शब्द का अर्थ
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					वृत्र					 :
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					पुं० [सं०√वृत्त+रक्त्] १. अन्धकार। अँधेरा। २. बादल। मेघ। दुश्मन। शत्रु। ३. एक असुर जो त्वष्टा का पुत्र था तथा जिसका वध इन्द्र ने किया था।				 | 
			
			
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					वृत्रघ्न					 :
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					पुं० [सं० वृत्र√हन् (मारना)+क] १. वृत्र नामक असुर को मारनेवाले इन्द्र। २. वैदिक काल का गंगा तटपर का एक देश।				 | 
			
			
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					वृत्रघ्नी					 :
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					स्त्री० [सं० वृत्रघ्न+ङीष्] एक नदी (पुराण)। पुं०=वृत्रघ्न।				 | 
			
			
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					वृत्रत्व					 :
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					पुं० [सं० वृत्र+त्व] १. वृत्र का धर्म या भाव। २. दुश्मनी। शत्रुता।				 | 
			
			
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					वृत्रनाशन					 :
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					पुं० [सं० द्वि० त०] वृत्र नाशक असुर को मारनेवाले इन्द्र।				 | 
			
			
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					वृत्रशंकु					 :
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					पुं० [सं०] एक प्रकार का खंभा। (वैदिक)				 | 
			
			
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					वृत्रहा					 :
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					पुं० [सं० वृत्र√हन्+क्विप्] वृत्रासुर को मारनेवाले इन्द्र।				 | 
			
			
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					वृत्रारि					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] इंद्र।				 | 
			
			
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					वृत्रासुर					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] वृत्र नामक असुर। दे० ‘वृत्र’।				 | 
			
			
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