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दे  : स्त्री० [सं० देवी] स्त्रीयों के लिए एक आदर-सूचक शब्द। देवी। पुं बंगाली कायस्थों के एक वर्ग की उपाधि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देई  : स्त्री० [सं० देवी] १. देवी। २. ‘देवी’ का वह विकृत रूप जो प्रायः स्त्रियों के नाम के अंत में लगता है। जैसे—हीरादेई। (पश्चिम)
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देउ  : पुं०=देव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देउर  : पुं० [स्त्री० देउरानी]=देवर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देख  : स्त्री० [हिं० देखना] देखने की क्रिया या भाव। अवलोकन। (यौ० पदों के आरम्भ में) जैसै—देख-भाल, देख-रेख। मुहा०—स्त्री० देख में=(क) आँखों के सामने। (ख) निरीक्षण या देख-रेख में।
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देख-भाल  : स्त्री० [हिं० देखना+भालना] १. अच्छी तरह देखने या भालने की क्रिया या भाव। जैसे—रुपये देख-भालकर लेना, कोई खोटा ना ले लेना। २. देखा-देखी। साक्षात्कार। ३. देख-रेख। हिफाजत।
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देख-रेख  : स्त्री० [हिं० देखना+सं० प्रेक्षण] इस प्रकार किसी पर दृष्टि रखना कि (क) कोई किसी विशिष्ट अवस्था या स्थिति में रहे। जैसे—चोरों या कैदियों की देख-रेख रखना। और (ख) किसी की स्थिति अच्छी बनी रहे और बिगडने न पावे। जैसे—रोगी की देख-रेख करना।
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देखन  : स्त्री० [हि० देखना] देखने की क्रिया, ढ़ंग या भाव।
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देखनहारा  : वि० [हिं० देखना+हारा (प्रत्य०)] [स्त्री० देखनहारी] देखनेवाला।
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देखना  : स० [सं० दृश का रूप दृक्ष्यति प्रा० देक्खह] १. किसी पदार्थ के रूप-रंग, आकार आदि का ज्ञान या परिचय कराने के लिए उसकी ओर आँखें करना। दृष्टि-शक्ति अथवा नेत्रों से किसी चीज की सब बातों का ज्ञान प्राप्त करना। अवलोकन करना। निहारना। जैसे—यह लडका बहुत दूर तक की चीजें देख सकता है। संयो० क्रि०—पाना।—लेना।—सकना। पद—देखते-देखते=(क) आँखों के सामने से। देखते रहने की दशा में। जैसे—देखते-देखते किताब गायब हो गई। (ख) तत्काल। तुरंत। जैसे—देखते देखते उसके प्राण निकल गये। (किसी के) देखते या देखते हुए=किसी के उपस्थित या वर्तमान रहते हुए। विद्यमानता में। समक्ष। सामने। देखने में=(क) बाह्य लक्षणों के आधार पर या बाहरी चेष्टाओं से। जैसे—देखने में तो वह बहुत सीधा है। (ख) आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि के विचार से। जैसे—यह फल देखने में बहुत अच्छा है। मुहा०—देखते रह जाना=कोई अनोखी या विलक्षण बात होने पर चकित भाव से किंकर्तव्य-विमूढ़ होकर रह जाना। जैसे— सब लोग देखते रह गये, और चोर गठरी उठाकर चलता बना। २. मानसीक शक्ति के द्वारा किसी बात या विषय में सब अंगों का ठीक और पूरा ज्ञान अथवा परिचय प्राप्त करना। बुद्धि से समझना और सोचना। जैसे—(क) आपने देख लिया होगा कि तर्क में कुछ भी दम (या सार) नहीं हैं। (ख) लाओ, जरा हम भी देखे कि यह पुस्तक कैसी है। पद—देखना चाहिए, देखा चाहिए या देखिये=ना जाने क्या होगा। कौन जाने। कह नहीं सकते कि ऐसा होगाया नहीं। जैसे—देखिए, आज भी उनका उत्तर आता है या नहीं। ३. पुस्तक, लेख, समाचार आदि ध्यान से पढ़ना। जैसे—आज का अखबार तो आप देख ही चुके होंगे। ४. त्रुटियाँ, भूलें आदि निकालने