शब्द का अर्थ
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					भंड					 :
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					पुं० [सं०√भंड् (प्रतारण)+अच्] वि० १. अश्लील या गंदी बातें बकनेवाला। २. किसी बात को स्थान-स्थान पर कहते-फिरनेवाला। ३. धूर्त। ४. पाखंडी। जैसे—भंड तपस्वी। पुं=भाँड़। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					भँड़-ताल					 :
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					पुं० [हिं० भाँड़+ताल] एक प्रकार का गाना और नाच जिसमें गानेवाला गाता है और शेष समाजी उसके पीछे तालियाँ बजाते हैं। भँड़-तिल्ला।				 | 
			
			
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					भँड़-तिल्ला					 :
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					पुं० [हिं० भाँड़+तिल्ला] १. भँड़-ताल। २. आंडबर पूर्ण काम।				 | 
			
			
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					भँड़-फोड़					 :
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					पुं० [हिं० भाँड़ा+फोड़ना] १. मिट्टी के बर्तन तोड़ना-फोड़ना। २. दे० ‘भंडा-फोड़’। वि० १. मिट्टी के बरतन तोड़-फोड़कर नष्ट करना। २. किसी का भंडा-फोड़ या रहस्योद्घाटन करना।				 | 
			
			
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					भंडक					 :
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					पुं० [सं० भंड+कन्] खिँडरिच पक्षी।				 | 
			
			
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					भंडन					 :
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					पुं० [सं०√भंड् (बिगाड़ना)+ल्युट-अन] १. हानि। क्षति। २. कवच।				 | 
			
			
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					भंडना					 :
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					स० [सं० भंडन] १. क्षति या हानि पहुँचाना। २. खराब करना। बिगाड़ना। ३. तोड़ना-फोड़ना। ४. किसी को चारों ओर बदनाम करते फिरते रहना।				 | 
			
			
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					भँड़भाँड़					 :
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					पुं० [सं० भांडीर] एक प्रकार का कटीला क्षुप जिसकी पत्तियां नुकीली लम्बी और कँटीली होता है। इसके पौधे से पीले रंग का दूध निकलता है जो घाव और चोट पर लगाया जाता है।				 | 
			
			
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					भँडरिया					 :
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					स्त्री० [हिं० भंडारा+इया (प्रत्यय)] दीवारों में बनी हुई खानेदार तथा पल्लोंवाली छोटी अलमारी। वि० [हिं० भड्डरि] १. ढोंगी। पाखंडी। २. चालाक धूर्त। पुं० =भड्डर।				 | 
			
			
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					भँड़साल					 :
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					स्त्री० [हिं० भाँड+सं० शाला] अन्न इकट्ठा करके रखने का स्थान। खत्ती। खत्ता।				 | 
			
			
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					भंडा					 :
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					पुं० [सं० भाँड़] १. पात्र। बरतन। २. भंडार। ३. भेद। रहस्य। मुहावरा— (किसी का) भंडा फूटना=रहस्य विशेषतः कुचक्र का पता लोगों को लगना। भेद प्रकट होना। भंडा फोड़ना=गुप्त रहस्य खोलना। सब पर भेद प्रकट करना। ४. वह लकड़ी या बल्ला जिसका सहारा लगाकर मोटे और बारी बल्लों को उठाते या खिसकाते हैं।				 | 
			
			
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					भंडा-फोड़					 :
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					वि० [हि० भाँड़ा+फोड़ना] दूसरों का रहस्य विशेषतः कुचक्र लोगों पर प्रकट करनेवाला। पुं० किसी के गुप्त रहस्यों या कुचक्रों का सब पर किया जानेवाला उद्घाटन।				 | 
			
			
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					भँड़ाना					 :
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					स० [हिं० भाँड] १. उछल-कूद मचाना। उपद्रव करना। २. तोड़ना-फोड़ना। स० [हिं० भंडना का प्रे०] भंडने का काम किसी से कराना।				 | 
			
			
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					भंडार					 :
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					पुं० [सं० भांडार] १. कोष। खजाना। २. किसी चीज या बात का बहुत बड़ा आधान या आश्रय स्थान। जैसे—विद्या का भंडार। ३. अनाज रखने का कोठा। खत्ता। खत्ती। ४. वह कमरा या कोठरी जिसमें भोजन बनाने के लिए अन्न् बरतन आदि रखे जाते हैं। ५. उदर। पेट। ६. खोपड़ी। ७. नदी का तल। तलहटी। ८. किसी राजा या जमींदार की वह भूमि या गाँव जिसमें वह स्वंय खेती करता है। ९. दे० ‘भंडारा’।				 | 
			
