शब्द का अर्थ
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					पें					 :
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					स्त्री० [अनु०] १. पें पें का शब्द, जो रोने, बाजा फूँकने आदि से निकलता है। २. लाक्षणिक रूप में अभिमान या घमंड।				 | 
			
			
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					पेंअना					 :
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					स० १.=पेखना। २.=पीना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पेंका					 :
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					पुं० [सं० पितृ-गृह] ब्याही हुई स्त्री की दृष्टि से उसके माता-पिता का घर। मायका। पीहर।				 | 
			
			
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					पेंग					 :
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					स्त्री० [हिं० पटेंग, पट=पटड़ा+वेग अथवा प्लवंग ] हिंडोले या झूले का झूलते समय एक ओर से दूसरी ओर जाना। मुहा०—पेंग मारना या लेना=झूले पर झूलते समय उस पर इस प्रकार जोर पहुँचाना जिसमें उसका वेग बढ़ जाय़ और दोनों ओर वह दूर तक झूले। पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी।				 | 
			
			
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					पेंगा					 :
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					स्त्री०=पेंगिया (मैना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पेंगिया					 :
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					स्त्री० [हिं० पेग+मैना] एक प्रकार की मैना (पक्षी) जिसे सतभैया भी कहते हैं।				 | 
			
			
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					पेंघट					 :
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					पुं०=पेंघा।				 | 
			
			
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					पेंघा					 :
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					पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी जिसका शरीर मटमैले रंग का आँखें, लाल और सफेद होती है।				 | 
			
			
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					पेंच					 :
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					पुं०=पेच।				 | 
			
			
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					पेंचकश					 :
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					पुं०=पेचकश।				 | 
			
			
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					पेंजनी					 :
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					स्त्री०=पैजनी।				 | 
			
			
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					पेंठ					 :
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					स्त्री०=पैंठ।				 | 
			
			
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					पेंड़					 :
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					पुं० [सं० पंडुक] एक प्रकार का सारस पक्षी जिसकी चोंच पीली होती है। पुं०=पेड़ (वृक्ष)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पेंड़ना					 :
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					स०=बेंड़ना।				 | 
			
			
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					पेंडुकी					 :
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					स्त्री० [सं० पंडुक] १. पंडुक पक्षी। फाखता। २. सुनारों की फुँकनी जिससे वे आग सुलगाते हैं। स्त्री०=पिराक (गुझिया) नाम का पकवान।				 | 
			
			
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					पेंडुली					 :
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					स्त्री०=पिंडली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पेंदर					 :
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					पुं० [हिं० पेंदा या पेड़ू] पेड़ू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पेंदा					 :
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					पुं० [सं० पिंड] [स्त्री० अल्पा० पेंदी] १. किसी वस्तु का वह निचला भाग जिसके सहारे वह खड़ी, ठहरी या रखी जाती हो। तला। जैसे—लोटे का पेंदा, जहाज का पेंदा। पद—बे पेंदी का लोटा=ऐसा व्यक्ति जिसे स्वयं कोई बात समझने और किसी निर्णय तक पहुँचने की बुद्धि न हो, बल्कि उसे जो कोई जैसी राय देता हो उसे ठीक मान लेता हो। मुहा०—पेंदें के बल बैठना=(क) चूतड़ टेककर या पलथी मारकर बैठना। (ख) हार मानकर चुप हो जाना। २. सबसे नीचेवाला अंश या स्तर।				 | 
			
			
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					पेंदी					 :
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					स्त्री० [हिं० पेंदा] १. किसी वस्तु का बिलकुल निचला भाग। पेंदा। २. मलत्याग की इंद्रिय। गुदा। ३. तोप, बंदूक आदि की कोठी, जिसमें बारूद भरते थे। ४. गाजर, मूली आदि कन्दों की जड़। ५. कोई ऐसा आधार जिसके सहारे कोई चीज सीधी खड़ी रहती हो।				 | 
			
			
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					पेंपी					 :
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					स्त्री० [अनु०] १. कोमल कल्ला। कोंपल। २. दे० ‘पोंपी’।				 | 
			
			
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					पेंशन					 :
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					स्त्री०=निवृत्ति वेतन।				 | 
			
			
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					पेंसिल					 :
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					स्त्री०=पेन्सिल।				 | 
			
			
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					पेंसिलिन					 :
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					पुं० [अं०] आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में, एक प्रकार का प्रबल और शक्तिशाली तत्त्व जो विषाक्त कीटाणुओं का नाशक होता है। इसका आविष्कार दूसरे युरोपीय महायुद्ध के समय हुआ था।				 | 
			
			
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