शब्द का अर्थ
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					मृगा					 :
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					स्त्री० [स० मृग+अच्+टाप्] सहदेई नाम का पौधा।				 | 
			
			
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					मृगांक					 :
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					पुं० [मृगअंक, ब० स०] १. चंद्रमा। २. ते० ‘मृगांक रस’।				 | 
			
			
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					मृगांक-रस					 :
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					पुं० [मध्य० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रस जो सुवर्ण और रत्नादि से बनता है और क्षयरोग में अत्यधिक गुणकारक माना जाता है।				 | 
			
			
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					मृगाक्ष					 :
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					वि० [मृग-अक्षि, ब० स०+षच्] [स्त्री० मृगाक्षी] मृग की आँखों के समान सुन्दर आँखोंवाला।				 | 
			
			
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					मृगाक्षी					 :
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					वि० स्त्री० [सं० मृगाक्ष+ङीष्] मृगनयनी। मृगलोचनी।				 | 
			
			
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					मृगाजिन					 :
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					पुं० [मृग-अजिन, ष० त०] मृग-छाला। मृग-चर्म।				 | 
			
			
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					मृगाजीव					 :
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					स्त्री० [सं० मृग√जीव् (जीना)+अच्] १. कस्तूरी। २. वारुणी लता।				 | 
			
			
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					मृगांतक					 :
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					वि० [मृग-अंतक, ष० त०] मृगों या जंगली जानवरों का अन्त या नाश करनेवाला। पुं० चीता नामक हिंसक पशु।				 | 
			
			
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					मृगादन					 :
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					वि० पुं० [सं०√अद्+ल्यु —अन=अदन, मृग-अदन, ष० त०] मृगाद।				 | 
			
			
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					मृगादनी					 :
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					स्त्री० [सं० मृगादान+ङीष्] १. इंद्रावारुणी। इंद्रायन। २. सहदेई। ३. ककड़ी।				 | 
			
			
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					मृगाद्					 :
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					पुं० [सं० मृग√अद् (खाना)+क्विप्] सिंह, चीता, बाघ इत्यादि वन्य जन्तु जो मृगों को खाते हैं। वि० मृगों को खानेवाला।				 | 
			
			
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					मृगाराति					 :
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					पुं० [सं० मृग-अरति, ष० त०] कुत्ता।				 | 
			
			
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					मृगाशन					 :
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					पुं० [सं० मृग-अशन, ब० स०] सिंह। शेर।				 | 
			
			
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