शब्द का अर्थ
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					मातृ					 :
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					स्त्री० [सं० दे० ‘माता’] जननी। माता।				 | 
			
			
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					मातृ-गण					 :
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					पुं० [ष० त०] सात अथवा आठ मातृकाओं का गण या वर्ग।				 | 
			
			
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					मातृ-चक्र					 :
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					पुं० [ष० त०] मातृकाओं का समूह।				 | 
			
			
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					मातृ-तंत्र					 :
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					पुं० [ष० त०] कुछ प्राचीन जातियों में वह सामाजिक व्यवस्था जिसमें गृह की स्वामिनी माता मानी जाती थी और वह घरेलू व्यवस्था भी करती थी। (मैट्रिआर्की)।				 | 
			
			
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					मातृ-तीर्थ					 :
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					पुं० [मध्य० स०] हथेली में छोटी उँगली के मूल का उभरा हुआ स्थान। (ज्योतिषी)				 | 
			
			
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					मातृ-देश					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. मृतभूमि। २. विशेषतः विदेशों में जाकर बसे हुए लोगों की दृष्टि से उनके पूर्वजों की मातृभूमि।				 | 
			
			
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					मातृ-नंदन					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. कार्तिकेय। २. महाकरंज।				 | 
			
			
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					मातृ-पूजा					 :
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					स्त्री० [ष० त०] विवाह के दिन से पहले छोटे-छोटे मीठे पुए बनाकर पितरों का किया जानेवाला पूजन।				 | 
			
			
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					मातृ-प्रणाली					 :
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					स्त्री०=मातृ-तंत्र।				 | 
			
			
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					मातृ-बंधु					 :
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					पुं० [ष० त०] माता के संबंध का अथवा मातृपक्ष का कोई आत्मीय।				 | 
			
			
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					मातृ-भाषा					 :
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					स्त्री० [ष० त०] १. किसी व्यक्ति की दृष्टि से उसकी माँ द्वारा बोली जानेवाली भाषा जिसे वह माँ की गोद में ही सीखने लगता है। २. किसी व्यक्ति की दृष्टि से वह भाषा जो उसकी राष्ट्रीयता के अन्य लोग बोलते हों।				 | 
			
			
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					मातृ-भूमि					 :
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					स्त्री० [ष० त०] वह स्थान या देश जिसमें किसी का जन्म हुआ हो और इसीलिए जो उसे माता के समान प्रिय समझता हो।				 | 
			
			
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					मातृ-मंडल					 :
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					पुं० [ष० त०] दोनों आँखों के बीच का स्थान।				 | 
			
			
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					मातृ-माता (तृ)					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] १. माता की माता। नानी। २. दुर्गा।				 | 
			
			
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					मातृ-मुख					 :
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					वि० [ब० स०] हर काम या बात में माता का मुँह ताकनेवाला अर्थात् जड़मति। मूर्ख।				 | 
			
			
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					मातृ-यज्ञ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का यज्ञ जो मातृकाओं के उद्देश्य से किया जाता है।				 | 
			
			
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					मातृ-रिष्ट					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] फलित ज्योतिष के अनुसार एक दोष जिसके कारण प्रसव के उपरान्त माता पर संकट आता या उसके प्राण जाने का भय होता है।				 | 
			
			
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					मातृ-वत्सल					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] कार्तिकेय।				 | 
			
			
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					मातृ-शासित					 :
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					वि० [सं० तृ० त०] माता के शासन मे ही ठीक तरह से रहनेवाला, अर्थात् मूर्ख।				 | 
			
			
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					मातृ-ष्वसा (सृ)					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] मौसी। माँ की बहन।				 | 
			
			
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					मातृ-सत्रा					 :
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					स्त्री० [सं०] =मातृतंत्र।				 | 
			
			
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					मातृ-सपत्नी					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] सौतेली माता। विमाता।				 | 
			
			
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					मातृ-स्तन्य					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] माँ का दूध।				 | 
			
			
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					मातृ-हत्या					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] १. माँ को मार डालना। (मैट्रिसाइड)। २. माँ को मार डालने से लगनेवाला पाप।				 | 
			
			
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					मातृक					 :
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					वि० [सं० समास में] १. माता-सबंधी। माता का। २. माता के पक्ष से प्राप्त होनेवाला (अधिकार, व्यवहार आदि) ‘पितृक’ का विरुद्धार्थक (मैट्रिआर्कल)। पुं० १. मामा। २. ननिहाल। वि० सं० ‘मात्रिक’ का अशुद्ध रूप। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मातृक-च्छिद					 :
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					पुं० [सं० मातृ-क=शिर, ष० त०, मातृक√छिद् (काटना)+क, तुक्] परशुराम।				 | 
			
			
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					मातृक-प्रणाली					 :
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					स्त्री० दे० ‘मातृ-तंत्र’।				 | 
			
			
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					मातृका					 :
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					पुं० [सं० मातृ+कन्+टाप्] १. जननी। माता। २. गौ। ३. दूध पिलानेवाली दाई। धाय। ४. सौतेली माँ। उपमाता। ५. तांत्रिकों की एक प्रकार की देवियाँ जिनकी संख्या मात कही गयी है। ६. वर्णमाला की बारहखड़ी। ७. ठोढ़ी पर की आठ विशिष्ट नसें। ८. वह स्त्री जो लड़कियों, दाइयों आदि के कामों को देख-रेख करती हो। (मेट्रन)।				 | 
			
			
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					मातृका-क्रम					 :
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					पुं० दे० ‘अक्षर क्रम’।				 | 
			
			
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					मातृत्व					 :
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					पुं० [सं० मातृ+त्व] मातृ या माता अर्थात् संतानवती होने की अवस्था पद या भाव। (मैटर्निटी)।				 | 
			
			
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					मातृपक्ष					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] किसी की माता के पूर्वजों का कुल या पक्ष। ननिहाल।				 | 
			
			
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					मातृष्वसेय					 :
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					पुं० [सं० मातृष्वस्+ढक्, एय] [स्त्री० मातृष्वसेयी] मौसेरा भाई।				 | 
			
			
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