शब्द का अर्थ
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					पीठ-दर्द					 :
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					वि० [स० त०] बहुत अधिक ढीठ और निर्लज्ज। पुं० १. साहित्य में नायक के चार प्रकार के सखाओं में से वह जो रुष्ट नायिका को मनाने और उसका मान हरण करने में सहायक होता है। २. किसी साहित्यिक रचना के मुख्य पात्र का वह सखा जो गुणों में उससे कुछ घटकर होता है। जैसे—रामायण में राम का सखा सुग्रीव। ३. वेश्याओं को नाच-गाना सिखलानेवाला व्यक्ति। उस्ताद।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					पीठ-दर्द					 :
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					वि० [स० त०] बहुत अधिक ढीठ और निर्लज्ज। पुं० १. साहित्य में नायक के चार प्रकार के सखाओं में से वह जो रुष्ट नायिका को मनाने और उसका मान हरण करने में सहायक होता है। २. किसी साहित्यिक रचना के मुख्य पात्र का वह सखा जो गुणों में उससे कुछ घटकर होता है। जैसे—रामायण में राम का सखा सुग्रीव। ३. वेश्याओं को नाच-गाना सिखलानेवाला व्यक्ति। उस्ताद।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 |