ३. चेतन। ४. चित्र। ५. चित्रक। चीता।
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वैश्वानर-मार्ग  : पुं० [सं०] चन्द्रवीथी का एक भाग।
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वैश्वामित्र, वैश्वामित्रक  : वि० [सं० विश्वामित्र+अण्+कन्] विश्वामित्र संबंधी।
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वैश्वासिक  : वि० [सं० विश्वास+ठक्-इक]=विश्वास संबंधी।
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वैषम्य  : पुं० [सं० विषम+ष्यञ्] विषम होने की अवस्था या भाव।
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वैषयिक  : वि० [सं० विषय+ठक्-इक] १. विषय वासना संबंधी। विषय का। २. विषय वासना में लिप्त रहनेवाला। विषयी।
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वैषवत  : पुं० [सं० विषवत्+अण्] विषुव संक्रांति। वि० विषवत्-सम्बन्धी।
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वैषिक  : वि० [सं० विष+ठक्-इक] १. विष संबंधी। २. विष के संयोग से उत्पन्न होनेवाला। विषजन्य (टाँक्सिक)। जैसे—रक्त में होनेवाला वैषिक विकार।
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वैष्किर  : पुं० [सं० विष्किर+अण्] ऐसा पशु या पक्षी जो चारों ओर घूम-फिरकर आहार प्राप्त करता हो।
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वैष्णव  : वि० [सं० विष्ण+अण्] [स्त्री० वैष्णवी] १. विष्णु संबंधी। जैसे—वैष्णव विचार। २. विष्णु का उपासक। पुं० १. हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध धार्मिक संप्रदाय। इसमें विष्णु की उपासना करते हुए अपेक्षाकृत विशेष आचार-विचार में रहना पड़ता है। २. उक्त के आधार पर सात्त्विक वृत्तिवाला और निरामिषभोजी व्यक्ति। ३. विष्णु पुराण। ४. यज्ञ कुण्ड की भस्म। वि० विष्णु-संबंधी। विष्णु का।
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वैष्णवत्व  : पुं० [सं० वैष्णव+त्व] वैष्णव होने की अवस्था या भाव। वैष्णवता।
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वैष्णवाचार  : पुं० [सं० ष० त०] १. वैष्णव का आचार-विचार। २. मांस आदि असात्विक पदार्थ का सेवन न करना।
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वैष्णवी  : स्त्री० [सं० वैष्णव+ङीष्] १. विष्णु की शक्ति। २. दुर्गा। ३. गंगा। ४. तुलसी। ५. पृथ्वी। ६. श्रवण नक्षत्र। ७. अपराजिता या कोयल नाम की लता। ८. शतावर।
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वैष्णव्य  : वि० [सं० वैष्णव+यत्, या ष्यञ्] विष्णु-संबंधी। विष्णु का।
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वैसंदर  : पुं० [सं० वैश्वानर] अग्नि। आग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैसर्गिक  : वि० [सं० विसर्ग+ठञ्-इक] १. विसर्ग संबंधी। २. जो विसर्जन करने या त्यागे जाने के योग्य हो। त्याज्य।
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वैसर्जन  : पुं० [सं० विसर्जन+अण्] १. विसर्जन करने या उत्सर्ग करने की क्रिया। २. विसर्जित किया हुआ। पदार्थ। ३. यज्ञ की बलि।
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वैसर्प  : पुं० [सं० विसर्प+अण्] विसर्प नामक रोग।
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वैसा  : वि० [हिं०] १. किसी के अनुरूप या उसके अनुकरण पर किया जाने या होनेवाला। उसी तरह का। २. ऐसा। जैसा—वैसा काम करो कि लोग तुम्हें पुरस्कृत करें। अव्य० उस प्रकार।
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वैसादृश्य  : पुं० [सं० विसदृश+ष्यञ्] विसदृश या असमान होने का भाव। असमानता। विषमता।
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वैसे  : अ० [हिं० वैसा] उस प्रकार से। उस तरह से।
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वैस्तारिक  : वि० [सं० विस्तार+ठक्—इक] १. विस्तार संबंधी। विस्तार का। २. विस्तृत।
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वैस्वर्य  : पुं० [सं० विस्वर+ष्यञ्] १. विस्वर होने की अवस्था या भाव। २. उद्वेग, पीड़ा आदि के कारण होनेवाला स्वर-भंग। स्वर का विकृत होना। ३. गला बैठना।
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वैहंग  : वि० [सं० विहंग+अण्] विहंग-संबंधी। पक्षी का।
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वैहायस  : वि० [सं० विहायस्+अण्] १. आकाश में विचरण करनेवाला। २. आकाशस्थ। ३. वायु संबंधी। पुं० देवता।
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वैहार  : पुं० [सं० विहार+अण्] मगध में राजगृह के पास का एक प्राचीन पर्वत।
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वैहारिक  : वि० [सं० विहार+ठक्-इक] १. विहार संबंधी। विहार का। २. विहार के लिए काम में आनेवाला।
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वैहार्य  : वि० [सं० वि√हृ (हरना)+ण्यत्,+अण्] जिससे हँसी-मजाक किया जाता हो। पुं० साला।
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वैहासिक  : पुं० [सं० विहास+ठक्-इक] ऐसा व्यक्ति जो लोगों को बहुत अधिक हँसाता हो।
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