शब्द का अर्थ
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					बिंब					 :
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					पुं० [सं०√वी (गमन)+बन्, नि० सिद्धि०] १. किसी आकृति की वह झलक जो किसी पारदर्शक पदार्थ में दिखाई पड़ती हैं। २. परछांही। ३. प्रतिमूति। ४. चंद्रमा या सूर्य का मंडल। ५. कोई गोलाकार चिन्ह। मंडल। ६. सूर्य। ७. आभास। झलक। ८. कमंडलु। ९. गिरगिट। १॰. कुँदरू नामक फल। ११. एक प्रकार का छन्द। १२. साहित्य में, शब्द का लक्षणा या व्यंजना शक्ति से निकनलेवाला अर्थ। संकेत का विपर्याय। १३. चंद्रमा सूर्य या किसी ग्रह का थाली के आकार का वह चिपटा रूप जो साधारण देखने पर सामने रहता हैं।				 | 
			
			
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					बिंब-ग्रहण					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] भाषा विज्ञान और मनोविज्ञान मे वह बौद्धिक या मानसिक प्रक्रिया जिससे कोई शब्द या बात सुनकर अभिधा शक्ति से निकलनेवाले साधारण अर्थ से भिन्न कोई विशेष अर्थ या आशय ग्रहण किया जाता है।				 | 
			
			
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					बिंब-प्रतिबिंब-भाव					 :
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					पुं० [सं० बिंब-प्रतिबिंब, द्व० स० बिंबप्रतिबिंब-भाव० ष० त०] वह अवस्था जिसमें दो वस्तुएँ एक दूसरी की छाया या बिंब से युक्त और उसके प्रतिबिंब के रूप में होती या जान पड़ती है।				 | 
			
			
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					बिंब-फल					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] कुँदरू।				 | 
			
			
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					बिंब-सार					 :
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					पुं०=बिंबसार।				 | 
			
			
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					बिंबक					 :
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					पुं० [सं० बिम्ब+कन्] १. चंद्रमा या सूर्य का मंडल। २. प्राचीन काल का एक प्रकार का बाला। ३. कुँदरू। ४. साँचा।				 | 
			
			
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					बिंबा					 :
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					पुं० [सं० बिम्ब+अच्+टाप्] १. कुँदरू। २. प्रतिच्छाया। बिंब। ३. चंद्रमा या सूर्य का मंडल।				 | 
			
			
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					बिंबित					 :
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					भू० कृ० [सं० बिम्ब+इतच्] जिस पर बिंब या प्रतिबिंब पड़ा हो।				 | 
			
			
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					बिंबु					 :
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					पुं० [सं०] सुपारी का पेड़।				 | 
			
			
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					बिंबो (बौ)					 :
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					वि० [सं० बिंब-ओष्ठ, ब० स० पररूप] [स्त्री० बिबोष्ठी] जिसके होंठ कुँदरू की तरह लाल हो। पुं० कुँदरू जैसा लाल होंठ।				 | 
			
			
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