अथवा गुण, विशेषताएँ आदि जानने के लिए कोई चीज पढना। जैसे—(क) जब तक हम देख न लें, तब तक अपना लेख छपने के लिए मत भेजना। (ख) परिक्षक परीक्षार्थियों की कापियाँ देखते हैं। ५. दर्शक के रूप में कही जाकर उपस्थित होना या पहुँचना अथवा किसी से मिलना या भेंट करना। जैसे—(क) आज घर के सभी लोग नाटक देखने गये है। (ख) डाक्टर रोगी देखने गये है। ६. किसी प्रकार की स्थिति में रहकर उसका अनुभव या ज्ञान प्राप्त करना अथवा उस स्थिति का भोग करना। जैसे—(क) उन्होंने अपने जीवन में कई बार बहुत अच्छे दिन देखे थे। (ख) हम लोगों ने दो-दो महायुद्ध देखे है। (ग) आपस के वैर-विरोध का परिणाम तो तुम भी देख ही चुके हो। (घ) तुम्हारा जी चाहे तो तुम भी ऐसी एक दुकान कर देखो। पद—देखा जायगा=अभी चिंता करने की आवश्यकता नहीं, जब जैसी स्थिति होगी तब वैसा किया जायगा। ७. जानकारी प्राप्त करना या पता लगाना। जैसे—जरा एक बार उनसे भी बातें करके देख लो कि वे क्या चाहते हैं। ८. जानकारी प्राप्त करने या पता लगाने के लिए कहीं या किसी के पास जाना या उससे मिलना। जैसे—इस बीमारी में उनके प्रायः सभी मित्र उन्हें देखने गये थे। पद—देखना-सुनना=जानकारी प्राप्त करना। समझना-बूझना। पता लगाना। जैसे—बिना देखे-सुने मकान नहीं लेना चाहिए। ९. कार्य प्रणाली, गुण-दोष, स्थिति आदि का पता लगाने के लिए कहीं जाना या पहुँचना। जाँच या निरीक्षण करना। जैसे—निरीक्षक महोदय हर महीने यह विद्यालय देखने आते है। १॰. पता लगाने या प्राप्त करने के लिए खोज या तलाश करना। ढूढ़ना। जैसे—(क) व महीनों से अपने रहने के लिए किराये का एक अच्छा मकान (या कन्या के लिए वर) देख रहे हैं। (ख) सारा घर देख डाला पर किताब का कहीं पता न चला। ११. किसी प्रकार की प्रतियोगिता, मुकाबला या सामना होने पर प्रतिद्वंद्वी की सब बातें सहने और उनका पूरा जवाब देने में समर्थ होना। जैसे—हम भी देख लेगें की वे कितने बहादुर हैं। १२. वरदाश्त करना। सहन करना। जैसे—हम यह अंधेर (अथवा अत्याचार) नहीं देख सकते। १३. किसी काम, बात या स्थिति का ठीक और पूरा ध्यान रखना। जैसे—(क) देखना, लडका कही भीड़ में खो या दब ना जाय। (ख) हमारे पीछे यह मकान देखते रहिएगा। पद—देखो=(क) ध्यान दो। विचार करो। जैसे—देखो, लोग अपना काम किस तरह निकालते हैं। (ख) ध्यान रखो। सावधान रहो। जैसे—देखो, वह हाथ से निकलने न पावे। (ग) सुनो। जैसे—देखो, कोई सड़ी-गली तरकारी मत उठा लाना। (घ) प्रतीक्षा करो। जैसे—देखो, वह कब घर लौटता है।
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देखनि  : स्त्री०=देखन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देखराना  : स०=दिखलाना।
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देखरावना  : स०=दिखलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देखा-देखी  : स्त्री० [हिं० देखना] १. आँखों से देखने की अवस्था या भाव। २. दर्शन। सक्षात्कार। अव्य० दूसरों को कोई काम करते हुए देखने के फलस्वरूप। अनुकरणवश। जैसे—लड़के देखा-देखी गाली बकते हैं।
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देखा-भाली  : स्त्री० =देख-भाल।
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देखाऊ  : वि०=दिखाऊ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देखाना  : स०=दिखाना।
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देखाव  : पुं०=दिखाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देखावना  : स०=दिखाना।
