शब्द का अर्थ
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					नथ					 :
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					स्त्री० [हिं० नाथना] १. सोने के तार आदि का बना हुआ एक प्रकार का गोलाकार गहना स्त्रियाँ नाँक में पहनती हैं। इसमें प्रायः गूँज के साथ चंदक, बुलाक या मोतियों की जोड़ी पहनाई रहती है। इसकी गिनती हिन्दुओं में सौभाग्य-चिह्रों में होती है। २. तलवार की मूठ पर लगा हुआ धातु का छल्ला। ३. दे० ‘नथनी।				 | 
			
			
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					नथना					 :
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					पुं० [सं० नस्त+हिं० ना (प्रत्य०)] नाक का अगला भाग जिसमें दोनों ओर दो छेद होते हैं। मुहा०—(किसी से) नथना फुलाना=आकृति से असंतोष, रोष आदि के लक्षण प्रकट करना। अ० [हिं० नाथना का अ० ] १. नाथा जाना। २. नत्थी होना। ३. किसी के साथ जोडा़, बाँधा या लगाया जाना। ४. छेदा या भेदा जाना। छिदना। भिदना। जैसे—पैर में काँटा नथना।				 | 
			
			
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					नथनी					 :
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					स्त्री० [हिं० नथ] १. नाक में पहनने की छोटी नथ। मुहा०—नथनी उतरना=वेश्याओं की परिभाषा में वेश्या बननेवाली लडकी का पहले-पहल किसी वेश्यागामी से संम्पर्क या संबंध होना। नथनी उतारना=वेश्या बननेवाली स्त्री के साथ पहले-पहल संभोग करना। २. बुलाक। बेसर। ३. नथ के आकार का वह छल्ला जो तलवार की मूठ पर लगा रहता है। ४. नथ के आकार की कोई गोलाकार छोटी चीज। ५. वह रस्सी जिससे बैल नाथे जाते हैं। नाथ।				 | 
			
			
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					नथि					 :
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					स्त्री०=नथ।				 | 
			
			
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					नथिया					 :
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					स्त्री०=नथ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					नथी					 :
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					अव्य०=नहीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					नथुना					 :
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					पुं० [स्त्री० नथुनी]=नथना।				 | 
			
			
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