शब्द का अर्थ
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द्वि :
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उप० [सं०√द्व (संवरण)+डि] दो। |
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द्वि-ककार :
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पुं० [ब० स०] १. कौआ। २. चकवा। |
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द्वि-ककुद् :
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पुं० [ब० स०] ऊँट। |
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द्वि-कर्मक :
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वि० [ब० स० कर्म०] (क्रिया) १. दो कर्मोवाला। (व्याकरण में, क्रिया) जिसके साथ दो कर्म लगे हों। २. (व्याकरण में, क्रिया) जो अकर्मक और सकर्मक दोनों रूपों में चलती हो। जैसे—खुजलाना। |
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द्वि-कल :
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पुं० [हिं० द्वि+कल] दो मात्राओं का समूह। (पिंगल) |
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द्वि-क्षार :
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पुं० [द्विंगु स०] शोरा और सज्जी का समूह। |
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द्वि-गुणित :
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भू० कृ० [तृ० त०] १. दो से गुणा किया हुआ। २. जिसे दुगना किया हो। ३. दूना। |
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द्वि-गूढ़ :
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पुं० [स० त०] नाट्यशास्त्र के अनुसार लास्य के दस अंगों में से एक, जिसमें सब पद सम और सुंदर होते हैं, संधियाँ वर्त्तमान होती हैं तथा रस और भाव सुसंपन्न होते हैं। |
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द्वि-चर्मा (र्मन्) :
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पुं० [ब० स०] १. वह जिसे कोई चर्म रोग हुआ हो। २. कोढ़ी। |
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द्वि-जन्मा (न्मन्) :
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वि० [ब० स०] जिसका दो बार जन्म हुआ हो। पुं०=द्विज। |
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द्वि-जिह्व :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसे दो जीभें हों। इधर की बातें उधर और उधर की इधर कहने या लगानेवाला। ३. कठिन या दुःसाध्य। पुं० १. साँप। २. खल। दुष्ट। ३. चोर। ४. एक प्रकार का रोग। |
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द्वि-दल :
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वि० [सं० ब० स०] १. (अन्न) जिसमें दो दल या खंड हों। जैसे—अरहर, चना, आदि। २. दो दलों या पत्तोंवाला। ३. दो पटलों या पंखड़ियोंवाला। पुं० १. वह जिसमें दो दल (खंड, पत्ते या पंखड़ियाँ) हों। २. ऐसा अन्न जिससे दाल बनती हो। जैसे—अरहर, चना, मूंग आदि। ३. दाल। |
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द्वि-दल-शासन-प्रणाली :
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स्त्री० [सं० द्वि-दल द्विगु स०; द्विदल-शासन ष० त०, द्विदल शासन-प्रणाली ष० त०] वह शासन प्रणाली जिसमें शासन-अधिकार दो व्यक्तियों (या दलों अथवा वर्गों) के हाथ में रहता है। दुहत्था-शासन। दे० ‘द्वैधशासन प्रणाली’। (डायार्की) |
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द्वि-दाम्नी :
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स्त्री० [सं० द्वि-दामन् ब० स० ङीष्] वह नटखट गाय जो दो रस्सियों से बाँधी जाय। |
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द्वि-देवता :
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वि० [सं० ब० स०] १. दो देवताओं से संबंध रखनेवाला (चारु आदि) २. जिसके दो देवता हों। जो दो देवताओं के लिए हों। पुं० विशाखा नक्षत्र। |
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द्वि-देह :
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वि० [सं० ब० स०] दो देहों या शरीरोंवाला। पुं० गणेश (जिनका सिर एक बार कट गया था, फिर हाथी का सिर जोड़ा गया था।) |
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द्वि-द्वादश :
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पुं० [सं० द्व० स०] फलित ज्योतिष में एक प्रकार का योग जो विवाह की गणना में अशुभ माना गया है। |
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द्वि-धातु :
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वि० [सं० ब० स०] जो दो धातुओं के योग से बना हो। पुं० १. दो धातुओं के मेल से बनी हुई मिश्रित धातु। २. गणेश। |
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द्वि-नग्नक :
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पुं० [सं० द्वि=द्वितीय-नग्नक] वह व्यक्ति जिसकी सुन्नत हुई हो। |
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द्वि-नवति :