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देखौआ  : वि०=दिखौआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देग  : पुं० [फा०] स्त्री० अल्पा० देगचा] १. चौडे मुँह और चौडे पेट का वह बहुत बडा बरतन जिसमें चावल, दाल आदि खाद्य पदार्थ पकाये जाते हैं। २. दे० ‘देगचा’। पुं० [?] एक प्रकार का बाज पक्षी।
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देगचा  : पुं० [फा० देगचः] [स्त्री० अल्पा० देगची] छोटा देग।
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देगची  : स्त्री० [हिं० देगचा] छोटा देगचा।
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देगला  : पुं० [सं० दृष्टि+लग्न] १. सामना। साक्षात्कार। उदा०—देगलौ दृवौ दलाँ दुँह।—प्रिथीराज। २. दिखावा।
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देज-शुनी  : स्त्री० [उपमि० स०] देवलोक की कुतिया, सरमा।
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देदीप्यमान  : वि० [सं०√दीप् (चमकना)+यङ्+शानच्] जिसका स्वरूप प्रकाशपूर्ण हो। चमकता हुआ। दमकता हुआ।
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देन  : स्त्री० [हिं० देना] १. देने की क्रिया या भाव। २. वह जो दिया जाय। ३. कोई ऐसी महत्वपूर्ण चीज या बात जो किसी बडे व्यक्ति, ईश्वर आदि से मिली हो तथा जिससे विशेष उपकार या हित होता हो। जैसे—(क) उनकी इस देन से हिन्दी जगत् सदा ऋणी रहेगा। (ख) पुत्र-पुत्रीयाँ तो भगवान की देन है। ४. उक्त के आधार पर कोई ऐसी चीज या बात जो किसी दूसरे से प्राप्त हुई हो और जिसका कोई व्यापक परिणाम या फल हो। जैसे—राजकीय विभागों में घूस और पक्षपात ब्रटिश शासन की देन है। ५. किसी प्रकार का देना चुकाने का दायित्व या भार। (लायबिलिटी)
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देन-लेन  : पुं० [हिं० देना+लेना] १. किसी को कुछ देने और उससे कुछ लेने की क्रिया या भाव। २. विनिमय। ३. इष्ट-मित्रों या संबंधियों में प्रायः कुछ न कुछ एक दूसरे के यहाँ भेजते रहने का व्यवहार। ४. ब्याज पर रुपया उधार देने का व्यापार। महाजनी का व्यवसाय।
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देनदार  : पुं० [हिं० देना+फा० दार] १. ऋणी। कर्जदार। २. वह जिसके जिम्मे कुछ देना बाकी हो वह जिससे किसी को आवश्यक रूप में कुछ मिलने को हो।
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देनदारी  : स्त्री० [हिं० देन+फा० दारी] देनदार होने की अवस्था या भाव।
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देनहार  : वि०=देनहारा।
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देनहारा  : वि० [हिं० देना+हारा (प्रत्य०)] देनेवाला।
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देना  : स० [स० दान] १. (अपनी) कोई चीज पूर्णतः और सदा के लिए किसी के अधिकार या नियंत्रण में करना। सुपुर्द करना। हवाले करना। जैसे—लड़के को ब्याह में मकान देना। २. बिना किसी प्रकार के प्रतिदान या प्रतिफल के किसी को कोई चीज अंतरित या हस्तांतरित करना। जैसे—प्रसाद देना। ३. श्रद्धापूर्वक अथवा किसी की सेवाओं आदि से प्रसन्न होकर उसे कुछ अर्पित या समर्पित करना। जैसे—(क) आशीर्वाद देना। (ख) भगवान का भक्त को दर्शन देना। ४. कोई चीज कुछ समय के लिए अपने पास के अलग करके दूसरे के हवाले करना। सौपना। जैसे— उसने अपना सारा असबाब कूली को (ढोने के लिए) दे दिया। ५. कोई चीज किसी के हाथ पर रखना। थमाना। पकड़ाना। जैसै—भिखमंगे को पैसा देना। ६. धन या और किसी पदार्थ के बदले में, अपनी चीज किसी के अधिकार में