शब्द का अर्थ
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					राग					 :
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					पुं० [सं०√रञ्ज् (रंगना)+घञ्] १. किसी चीज को रंग से युक्त करने की क्रिया या भाव। रंजित करना। रँगना। २. रँगने का पदार्थ या मसाला। रंग। ३. लाल रंग। ४. लाल होने की अवस्था या भाव। लाली। ५. प्राचीन भारत में, शरीर में लगाने का वह सुगंधित लेप जो कपूर, कस्तूरी, चंदन आदि से बनाया जाता था। अंगराग। ६. पैर में लगाने का आलता। ७. किसी के प्रति होनेवाला अनुराग या प्रेम। ८. किसी अच्छी चीज या बात के प्रति होनेवाला अनुराग, और उसे प्राप्त करने की इच्छा या कामना। अभिमत या प्रिय वस्तु पाने की अभिलाषा। ९. मन में रहनेवाली सुखद अनुभूति। १॰. खूबसूरती। सुंदरता। ११. क्रोध। गुस्सा। १२. कष्ट। तकलीफ। पीड़ा। १३. ईर्ष्या। द्वेष। मत्सर। १४. मन प्रसन्न करने की क्रिया या मनोरंजन। १५. राजा। १६. सूर्य। १७. चंद्रमा। १८. भारत के शास्त्रीय संगीत में वह विशिष्ट गान-प्रकार, जिसका स्वरूप स्वरों के उतार-चढ़ाव के विचार से निश्चित किया हुआ और ताल लय आदि विशिष्ट अंगों तथा उपांगों से युक्त होता है। विशेष—आरंभ में भरत और हनुमत् के मत से ये छः मुख्य राग निरूपति हुए थे।—भैरव, कौशिक (मालकौस) हिंडोल, दीपक, श्री और मेघ। कुछ परिवर्ती आचार्यों के मत से श्री, वसंत, पंचम, भैरव, मेघ और नट नारायण तथा कुछ आचार्यों के मत से मालव, मल्लार, श्री, वसंत, हिंडोल और कर्णाट ये ६ राग है। परवर्ती आचार्यों ने प्रत्येक की ६-६ रागिनियाँ और ६-६ पुत्र भी माने थे, और वे सब पुत्र भी राग कहलाने लगे थे। ये रागिनियाँ और राग अपने मूल या जनक राग की छाया से बहुत कुछ युक्त होते हैं। आगे चलकर सैकड़ों नई रागिनियाँ तथा राग बने थे, जिनकी स्वर-योजना आदि बहुत कुछ निरुपति तथा निश्चित है। इन सबकी गणना शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत होती है, और लोक में इन्हें पक्का गाना कहते हैं। मुहावरा—अपना राग अलापना=अपनी ही बात कहना। अपने ही विचार प्रकट करना। दूसरों की बात न सुनना। १९. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में १३ अक्षर (र, ज, र, ज और ग) होते हैं।				 | 
			
			
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					राग-पुष्प					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] गुल-दुपहरिया नामक पौधा और उसका फूल।				 | 
			
			
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					राग-पुष्पी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स+ङीप्] जवा या जपा नामक फूल और उसका पौधा।				 | 
			
			
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					राग-माला					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] कोई ऐसा गीत या गेय पद जिसमें एक साथ कई शास्त्रीय रागों का प्रयोग किया गया हो।				 | 
			
			
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					राग-रंग					 :
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					पुं० [सं० द्व० स०] १. आनंद-मंगल। २. कोई ऐसा उत्सव जिसमें आनंद-मंगल मनाया जाता हो।				 | 
			
			
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					राग-रज्जु					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] कामदेव।				 | 
			
			
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					राग-लता					 :
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					स्त्री० [सं० मध्य० स०] कामदेव की स्त्री, रति।				 | 
			
			
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					राग-षाडव					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] १. अंगूर तथा अनार के योग से बनाया जानेवाला एक तरह का खाद्य। २. आम का मुरब्बा।				 | 
			