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वि० [सं० मध्य० स०] बानबे। स्त्री० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है—९२ |
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द्वि-नेत्रभेदी (दिन्) :
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पुं० [सं० द्वि-नेत्र द्विगु स०, द्विनेत्र√भिद् (फाड़ना)+णिनि] वह जिसने किसी की दोनों आँखें फोड़ दी हों। |
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द्वि-पक्ष :
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वि० [सं० ब० स०] दे० ‘द्विपक्षी’। पुं० १. दो पक्षों का समय अर्थात् पूरा चांद्र मास। २. चिड़िया। पक्षी। ३. महीना। मास। ४. वह स्थान जहाँ दो रास्ते मिलते हों। दो-राहा। |
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द्वि-पंचमूली :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] दशमूल। |
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द्वि-पंचाशत् :
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वि० [सं० द्विगु स०] बावन। स्त्री० उक्त की सूचक संख्या; जो इस प्रकार लिखी जाती है—५२ |
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द्वि-पद :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसके दो पद या पैर हों। जैसे—मनुष्य, पक्षी आदि। २. जिसमें दो पद या शब्द हों। समस्त। यौगिक। ३. (गणित में ऐसी संख्या) जिसमें दो अलग-अलग अंक या संख्याएँ एक साथ मानी और ली जायँ। (बाईनेमिअल) जैसे—३/५+१/२। पुं० १. दो पैरोंवाला जंतु या जीव। २. आदमी। मनुष्य। ३. ज्योतिष के अनुसार मिथुन, तुला, कुंभ, कन्या और धनु लग्न का पूर्व भाग। ४. वास्तु मंडल में का एक कोठा या घर। |
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द्वि-पदा :
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स्त्री० [सं० द्विपद+टाप्] दो पदोंवाली ऋचा। |
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द्वि-पदिक :
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पुं० [सं० द्विपदी+कन्, ह्रस्व] शुद्धराग का एक भेद। |
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द्वि-पदी :
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स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्] १. प्राकृत भाषा का एक प्रकार का छंद। २. दो चरणों की कविता या गीत। ३. एक तरह का चित्र काव्य। |
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द्वि-पर्णा :
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स्त्री० [सं० ब० स०, टाप्] एक प्रकार के जंगली बेर का पेड़। |
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द्वि-पष्ठ :
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पुं० [सं० ब० स०] जैनों के नौ वासुदेवों में से एक। |
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द्वि-पाद :
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पुं०, वि०=द्विपद। |
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द्वि-पायी (पिन्) :
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पुं० [सं० द्वि√पा (पीना)+णिनि] [स्त्री० द्विपायिनी] हाथी। |
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द्वि-पार्श्विक :
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वि० [सं० द्वि-पार्श्व द्विगु सं०,+ठन्—इक] १. दो या दोनों पार्श्वों से संबंध रखनेवाला। २. दो या दोनों पक्षों की ओर से होनेवाला। द्विपक्षी। |
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द्वि-पास्य :
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पुं० [सं० द्विप-अस्य ब० स०] गणेश (जिनका मुख हाथी के मुख के समान है)। |
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द्वि-बाहु :
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वि० [सं० ब० स०] जिसके दो बाहु हों। द्विभुज। पुं० दो हाथोंवाले जीव या प्राणी। |
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द्वि-भा :
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स्त्री० [सं० द्विगु० स०] १. प्रकाश। २. प्रभा। चमक। उदा०—जगत ज्योति तमस द्विभा।—पन्त। |
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द्वि-भाव :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसमें दो भाव हों। २. कपटी। छली। पुं० १. किसी से रखा जानेवाला द्वेषभाव। २. दुराव। छिपाव। ३. कपट। छल। |
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द्वि-भाषी (षिन्) :
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पुं० [सं० द्वि√भाष् (बोलना)+णिनि] दो भाषाएँ जानने और बोलनेवाला। २. दे० ‘दुभाषिया’। |
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द्वि-भुज :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसके दो हाथ हों। दो हाथोंवाला २. (क्षेत्र या आकृति) जिसकी दो भुजाएँ हों। पुं० मनुष्य। |
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द्वि-भूम :