करना। जैसे—सौ रुपए देने पर भी ऐसी अँगूठी तुम्हें नहीं मिलेगी। ७. ऐसी क्रिया करना जिससे किसी को कुछ प्राप्त हो। पाने, मिलने या लेने में सहायक या साधक होना। जैसे—(क) किसी को उपाधि या मान-पत्र देना। (ख) नौकर को छुट्टी या तनख्वाह देना। (ग) गौ या भैंस का दूध देना। ८. किसी व्यक्ति, कार्य आदि के लिए उत्सृष्ट, निछावर या प्रदान करना। जैसे—(क) किसी संस्था को अपना जीवन, धन या समय देना। (ख) किसी को परामर्श, प्रमाण या सुझाव देना। (ग) किसी के लिए अपनी जान देना। ९. ऐसी क्रिया करना जिससे किसी को कुछ कष्ट या दंड़ मिले अथवा कोई दुष्परिणाम भोगना पड़े। जैसे—दुःख देना, सजा देना। १॰. आघात या प्रहार करना। जड़ना। मारना। जैसे—थप्पड या मुक्का देना। मुहा०—(किसी को) दे मारना=उठाकर जमीन पर गिरा या पटक देना। ११. पहनी जानेवाली कुछ चीजों के संबंध में, यथा-स्थान धारण करना। पहनना। जैसे— सिर पर टोपी या मुकुट देना। १२. कुछ विशिष्ट पदार्थों के संबंध में, बंद करना। जैसे—किवाड़ देना, अंगे का बंद या कुरते का बटन देना। १३. अंकन, लेखन आदि में, अंकित करना। चिह्न बनाना। जैसे—१ आगे बिंदी देने से १॰ हो जाता है। उदा०—बंक बिकारी देत ज्यों दाम रुपैया होत।—बिहारी। संयो० क्रि०—डालना।—देना। विशेष—संयोज्य क्रिया के रूप में ‘देना’ का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है—(क)संप्रदान कारक में ‘पडना’ क्रिया की तरह; जैसे—उसें दिखाई नहीं देता। (ख) अकर्मक अवधारण-बोधक क्रियाओं के साथ सप्रत्यय कर्त्ता कारक में; जैसे—वह रुपए उठाकर चल दिया। (च) ‘देना’ क्रिया के साथ कार्य की पूर्ति सूचित करने के लिए। जैसे—उसने पुस्तक मुझे दे दी। पुं० १. किसी से लिया हुआ वह धन जो अभी चुकाया जाने को हो ऋण। कर्ज। जैसे—उन्हें बाजार के हजारों रुपए देने हैं। २. वह धन जो किसी को किसी रुप में चुकाना आवश्यक या कर्तव्य हो। देय धन। देन। जैसे—अभी तो घर का भाड़ा, नौकर की तनख्वाह, बिजली का हिसाब और कन जाने क्या-क्या देना बाकी पडा है।
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देमान  : पुं० =दिवान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देय  : वि० [सं०√दा (देना)+यत्] १. जो दिया जा सके। २. जो दिये या लौटाये जाने को हो।
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देय-धर्म  : पुं० [ष० त०] दानधर्म।
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देयक  : पुं० [सं० देय+कन्] वह पत्र जिसमें किसी के नाम विशेषतः बैंक के नाम यह लिखा हो कि अमुक व्यक्ति को हमारे खाते से इतने रुपए दे दो। (चेक)
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देयादेय-फलक  : पुं० [देय-अदेय द्व० स०, देयादेय- फलक ष० त०] दे० ‘आय-व्यय फलक’।
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देयादेश  : पुं० [सं० देय-आदेश ष० त०] वह पत्र जिसमें यह लिखा हो कि अमुक व्यक्ति को इतना धन दिया जाय। (पे-आर्डर)
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देयासी  : पुं० [संच देवोपासिन् ?] [स्त्री० देयासिन] झाड़-फूँक करनेवाला ओझा।
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देर  : स्त्री० [फा०] १. किसी काम या व्यापार में आवश्यक, उचित या नियत समय से अधिक लगने वाला समय। विलंब। जैसे—यह काम कितनी देर में होगा।
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देरा  : पुं०=डेरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देरानी  : स्त्री०=देवरानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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देरी  : स्त्री०=देर।
