| शब्द का अर्थ | 
					
				| धरा 					 : | स्त्री० [सं०√धृ+अप्+टाप्] १. पृथ्वी। जमीन। धरती। २. जगत। दुनिया। संसार। ३. गर्भाशय। ४. चरबी। मेद। ५. नस। नाड़ी। ६. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक तगण और एक गुरु होता है। पुं०=धड़ा। | 
			
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				| धरा-कदंब 					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कदंब। | 
			
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				| धरा-तल 					 : | पुं० [ष० त०] १. पृथ्वी का ऊपरी तल। जमीन। धरती। २. कोई ऐसा अलग या स्वतंत्र विस्तार जिसका विचार दूसरे तलों से बिलकुल अलग किया जाय। तल। सतह। जैसे—आपने अपनी मीमांसा से यह विषय एक नये धरातल पर ला रखा है। ३. किसी चीज की चौड़ाई और लंबाई का गुणनफल। रकबा। ४. पृथ्वी। | 
			
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				| धरा-धर 					 : | पुं० [ष० त०] १. वह जो पृथ्वी को धारण करे। २. शेष नाग। ३. विष्णु। ४. पर्वत। पहाड़। | 
			
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				| धरा-धरन 					 : | पुं०=धराधर।a | 
			
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				| धरा-धरी 					 : | स्त्री०=धर-पकड़। | 
			
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				| धरा-पुत्र 					 : | पुं० [ष० त०] १. मंगल ग्रह। २. नरकासुर। | 
			
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				| धरा-सुत 					 : | पुं० [ष० त०] १. मंगल ग्रह। २. नरकासुर। | 
			
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				| धरा-सुर 					 : | पुं० [सं० त०] ब्राह्मण। | 
			
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				| धराउर 					 : | स्त्री०=धरोहर।a | 
			
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				| धराऊ 					 : | वि० [हिं० धरना+आऊ (प्रत्य०)] १. (ऐसा माल) जो बहुत दिन का पड़ा या रखा हो और फलतः बिका न हो पुराना। २. जो अप्राप्य या दुर्लभ होने के कारण केवल विशेष अवसरों के लिए रखा रहे। | 
			
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				| धराका 					 : | पुं०=धड़ाका। | 
			
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				| धरात्मज 					 : | पुं० [धरा-आत्मज, ष० त०] १. मंगलग्रह। २. नरकासुर। | 
			
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				| धरात्मजा 					 : | स्त्री० [धरा-आत्मजा ष० त०] सीता। जानकी। | 
			
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				| धराधार 					 : | पुं० [धरा-आधार ष० त०] शेषनाग। | 
			
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				| धराधिप, धराधिपति 					 : | पुं० [धरा-अधिप, ष० त०, धरा-अधिपति, ष० त०] राजा। | 
			
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				| धराधीश 					 : | पुं० [धरा-अधीश, ष० त०] राजा। | 
			
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				| धराना 					 : | स० [हिं० ‘धरना’ का प्रे०] १. पकड़ाना। थमाना। २. पकड़वाना। ३. किसी को कहीं कुछ धरने या रखने में प्रवृत्त करना। जैसे—चोरों से माल धराना। ३. रखवाना। रखना। ४. नियत, निश्चित या स्थिर कराना। जैसे—किसी काम या बात के लिए दिन धराना; अर्थात निश्चित कराना। जैसे—मुहूर्त धराना। | 
			
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				| धरामर 					 : | पुं० [सं०] ब्राह्मण। | 
			
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				| धरामृत 					 : | पुं० [सं० धरा√भृ (धारण)+क्विप्, तुक्-आगम] पर्वत। पहाड़। | 
			
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				| धरावत 					 : | स्त्री० [हिं० धरना] १. धरने की क्रिया, ढंग या भाव। २. जमीन की वह माप या क्षेत्र-फल जो कूतकर मान लिया गया हो। | 
			
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				| धरावना 					 : | स०= धराना।a | 
			
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				| धराशायी (यिन्) 					 : | वि० [सं० धरा+शी (सोना)+णिनि] [स्त्री० धराशायिनी] १. जमीन पर पड़ा, लेटा या सोया हुआ। जैसे—युद्ध में वीरों का धराशायी होना, अर्थात गिर पड़ना मर जाना। २. गिर, ढह या टूटकर जमीन के बराबर हो जाना। जैसे—भवन या स्तूप धराशायी होना। | 
			
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				| धरास्त्र 					 : | पुं० [सं०] एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र, जिसका प्रयोग विश्वामित्र ने वशिष्ठ पर किया था। | 
			
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				| धराहर 					 : | पुं० [हिं० धुर=ऊपर+घर]=धौरहर (मीनार)।a | 
			
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