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वि० [सं० ब० स० अच्] दो खंडोंवाला (मकान)। |
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द्वि-मातृ :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसकी दो माताएँ हों। २. जो दो माताओं के गर्भ से उत्पन्न हो। पुं० १. जरासंध। २. गणेश। |
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द्वि-मात्र :
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वि० [सं० ब० स०] दो मात्राओंवाला। पुं० दीर्घ स्वर और उनका चिह्न। |
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द्वि-मुख :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० द्विमुखी] जिसके दो मुख हों। दो मुँहोंवाला। पुं० १. पेट में से निकलनेवाला एक प्रकार का सफेद कीड़ा। २. दो मुँहा साँप। |
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द्वि-मुखा :
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स्त्री० [सं० ब० स०, टाप्] जोंक। |
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द्वि-मुखी :
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स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्] १. वह गाय जो बच्चा दे रही हो। (अर्था जिसके एक ओर एक तथा दूसरी ओर दूसरा मुँह हो)। वि० सं० ‘द्विमुख’ का स्त्री०। |
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द्वि-यजुष :
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स्त्री० [सं० ब० स०] यज्ञ-मंडप आदि बनाने की एक तरह की ईंट। पुं० यजमान। |
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द्वि-रद :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० द्विरदा] दो दाँतोंवाला। पुं० १. हाथी। २. दुर्योधन के भाई का नाम। |
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द्वि-रसन :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० द्विरसना] १. दो जिह्वाओं वाला। २. कभी कुछ और कभी कुछ कहनेवाला। जिसकी बात का विश्वास न किया जा सके। पुं० साँप। |
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द्वि-रात्र :
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पुं० [सं० द्विगु स०, अच्] दो रातों में पूर्ण होनेवाला एक तरह का यज्ञ। |
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द्वि-रेता (तस्) :
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पुं० [सं० ब० स०] १. दो भिन्न जातियों के पशुओं से उत्पन्न पशु। जैसे—खच्चर। २. दोगला। वर्ण-संकर। |
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द्वि-रेफ :
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पुं० [सं० ब० स०] १. भ्रमर। भौंरा। २. बर्बर। |
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द्वि-वज्रक :
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पुं० [सं० मध्य० स०,+कन्] ऐसा घर जिसमें सोलह कोण हों। सोलह कोनोंवाला घर। |
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द्वि-विंदु :
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पुं० [सं० ब० स०] विसर्ग। |
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द्वि-विध :
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विं० [सं० ब० स०] दो प्रकार का। दो तरह का। क्रि० वि० दो तरह या प्रकार से। |
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द्वि-विधा :
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पुं० [सं० द्विगु स०] दुबधा। असमंजस। |
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द्वि-विवाह :
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पुं० [सं० द्विगु स०] वह सामाजिक प्रथा जिसमें कोई स्त्री या पुरुष एक ही समय में एक साथ दो पुरुषों या स्त्रियों के साथ विवाह संबंध स्थापित करके दाम्पत्य जीवन बिताता हो। (बाइगैमी) |
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द्वि-वेद :
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वि० [सं० द्विगु स०,+अण्—लुक] दो वेदों का ज्ञाता। |
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द्वि-व्रण :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक ही व्यक्ति को होनेवाले दो प्रकार के व्रण या घाव। |
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द्वि-शफ :
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पुं० [सं० ब० स०] ऐसा पशु जिसके खुर फटे हों। जैसे—गाय, हिरन आदि। |
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द्वि-शरीर :
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पुं० [सं० ब० स०] ज्योतिष के अनुसार कन्या, मिथुन, धनु और मीन राशियाँ, जिनका प्रथमार्द्ध स्थिर और द्वितीयार्द्ध चर माना जाता है। |
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द्वि-शीर्ष :
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वि० [सं० ब० स०] जिसके दो सिर हों। पुं० १. वैरी। शत्रु। २. अग्नि। |