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देव  : पुं० [सं०√दिव् (क्रीड़ा आदि)+अच्] [स्त्री० देवी] १. स्वर्ग में रहनेवाला अमर प्राणी। देवता। सुर। २. तेजोमय और पूज्य व्यक्ति। ३. बडे और सम्मानित लोगों के लिए एक आदर-सूचक संबोधन। जैसे—देव, मैं तोआप ही आ रहा था। ४. ब्राह्मणों की एक उपाधि या संज्ञा। ५. प्रेमी। ६. विवाहिता स्त्री की दृष्टि से उसका देवर। पति का छोटा भाई। ७. बच्चा। बालक। ८. ऋत्विक्। ९. ज्ञानेंद्रिय। १॰. दैत्य। राक्षस। ११. बादल। १२. मेघ। १३. पारा। १४. देवदार का पेड़।
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देव-अंशी (शिन्)  : वि० [ष० त०] जो देवता के अंश से उत्पन्न हो। जो किसी देवता का अवतार हो।
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देव-ऋण  : पुं० [ष० त०] देवताओं के द्वारा किया हुआ ऐसा उपकार जिसका बदला तर्पण, दान-पुण्य, यज्ञ आदि धार्मिक क्रत्य करके चुकाया जाता है।
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देव-ऋषि  : पुं० [ष० त०] देवताओं के लोक में रहनेवाला और उनका समकक्ष माना जानेवाला ऋषि। देवर्षि।
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देव-कन्या  : स्त्री० [ष० त०] १. देवता की पुत्री। २. देवी।
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देव-कपास  : स्त्री० [देश०] नरमा या मनवा नाम की कपास। राम कपास।
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देव-कर्द्दम  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का गंध दृव्य जो चंदन, अगर, कपूर और केसर को एक में मिलाने से बनता है।
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देव-कर्म (न्)  : पुं० [मध्य० स०] देवताओं को प्रसन्न कर पाने के लिए किया जानेवाला कर्म। जैसे—यज्ञ, बलि, वैश्वदेव आदि।
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देव-कार्य  : पुं० [मध्य० स०] देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जानेवाला कार्य। जैसे—होम, पूजा आदि।
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देव-काष्ठ  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का देवदार।
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देव-कुट  : पुं० [सं०] कुबेर के आठ पुत्रों में से एक जो शिव पुजन के लिए सूँघकर कमल ले गया था और इसी लिए जो दूसरे जन्म में कंस का भाई हुआ और श्रीकृष्ण चंद्र के द्वारा मारा गया। २. एक प्राचीन पवित्र आश्रम जो वशिष्ठ मुनि के आश्रम के पास था।
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देव-कुंड  : पुं० [मध्य० स०] १. आप से आप बना हुआ पानी का गड्ढ़ा या ताल। प्राकृतिक जलाशय। २. किसी तीर्थ या देव-मंदिर के पास का पवित्र कुंड, जलाशय या तालाब।
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देव-कुरुंबा  : स्त्री० [मध्य० स०] बड़ा गूमा। गोमा।
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देव-कुल  : पुं० [सं० देव√कुल् (संघात)+क] १. वह देवमंदिर जिसका द्वार बहुत छोटा हो। २. देव-मंदिर। ३. देवताओं का वर्ग।
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देव-कुल्या  : स्त्री० [मध्य० स०] १. गंगा नदी। २. मरीचि की एक कन्या जो पूर्णिमा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी।
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देव-कुसुम  : पुं० [ब० स०] लौंग (वृक्ष और फल)।
