शब्द का अर्थ
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					निरय					 :
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					पुं० [सं० निर्√इ (गति)+अच्] नरक।				 | 
			 
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			 
			
					
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					निरयण					 :
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					वि० [सं० निर्–अयन, ब० स०] १. अयन-रहित। २. (ज्योतिष में काल-गणना) जो अयन अर्थात् राशि-चक्र की गति पर अवलंबित या आश्रित न हो। पुं० भारतीय ज्योतिष में काल-गणना और पंचांग बनाने की वह विधि (सायन से भिन्न) जो अयन अर्थात् राशि-चक्र की गति पर अवलंबित या आश्रित नहीं होती, बल्कि जिसमें किसी स्थिर तारे या बिंदु से सूर्य के भ्रमण का आरंभ स्थान माना जाता है। विशेष–सूर्य राशि-चक्र में बराबर घूमता या चक्कर लगाता रहता है। प्राचीन ज्योतिषी रेवती राशि नक्षत्र को सूर्य के चक्कर का आरंभ स्थान मानकर काल-गणना करते थे, और वहीं से वर्ष का आरंभ मानते थे। पर आगे चलकर पता चला कि इस प्रकार की गणना में एक दूसरी दृष्टि से त्रुटि है। वसंत संपात और शारद संपात के समय दिन और रात दोनों बराबर होते हैं, इसलिए वसंत-संपात के दिन गणना करने पर जो वर्ष-मान स्थिर होता था, वह उक्त पुरानी विधि के वर्ष-मान से ८.६ पल बड़ा होता था। यह नई गणना-विधि अयन अर्थात् राशि-चक्र की गति पर आश्रित थी; इसलिए इसे सायन गणना कहने लगे, और इसके विपरीत पुरानी गणना-विधि निरयण कही जाने लगी। फिर भी बहुत दिनों से प्रायः सारे भारत में ग्रहलाघव आदि ग्रंथों के आधार पर पंचांगों में काल-गणना उसी पुरानी निरयण विधि से होती आई है; परंतु और आगे चलने पर पता चला कि सायन गणना-विधि में भी कुछ वैसी ही त्रुटि है, जैसी निरयण गणनाविधि में है, क्योंकि दोनों में दृश्य या प्रत्यक्ष गणित से कुछ न कुछ अंतर पड़ता है; इसलिए अनेक आधुनिक विचारशील ज्योतिषियों का आग्रह है कि किसी प्रकार दोनों विधियों की त्रुटियाँ दूर करके पंचांग दृश्य अर्थात् नक्षत्रों, राशियों आदि की ठीक और वास्तविक स्थिति के आधार पर और उसी प्रकार बनने चाहिएँ, जिस प्रकार उन्नत पाश्चात्य देशों में नॉटिकएक, मेनक आदि बनते हैं।				 | 
			 
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			 
			
				 
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