शब्द का अर्थ
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					रजत					 :
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					पुं० [सं०√रंज्+अतच्, न-लोप] १. चांदी। रूपा। २. सोना। स्वर्ण। ३. हाथी-दाँत। ४. गले में पहनने का हार। ५. रक्त। लहू। ६. पुराणानुसार शाकद्वीप के अस्ताचल का नाम। वि० १. चांदी के रंग का। उज्जवल। शुभ्र। २. चाँदी का बना हुआ।				 | 
			
			
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					रजत-जयंती					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] किसी व्यक्ति अथवा संस्था की २५वीं वर्ष-गाँठ पर मनाई जानेवाली जयंती। (सिलवर जुबिली)				 | 
			
			
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					रजत-द्युति					 :
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					पुं० [ब० स०] हनुमान।				 | 
			
			
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					रजत-पट					 :
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					पुं० [उपमित स०] वह परदा जिसपर सिनेमा घर में चित्र दिखलाये जाते हैं। (सिलवर स्क्रीन)				 | 
			
			
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					रजत-प्रस्थ					 :
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					पुं० [ब० स०] कैलाश पर्वत।				 | 
			
			
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					रजत-मानक					 :
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					पुं० =रजत-मान।				 | 
			
			
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					रजतमान					 :
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					पुं० [ष० त०] अर्थशास्त्र में वह स्थिति जिसमें कोई देश अपनी मुद्रा की इकाई या मात्रक का अर्घ चाँदी की एक निश्चित तौल के अर्घ के बराबर रखता है। (सिलवर स्टैन्डर्ड)				 | 
			
			
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					रजताई					 :
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					स्त्री० [हिं० रजत+आई (प्रत्यय)] शुभ्रता। सफेदी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					रजताकर					 :
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					पुं० [रजत-आकर, ष० त०] चाँदी की खान।				 | 
			
			
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					रजताचल					 :
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					पुं० [रजत-अचल, मध्य० स०] १. चाँदी का पहाड़। २. चाँदी के टुकड़ों या आभूषणों का वह ढेर या ढेरी जो दान की जाती है। महादान का भेद। ३. कैलाश पर्वत।				 | 
			
			
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					रजताद्रि					 :
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					पुं० [रजत-अद्रि, मध्य० स०] रजताचल। (दे०)				 | 
			
			
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					रजतोपम					 :
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					पुं० [रजत-उपमा, ब० स०] रूपामाखी। रूपा-मक्खी।				 | 
			
			
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