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द्वि-सदस्य निर्वाचीक्षेत्र :
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पुं० [सं० द्वि-सदस्य, द्विगु स०, द्विसदस्य निर्वाचिन् ष० तृ०, क्षेत्र व्यस्त पद] ऐसा निर्वाचन-क्षेत्र जिसमें से एक साथ दो सदस्य निर्वाचित होते हों। (डबल मेंबर कांस्टिट्यूएन्सी) |
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द्वि-सप्तति :
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वि० [सं० मध्य० स०] १. बहत्तर। २. बहत्तरवाँ। पुं० बहत्तर की संख्या या उसका सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है—७२। |
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द्वि-हरिद्रा :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] दारुहल्दी। |
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द्वि-हृदया :
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वि०, स्त्री० [सं० ब० स०] गर्भवती (स्त्री)। |
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द्विक :
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वि० [सं० द्वि+कन्] १. जिसमें दो अंग या अवयव हों। २. दोहरा। पुं० [द्वि०-क ब० स०] १. कौआ। २. चकवा। |
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द्विगु :
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वि० [ब० स०] जिसके पास दो गौएँ हों। पुं० तत्पुरुष समास का एक भेद जिसमें पूर्वपद संख्या वाचक होता है। जैसे—त्रिभुवन, पंचकोण, सप्तदशी आदि। विशेष—पाणिनि ने इसे कर्मधारय के अंतर्गत रखा है; पर और लोग इसे स्वतंत्र समास मानते हैं। |
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द्विगुण :
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वि० [सं० द्वि√गुण (गुणा करना)+अच् (कर्म में)] दुगना। दूना। |
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द्विघटिका :
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स्त्री० [द्विगुस-] दु-घड़िया मुहूर्त्त। |
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द्विचत्वारिंश :
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वि० [सं० द्विचत्वारिंशत+डट्] बयालीसवाँ। |
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द्विचत्वारिंशत् :
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वि० [मध्य० स०] जो चालीस से दो अधिक हो। बयालीस। पुं० उक्त की सूचक संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है—४२ |
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द्विज :
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वि० [सं० द्वि√जन् (उत्पत्ति)+ड] जिसका जन्म दो बार हुआ हो। जो दो बार उत्पन्न हुआ हो। पुं० १. अंडे से उत्पन्न होनेवाले जीव-जंतु जो एक बार अंडे के रूप में और दूसरी बार अंडे में से बाहर निकलने के समय (इस प्रकार दो बार) जन्म लेते हैं। २. चिड़िया। पक्षी। ३. हिंदुओं में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण के पुरुष जिनको शास्त्रानुसार यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार है और यज्ञोपवीत के समय जितना दूसरा जन्म होना माना जाता है। ४. ब्राह्मण। ५. चंद्रमा, जिसका पुराणानुसार दो बार जन्म हुआ था। ६. दाँत, जो एक बार लड़कपन में टूट चुकने पर फिर दोबारा निकलते हैं। ७. नेपाली धनियाँ। तुंबुरु। |
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द्विज-दंपति :
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पुं० [सं० द्विज-दंपती] दान, पूजा आदि के लिए बना हुआ धातु का वह पत्तर जिस पर स्त्री और पुरुष या लक्ष्मी और नारायण की युगल मूर्तियाँ बनी होती हैं। |
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द्विज-पति :
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पुं० [ष० त०] १. ब्राह्मण. २. चंद्रमा। ३. गरुड़। ४. कपूर। |
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द्विज-प्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] सोमलता। |
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द्विज-बंधु :
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पुं० [ष० त०] १. नाममात्र का वह द्विज जिसका जन्म तो द्विज माता-पिता से हुआ हो पर जो स्वयं द्विजों के संस्कार और क्रम न करता हो। २. नाम मात्र का ब्राह्मण। |
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द्विज-ब्रुव :
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पुं० [द्वि√ब्रू (बोलना)+क, उप० स०]=द्विज-बंधु। |
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द्विज-राज :
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पुं० [ष० त०] १. श्रेष्ठ ब्राह्मण। २. चंद्रमा। ३. गरुड़। ४. कपूर। |
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द्विज-वाहन :
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पुं० [ब० स०] विष्णु; जिनका वाहन गरुण (पक्षी) है। |