			
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					राग-सागर					 :
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					पुं० [सं० स० त०] कोई ऐसा गेय पद या जिसमें एक साथ बहुत से शास्त्रीय रागो का प्रयोग किया जाता हो।				 | 
			
			
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					रागचूर्ण					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. कामदेव। २. खैर का पेड़।				 | 
			
			
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					रागच्छन्न					 :
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					पुं० [सं० तृ० त०] १. कामदेव। २. श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					रागदारी					 :
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					स्त्री० [हिं० राग+फा० दारी] गाने का वह प्रकार जिसमें भारत से शास्त्रीय संगीत-शास्त्र के नियमों का ठीक तरह से पालन होता हो। ठीक तरह से राग-रागिनियाँ गाने की क्रिया या प्रकार। विशेष—इसमें गीत के बोलों के ताल-बद्ध उच्चारण भी होते हैं और शास्त्रीय दृष्टि से तीन पलटे भी होते हैं।				 | 
			
			
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					रागद्रव्य					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] राग।				 | 
			
			
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					रागधर					 :
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					पुं० =शारंगधर (विष्णु) उदाहरण—तुलसी तेरो रागधर, तात, मात गुरुदेव।—तुलसी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					रागना					 :
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					अ० [सं० राग] १. रँगा जाना। रंजित होना। २. किसी के प्रति अनुरक्त होना। ३. किसी काम या बात में निमग्न या लीन होना। स० १. रँगना। २. प्रयत्न करना। ३. अनुरक्त करना। स० [हिं० राग] १. गीत आदि गाना। २. राग अलापना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					रागसारा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] मैनसिल (खनिज पदार्थ)।				 | 
			
			
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					रागांगी					 :
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					स्त्री० [सं० राग-अंग, ब० स०+ङीष् ] मजीठ। (लता)।				 | 
			
			
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					रागान्वित					 :
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					वि० [सं० राग-अन्वित, तृ० त०] १. जिसे राग या प्रेम हो। २. क्रोध से युक्त। क्रुद्ध। ३. अप्रसन्न। नाराज।				 | 
			
			
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					रागारुण					 :
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					वि० [सं० राग-अरुण, तृ० त०] तो किसी प्रकार के राग, रंग, प्रेम आदि के कारण अरुण या लाल हो रहा हो। उदाहरण—मधुर माधवी संध्या में जब रागारुण रवि होता अस्त।—पंत।				 | 
			
			
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					रागिनी					 :
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					वि० [सं० रागिनी] १. संगीत में किसी राग की पत्नी। २. भारतीय शास्त्रीय संगीत में कोई ऐसा छोटा राग जिसके स्वरों के उतार-चढ़ाव आदि का स्वरूप निश्चित और स्थिर हो। ३. चतुर और विदग्धा स्त्री। ४. मेना की बड़ी कन्या का नाम। ५. जय श्री नामक लक्ष्मी।				 | 
			
			
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					रागिब					 :
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					वि० [अ०] १. इच्छुक। २. प्रवृत्त।				 | 
			
			
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					रागी (गिन्)					 :
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					वि० [सं०√रंज्+घिनुण, वा राग+इनि] [स्त्री० रागिनी] १. राग से युक्त। २. रँगा हुआ। ३. रेंगनेवाला। ४. किसी के प्रति अनुरक्त या आसक्त। ५. लाल सुर्ख। ६. विषयवासना में पड़ा या फँसा हुआ। पुं० [सं० रागिन्] [स्त्री० रागिनी] १. अशोक वृक्ष। २. छः मात्राओं वाले छंदों का नाम। पुं० [हिं० राग+ई (प्रत्यय)] वह गवैया जो राग-रागिनियाँ गाता हो। शास्त्रीय संगीत का ज्ञाता। (पंजाब)। स्त्री० [?] मँडुआ या मकरा नामक कदन्न। स्त्री०=राज्ञी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					रागेश्वरी					 :
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					स्त्री० [सं० राग-ईश्वरी, ष० त०] संगीत में खम्माच ठाठ की एक रागिनी।				 | 
			
			
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