शब्द का अर्थ
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विचार :
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पुं० [सं० वि√चर् (चलना)+घञ्] [वि० विचारणीय, वैचारिक, भू० कृ० विचारित] १. किसी चीज या बात के संबंध में मन ही मन तर्क-वितर्क करके कुछ सोचने या समझने की क्रिया या भाव। आगा-पीछा। ऊँच-नीच आदि का ध्यान रखते हुए कुछ निश्चय करने की क्रिया। जैसे—तुम भी इस बात पर विचार कर लो। २. उक्त प्रकार की क्रिया के फलस्वरूप किसी बात या विषय के सम्बन्ध में मन में बननेवाला उसका चित्र। सोच-समझकर स्थिर की हुई भावना। खयाल। (आइडिया) जैसे— (क) मेरे मन में एक और विचार आया है। (ख) इस पुस्तक में आपको बहुत से नये विचार मिलेगे। ३. कोई प्रश्न सामने आने पर उसके सम्बन्ध में कुछ निर्णय करने के लिए उसके सब अंग अच्छी तरह तर्क करते हुए देखना या समझना। (कन्सिडरेशन)। ४. दो विरोधी, दलों, पक्षों मतों आदि के विवादास्पद विषय के सम्बन्ध में कुछ निश्चय करने से पहले किसी न्यायालय या विचारशील व्यक्ति के द्वारा होनेवाली सब अंगों और बातों की जाँच-पड़ताल। फैसले के लिए मुकदमे की सुनवाई (ट्रायल)। जैसे—न्यायालय में अभियोग के सम्बन्ध में होनेवाला विचार। ५. घूमना-फिरना। विचरण। |
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विचार-गोष्ठी :
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स्त्री० [सं०] विद्वानों या विशेषज्ञों की वह गोष्ठी जो किसी विशिष्ट गंभीर विषय पर विचार करने के लिए बुलाई गई हो। (सेमिनार)। |
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विचार-धारा :
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स्त्री० [सं०] १. आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि मनुष्य के मन में विचार कहाँ से और किस प्रकार उत्पन्न होते हैं और उनके कैसे-कैसे भेद या रूप होते हैं। वैचारिकी। २. विचारों का प्रवाह (आइडियालोजी)। |
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विचार-नेता :
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पुं० [सं०] वह जो किसी क्षेत्र में जन-साधारण के विचारों का नेतृत्व या मार्ग-दर्शन करता हो। |
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विचार-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] १. बहुत बड़ा विचारक। २. न्यायाधीश। |
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विचार-शक्ति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] सोचने या विचार करने की शक्ति। बुद्धि। प्रज्ञा। (इन्टेलेक्ट)। |
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विचार-स्थल :
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पुं० [ष० त०] १. विचार करनेवाला स्थल। २. अदालत। न्यायालय। |
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विचार-स्वातंत्र्य :
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पुं० [सं०] राज्य शासन आदि की ओर से मिलनेवाली वह स्वतंत्रता जिसमें मनुष्य हर तरह की बातें सोच सकता तथा उन्हें व्यक्त या प्रकाशित भी कर सकता है। (लिबर्टी ऑफ थॉट)। |
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विचारक :
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वि० [सं० वि√चर् (चलना)+णिच्+ण्वुल-अक] विचार करनेवाला। पुं० वह जो किसी विषय पर अच्छी तरह विचार करता हो। विचारशील। २. वह जो न्यायालय आदि में बैठकर अभियोगों का विचार और निर्णय करता हो। न्यायकर्ता। (मुंसिफ)। ३. पथ-प्रदर्शन। नेता। २. गुप्तचर। जासूस। |
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विचारकर्ता :
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पुं० [सं० विचार√कृ+ (करना)+तृच्, ष० त०] १. वह जो किसी प्रकार का विचार करता हो। सोचने विचारनेवाला। २. न्यायाधीश। विचाराध्यक्ष। |
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विचारज्ञ :
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पुं० [सं० विचार√ज्ञा (जानना)+क] १. वह जो विचार करना जानता हो। २. विचाराध्यक्ष। |
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विचारण :
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पुं० [सं० वि√चर् (चलना)+णिच्+ल्युट-अन] विचारने की क्रिया या भाव। |
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विचारणा :
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स्त्री० [सं० विचारण+टाप्] १. विचारने की क्रिया या भाव। २. सोची-विचारी हुई बात। ३. कोई काम करने से पहले यह सोचना कि यह काम करना चाहिए या नहीं अथवा हम से हो सकेगा या नहीं। |
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विचारणीय :
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वि० [सं० वि√चर् (चलना)+णिच्+अरीयर्] १. (बात या विषय) जिस पर विचार करना उचित हो या विचार किया जाने को हो। चिन्त्य। २. सन्दिग्ध। |
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विचारधीन :
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वि० [सं० विचार+अधीन] १. (बात या विषय) जिस पर अभी विचार हो रहा हो। २. दे० ‘न्यायाधीश’। |
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विचारना :
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अ० [सं० विचार] १. विचार करना सोचना-समझना। गौर करना। २. जानने के लिए किसी से कुछ पूछना। ३. तलाश करना। ढूँढ़ना। |
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विचारवान :
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पुं० [सं० विचार+मतुप्, म-व] १. जो ठीक तरह से विचार करता हो। विचारशील। २. जिसमें विचार करने की विशेष क्षमता हो। |
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विचारशास्त्र :
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पुं० [ष० त०] मीमांसा दर्शन। |
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विचारशील :
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पुं० [सं० ष० त०] [भाव० विचारशीलता] वह जिसमें किसी विषय पर अच्छी तरह सोचने या विचारने की शक्ति हो। विचारवान्। |
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विचाराध्यक्ष :
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पुं० [सं० ष० त०]=विचारपति। |
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विचारालय :
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पुं० [सं० ष० त०] न्यायालय। कचहरी। |
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विचारिका :
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स्त्री० [सं० विचार+कन्+टाप्, इत्व] १. प्राचीन काल की वह दासी जो घर में लगे हुए फूल पौधों की देख-भाल तथा इसी प्रकार के और काम करती थी। २. अभियोगों आदि का विचार करनेवाली स्त्री। स्त्री-विचारक। |
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विचारित :
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भू० कृ० [सं० विचार+इतच्] १. जिसके संबंध में विचार कर लिया गया हो। २. निश्चित या निर्णीत किया हुआ। |
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विचारी (रिन्) :
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पुं० [सं० वि√चर् (चलना)+णिच्+णिनि] वह जिस पर चलने के लिए बहुत बड़े-बड़े मार्ग बने हों। (जैसे—पृथ्वी)। वि० १. विचरण करने या घूमने-फिरनेवाला २. विचारक। ३. विचारशील। |
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विचार्य :
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वि० [सं० वि√चर् (चलना)+णिच्+यत्]=विचारणीय। |
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