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द्विज-व्रण :
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पुं० [ष० त०] दाँत का एक रोग। दंतार्बुद। |
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द्विज-शप्त :
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पुं० [तृ० तृ०] बर्बट या भटवाँस, जिसे खाना ब्राह्मणों के लिए वर्जित है। |
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द्विजलिंगी (गिन्) :
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पुं० [सं० द्विज-लिंग ष० त०,+इनि] १. वह जो किसी हीन वर्ण का होने पर भी ब्राह्मणों की तरह या उनके वेश में रहता हो। २. क्षत्रिय। |
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द्विजा :
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स्त्री० [सं० द्विज+टाप्] १. ब्राह्मण या द्विज की स्त्री। २. पालक का साग जो एक बार काट लिये जाने पर भी दोबारा बढ़ जाता है। ३. संभालू का बीज। रेणुका। ४. नारंगी। |
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द्विजांगिका :
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स्त्री० [सं० द्विज-अंग ब० स०, कप्-टाप्, इत्व] कुटकी। |
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द्विजांगी :
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स्त्री० [सं० द्विज-अंग ब० स०, ङीष्] कुटकी। |
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द्विजाग्रज :
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पुं० [सं० द्विज-अग्रज ष० तृ०] श्रेष्ठ ब्राह्मण। |
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द्विजाति :
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पुं० [स० ब० स०]=द्विज। (देखें) |
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द्विजानि :
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पुं० [सं० द्वि-जाया ब० स०, नि आदेश] ऐसा जिसकी दो पत्नियाँ हों। |
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द्विजायगी :
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स्त्री०=दुजायगी। |
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समानार्थी शब्द-
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द्विजायनी :
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स्त्री० [सं० द्विज-अयन ष० तृ०, ङीप्] यज्ञोपवीत। |
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द्विजालय :
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पुं० [सं० द्विज-आलय ष० त०] १. द्विज का घर। २. घोंसला। |
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द्विजावंती :
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स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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द्विजेंद्र :
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पुं० [सं० द्विज-इंद्र ष० त०] १. चंद्रमा। २. ब्राह्मण। ३. गरुड़। ४. कपूर। |
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द्विजेश :
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पुं० [सं० द्विज-ईश ष० त०]=द्विजेंद्र। |
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द्विजोत्तम :
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पुं० [सं० द्विज-उत्तम स० त०] द्विजों में श्रेष्ठ, ब्राह्मण। |
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द्विट् (ष्) :
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वि० [सं०√द्विष् (शत्रुता)+क्विप] शत्रु-भाव रखनेवाला। पुं० दुश्मन। वैरी। शत्रु। |
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द्विट्सेवी (विन्) :
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पुं० [सं० द्विट्-सेवा ष० त०,+इनि] वह जो राजा के शत्रु से मिला हो या मित्रता रखता हो। |
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द्विठ :
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पुं० [सं० ब० स०] १. विसर्ग। २. स्वाहा। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वित :
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पुं० [सं०] १. एक देवता का नाम। २. एक प्राचीन ऋषि। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वितय :
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वि० [सं० द्वि+तयप्] १. दो अंगों या अवयवोंवाला। २. जो दो प्रकार की चीजों से मिलकर बना हो। ३. दोहरा। |
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द्वितीय :
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वि० [सं० द्वितीय] [स्त्री० द्वितीया] १. गिनती में दूसरा। २. महत्त्व, मान आदि की दृष्टि से दूसरी श्रेणी का। मध्यकोटि का। पुं० पुत्र, जो अपनी आत्मा का ही दूसरा रूप माना जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वितीय-त्रिफला :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] गंभारी। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वितीयक :
