शब्द का अर्थ
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					रचना					 :
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					स्त्री० [सं०√रच्+णिच्+युच्—अन+टाप्] १. कोई चीज रचने अर्थात् बनाने की क्रिया या भाव। जैसे—फूलों से होनेवाली मालाओं की रचना। निर्माण। २. किसी चीज के बनाये जाने का ढंग या प्रकार जो उसका स्वरूप निश्चित करता है। बनावट। ३. बनाकर तैयार की हुई चीज। कृति। जैसे—किसी कवि या लेखक की नई रचना। ४. कोई चीज कौशलपूर्वक और सुन्दर रूप में बनने की क्रिया या भाव। जैसे—अनेक प्रकार की केश-रचनाएँ। ५. स्थापित करने की क्रिया। स्थापना। ६. उद्यमपूर्वक किया हुआ काम। ७. ऐसा गद्य या पद्य जिसमें कोई विशेष कौशल या चमत्कार हो। ८. पुराणानुसार विश्वकर्मा की पत्नी का नाम। सं० [सं० रचन] १. कोई चीज हाथ से बनाकर तैयार करना। बनाना। सिरजना। २. किसी बात या विधान या स्वरूप स्थिर करना। ३. किसी प्रकार की कृति प्रस्तुत करना। जैसे—कविता या पुस्तक रचना। ४. उत्पन्न करना। पैदा करना। ५. किसी काम या बात का अनुष्ठान करना। ठानना। ६. अच्छी तरह ध्यान देते हुए कोई काम या उपाय करना या युक्ति लगाना। पद—रचि रचि=बहुत ही अच्छी तरह और ध्यान तथा युक्ति-पूर्वक। ७. किसी प्रकार की काल्पनिक कृति, रूप या सृष्टि खड़ी करना। ८. अच्छी तरह संवारना-सजाना। श्रृंगार करना। ९. उचित क्रम से चीजें रखना या लगाना। अ० [सं० रंजन] १. किसी के प्रेम में फँसना। किसी पर अनुरक्त होना। २. रंगों से युक्त होना। रँगा जाना। ३. किसी चीज का अच्छी तरह और सुन्दर रूप में बनाकर प्रस्तुत होना। ४. आकर्षण और सुन्दर जान पड़ना। फबना। जैसे—उसके मुँह में पान और हाथ-पैरों में मेंहदी अच्छी रचती हैं। स०१. रँगों से युक्त करना। रँगना। २. किसी के साथ अनुराग या प्रेम का संबंध स्थापित करना। जैसे—बैरी से बच सज्जन से रच।—कहा०। वि० [स्त्री० रचनी] जो सहज में रच सकें, अर्थात् अच्छा रंग या रूप ला सके। जैसे—वाह यह कैसी अच्छी मेंहदी है।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					रचना-तंत्र					 :
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					पुं० [ष० त०] १. किसी कलात्मक कृति का वह अंग या ढंग जो उसके रचना-कौशल से संबंध रखता हो और जो सूत्रों के रूप में बद्ध हो सकता हो। रचना का कलात्मक और कौशलपूर्ण प्रकार। तकनीक (टेकनिक) २. उक्त की अवस्था या भाव। प्राविधिकता (टेक्निकैलटी)।				 | 
			
			
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					रचना-तंत्री					 :
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					वि० [सं० रचनातंत्रीय] रचना-तंत्र से संबंध रखनेवाला (टेक्निकल) जैसे—किसी कृति का रचनातंत्री ज्ञान।				 | 
			
			
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