शब्द का अर्थ
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					भैरव					 :
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					वि० [सं० भीरु+अण्] १. जिसका रव अर्थात् शब्द भीषण हो। ३. जो देखने में भयंकर हो। भयानक। ३. घोर विनाश करनेवाला। ४. बहुत अधिक उग्र, तीव्र या विकट। उदा०—पंचभूत का भैरव मिश्रण।—पंत। पुं० [सं०] १. महादेव। शिव। २. शिव के एक प्रकार के गण जो उन्हीं के अवतार माने माने जाते हैं। ३. साहित्य में भयानक नामक रस। ४. संगीत में संपूर्ण जाति का एक राग जो शरद् ऋतु में प्रातःकाल गाया जाता है। ५. ताल के सात मुख्य भेदों में से एक। ६. कपाली। ७. ऐसी तीव्र मदिरा जिसे पीते ही आदमी वमन करने लगे। (तांत्रिक) ८. एक प्राचीन नद।				 | 
			
			
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					भैरव-झोली					 :
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					स्त्री० [सं० भैरव+हिं० झोली] एक प्रकार की लंबी झोली जो प्रायः साधु-संन्यासी अपने पास रखते हैं।				 | 
			
			
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					भैरव-तर्जक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।				 | 
			
			
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					भैरव-बहार					 :
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					पुं० [सं० भैरव+हिं० बहार] वसंत-ऋतु में प्रातः गाया जानेवाला एक संकर राग जो भैरव और बहाल के मेल से बनता है।				 | 
			
			
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					भैरव-मस्तक					 :
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					पुं० [सं०] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक।				 | 
			
			
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					भैरवांजन					 :
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					पुं० [सं० भैरव-अंजन, मध्य० स०] आँखों में लगाने का एक प्रकार का अंजन। (वैद्यक)				 | 
			
			
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					भैरवी					 :
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					स्त्री० [सं० भैरव+ङीप्] १. तांत्रिकों के अनुसार एक प्रकार की देवी जो महाविद्या की मूर्ति मानी जाती है। २. पार्वती। ३. पुराणानुसार एक नदी। ४. संगीत में एक रागिनी जो भैरव राग की भार्या कही गई है और जो शरद् ऋतु में प्रातःकाल के समय गाई जाती है। इसका स्वरग्राम इस प्रकार है				 | 
			
			
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					भैरवी यातना					 :
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					स्त्री० [सं० भैरवी+यातना व्यस्त पद] वह कष्ट जो प्राणियों को मरते समय भैरव देते हैं।				 | 
			
			
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					भैरवी-चक्र					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] तांत्रिकों का वह मंडल जो देवी के पूजन के लिए एकत्र होता है। मद्यपों और अनाचारियों आदि का वर्ग या समूह।				 | 
			
			
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					भैरवी-याचना					 :
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					स्त्री० दे० ‘भैरवी यातना’।				 | 
			
			
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					भैरवेश					 :
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					पुं० [सं० भैरव-ईश, ष० त०] शिव।				 | 
			
			
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