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वि० [सं० द्वितीय+कन्] १. दूसरा। २. किसी एक चीज के अनुकरण पर या अनुरूप बना हुआ वैसा ही दूसरा। (डुप्लिकेट)। |
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द्वितीया :
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स्त्री० [सं० द्वितीय+टाप्] १. चांद्रमास के प्रत्येक पक्ष की दूसरी तिथि। दूज। २. वाम-मार्गियों की परिभाषा में, खाने के लिए पकाया हुआ मांस। |
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द्वितीयाकृत :
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वि० [सं० द्वितीय+डाच्] कृतके योग में (खेत) जो दो बार जोता गया हो। |
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द्वितीयाभा :
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स्त्री० [सं० द्वितीया-आ√भा (दीप्ति)+क—टाप्] दारुहल्दी। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वितीयाश्रम :
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पुं० [सं० द्वितीय-आश्रम कर्म० स०] गार्हस्थ्य आश्रम जो ब्रह्मचर्य आश्रम के बाद पड़ता है। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वित्व :
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पुं० [सं० द्वि+त्व] १. एक साथ दो होने की अवस्था या भाव २. दोहरे होने की अवस्था या भाव। ३. व्याकरण में एक ही व्यंजन का एक साथ दो बार या दोहरा होनेवाला संयोग। जैसे—‘विपन्न’ में का ‘न्न’ और ‘सम्पत्ति’ में क ‘त्त’ द्वित्व है। ४. भाषा विज्ञान में, जोर, देने के लिए किसी शब्द का दो बार होनेवाला उच्चारण। जैसे—जल्दी जल्दी काम पूरा करो। |
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द्विधा :
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क्रि० वि० [सं० द्वि-धाच्] १. दो प्रकार से। दो तरह से। २. दो खंडों, टुकड़ों या भागों में। ३. दोनों ओर। स्त्री०=दुबिधा। |
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समानार्थी शब्द-
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द्विधा-करण :
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पुं० [ष० त०] दो भागों में विभाजित करना। दो खंड करना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
द्विधा-गति :
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पुं० [ब० स०] जल और स्थल दोनों में विचरण करनेवाला। प्राणी। जैसे—केकड़ा, मगर, मेढ़क आदि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
द्विधातविक :
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वि० [सं० द्विधातु+ठन्—इक] १. दो अलग-अलग धातुओं से संबंध रखनेवाला। (बाइमेटेलिक) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
द्विधातु-वाद :
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पुं० [ष० त०] अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत जिसके अनुसार किसी देश में दो विभिन्न धातुओं के सिक्के चलते हैं और दोनों की गिनती वैध मुद्रा में होती है। (बाइमेटलिज्म) |
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द्विधातुता :
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स्त्री० [सं० द्विधातु+तल्—टाप्] द्विधातु होने की अवस्था या भाव। |
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द्विधातुत्व :
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पुं० [सं० द्विधातु+त्व]=द्विधातुता। |
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द्विधात्मक :
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पुं० [सं० द्विधा-आत्मन् ब० स०, कप्] जायफल। |
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द्विधालेख्य :
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पुं० [सं० द्विधा√लिख्+ण्यत् (आधा के)] हिंताल का पेड़। |
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द्विप :
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पुं० [सं० द्वि√पा (पीना)+क] १. हाथी। २. नागकेसर। |
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द्विपक्षी (क्षिन्) :
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वि० [सं० द्वि-पक्ष द्विगु स०,+इनि] १. सौर मास के दो पक्षों अर्थात् एक महीने में होनेवाला। २. कुछ एक पक्ष में और कुछ दूसरे पक्ष में पड़नेवाला जैसे |
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द्विपट-वान :
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पुं० [सं० पट-वान ष० त०, द्वि पटवान ब० स०] १. दोहरे अरज का कपड़ा। २. बड़े अरज का कपड़ा। (कौ०) |
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द्विपाद-वध :
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पुं० [ष० त० या तृ० तृ०] अपराधी के दोनों पैर काट लेने का दंड। |