			
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					भंडारा					 :
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					पुं० [हिं० भंडार] १. साधु-सन्यासियों आदि का भोज। वह भोज जिसमें संन्यासियों और साधुओ को खिलाया जाता है। क्रि० प्र०—करना।—देना। २. उदर। पेट। ३. खोपड़ी। ४. जीव-जन्तुओं का झुंड या समूह। क्रि० प्र०-जुड़ना ५. दे० ‘भंडार’।				 | 
			
			
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					भंडारी					 :
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					पुं० [हिं० भंडार+ई (प्रत्यय)] १. भंडार का प्रधान अध्यक्ष या व्यवस्थापक। भंडार का प्रबंधक। २. रसोइया। ३. खजांची। ४. तोपखाने का दरोगा। स्त्री० [हिं० भंडार+ई प्रत्यय)] १. कोश। खजाना। २. छोटी कोठरी। स्त्री०=१. भँडरिया। २. भंडार।				 | 
			
			
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					भंडिमा (मन्)					 :
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					स्त्री० [सं० भंड+इमनिच्] छल। धोखा।				 | 
			
			
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					भँड़ियाई					 :
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					स्त्री० [हिं० भाँड़] भाँड़ों या विदूषकों का-सा आचरण या व्यवहार। अव्य० [हिं० भँड़िहा] चोरी से। छिपे-छिपे।				 | 
			
			
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					भंडिर					 :
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					पुं० [सं०√भंड्+इलच्, र—ल] सिरस का वृक्ष। शिरीष।				 | 
			
			
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					भंडिल					 :
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					पुं० [सं० भंड+इलच्] १. सिरस का पेड़। २. दूत। ३. कारीगर। शिल्पी। वि० १. अच्छा। उत्तम। २. मांगलिक। शुभ। वि० १. अच्छा। उत्तम। २. मांगलिक। शुभ।				 | 
			
			
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					भँड़िहा					 :
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					पुं० [सं० भांड़+हर] चोर।				 | 
			
			
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					भंडी					 :
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					स्त्री० [सं० भंड+इनि] १. मंजीठ। २. सिरिस का पेड़।				 | 
			
			
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					भंडीर					 :
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					पुं० [सं० भंड+ईरन्] १. चौलाई का साग। २. बड़ का पेड। वट। २. भंड़-भाँड़। ४. सिरस।				 | 
			
			
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					भंडूक					 :
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					पुं० [सं०√भंड्+ऊक] १. भाकुर नामक मछली। श्योनाक। सोना-पाढ़ा।				 | 
			
			
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					भँडेर					 :
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					पुं० [देश] एक वृक्ष जिसकी छाल चमड़ा रँगने के काम में आती है। स्त्री०=भँड़ेहर।				 | 
			
			
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					भँडेरिया					 :
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					पुं० =भंडडर। स्त्री०=भँडरिया।				 | 
			
			
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					भंडेरियापन					 :
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					पुं० [हिं० भँडेरिया+पन (प्रत्यय)] १. ढोंग। मक्कारी। २. चालाकी। धूर्तता।				 | 
			
			
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					भँडेहर					 :
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					स्त्री० [हिं० भाँड़ा] १. मिट्टी के छोटे-छोटे बरतन। २. घड़े के आकार-प्रकार के मिट्टी के छोटे-छोटे पात्रों का एक पर एक रखा हुआ थाक। ३. लाक्षणिक अर्थ मे, बहुत अलंकृत तथा सजाई हुई ऐसी वस्तु जो देखने में भद्दी लगती हो।				 | 
			
			
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					भँडेहरी					 :
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					स्त्री० [हिं० भाँड़+हरी (प्रत्यय)] १. भाँड़ों का काम। २. भाँड़पन। वि० भाँड़ों का-सा।				 | 
			
			
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					भँड़ैती					 :
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					स्त्री० [हिं० भाँड़] १. भाँड़ों का काम या पेशा। २. भाँडों की सी ओछी बातें या हास-परिहास।				 | 
			
			
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					भँडौआ					 :
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					पुं० [हिं० भाँड़] १. भाँड़ों के गाने का गीत। २. व्यंग्य और हास्य से युक्त ऐसी कविता या गीत जो कहे या गाये जाने के योग्य न हो।				 | 
			
			
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