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द्विमातृज :
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वि० पुं० [सं० द्वि-मातृ द्विगु स०√जन् (उत्पत्ति)+ड]=द्विमातृ। |
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द्विमीढ :
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पुं० [सं०] हस्तिनापुर के राजा हस्ति का एक पुत्र जो अजमीढ़ का भाई था। (हरिवंश) |
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द्विरदांतक :
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पुं० [सं० द्विरद-अंतक ष० त०] हाथी को मार डालनेवाला, सिंह। |
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द्विरदाशन :
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पुं० [सं० द्विरद-अशन ब० स०] सिंह। |
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द्विरागमन :
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पुं० [सं० द्विर्-आगमन सुप्सुपा स०] १. दूसरी बार आना। पुनरागमन। २. वधू का अपने पति के साथ दूसरी बार अपनी ससुराल में आना। गौना। |
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द्विराज-शासन :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० द्विराज-शासित] किसी देश या प्रदेश पर दो राज्यों या दो राष्ट्रों का होनेवाला सम्मिलित शासन। (कान्डोमीनियम) |
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द्विराप :
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पुं० [सं० द्विर्-आ√पा (पीना+क] हाथी। |
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द्विरुक्त :
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वि० [सं० द्विर्-उक्त सुप्सुपा स०] [भाव० द्विरुक्ति] १. दो बार कहा हुआ। २. दुबारा कहा हुआ। ३. दो प्रकार से कहा हुआ और फलतः अनावश्यक या निरर्थक। पुं० पुनर्कथन। |
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द्विरुक्ति :
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स्त्री० [सं० द्विर्-उक्ति सुप्सुपा स०] १. कोई बात दुबारा या दूसरी बार कहना। पुनरुक्ति। २. दे० ‘द्वित्व’। |
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द्विरुढ़ा :
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स्त्री० [सं० द्विर-ऊढ़ा सुप्सुपा स०] वह स्त्री जिसके एक विवाह के बाद दूसरा विवाह हुआ हो। |
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द्विविद :
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पुं० [सं०] १. एक बंदर जो रामचंद्र जी की सेना का एक सेनापति था। २. पुराणानुसार एक बंदर जिसे बलदेव ने मारा था। |
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द्विवेदी (दिन्) :
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पुं० [सं० द्विवेद+इनि] १. दो वेदों का ज्ञाता। २. ब्राह्मणों की एक उपजाति। दूबे। |
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द्विवेशरा :
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स्त्री० [सं० द्वि-वेश द्विगु स०√रा (दान)+क—टाप्] दो पहियों की छोटी गाड़ी। |
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द्विशिर :
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वि० [सं० द्विशिरस्] जिसके दो सिर हों। दो सिरोंवाला। मुहा०—कौन द्विशिर=कौन अपनी जान देना चाहता है ? किसे अपने मरने का भय नहीं है ? |
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द्विष् :
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वि० [सं०√द्विष् (शत्रुता)+क्विप्] द्वेष रखनेवाला। |
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द्विष्ट :
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वि० [सं०√द्विष्+क्त] १. जो द्वेष से युक्त हो। द्वेषपूर्ण। २. जिसके प्रति द्वेष किया जाय या हो। पुं० ताँबा। |
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द्विसंतप :
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वि० [सं० द्विषत्√तप् (संताप)+णिच्+खच्, मुम्, ह्रस्व] अपने द्वेषियों या शत्रुओं को कष्ट पहुँचानेवाला। |
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द्विसदनात्मक :
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वि० [सं० द्वि-सदन द्विगु स०, द्विसदन-आत्मन ब० स०, कप्] (शासन प्रणाली) जिसमें कानून, या विधान आदि बनानेवाली एक की जगह दो संस्थाएँ (विधानमंडल) होती हैं। (बाइकेमरल) |
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द्विसहस्राक्ष :
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पुं० [सं० द्वि-सहस्र द्विगु स०, द्विसहस्र-अक्षि ब० स०] शेषनाग। |
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द्विह्न :
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पुं० [सं० द्वि√हन् (मारना)+क्विप्] हाथी (जो सूँड़ से मारता है)। |
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