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देव-कुसुमावलि  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देव-कृच्छ्  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का व्रत जिसमें लपसी, शाक दूध, दही, घी में से क्रमशः एक-एक चीज तीन-तीन दिन खाने और उसके बाद तीन-तीन निराहार रहने का विधान है।
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देव-केसर  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का पुन्नाग। सुरपुन्नाग।
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देव-खात  : पुं० [तृ० स०] प्राकृतिक गड्ढ़ा या जलाशय।
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देव-गंग  : स्त्री० [सं०] असम प्रदेश की एक नदी। दिवंग।
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देव-गण  : पुं० [ष० त०] १. किसी जाति या धर्म के सभी देवी-देवताओं का वर्ग या समूह। (पैन्थिअन) २. अश्विनी, रेवती, पुष्य, स्वाती, हस्त, पुनर्वसु, अनुराधा, मृगशिरा और श्रवण नक्षत्रों का समूह (फलित ज्यो०) ३. किसी देवता का अनुचर।
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देव-गति  : स्त्री० [ष० त०] मरने के उपरांत प्राप्त होने वाली उत्तम गति। देव-योनि अथवा स्वर्ग की प्राप्ति।
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देव-गंधा  : स्त्री० [ब० स०, टाप्] महामेदा नामक ओषधि।
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देव-गर्भ  : पुं० [ब० स०] वह जिसका जन्म देवता के वीर्य से हुआ हो। जैसे—कर्ण।
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देव-गांधार  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का राग जो भैरव राग का पुत्र कहा गया है।
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देव-गांधारी  : स्त्री० [सं०] एक रागिनी जो श्रीराग की भार्या कही गई है। यह शिशिर ऋतु में तीसरे पहर से आधी रात तक गाई जाती है।
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देव-गायक  : पुं० [ष० त०] गंधर्व।
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देव-गायन  : पुं० [ष० त०] गंधर्व।
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देव-गिरा  : स्त्री० [ष० त०] देवताओं की भाषा अर्थात संस्कृत देववाणी।
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देव-गीर्वाणी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्वति की एक रागिनी।
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देव-गुरु  : पुं० [ष० त०] १. देवताओ के गुरु अर्थात् बृहस्पति। २. देवताओ के पिता, कश्यप।
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देव-गृह  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का घर। २. देवालय। मंदिर।
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देव-घनाक्षरी  : स्त्री० [सं०] ३३ वर्णों का एक वृत्त जो मुक्तक दण्डक का एक भेद है।
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देव-चक्र  : पुं० [ष० त०] गवामयन यज्ञ के एक अभिप्लव का नाम।
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देव-चिकित्सक  : पुं० [ष० त०] १. अश्विनीकुमार। २. उक्त के अनुसार दो की संख्या।
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देव-जग्ध  : पुं० [तृ० त०] रोहिष तृण। रोहिस घास।
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देव-जन  : पुं० [मध्य० स०] गंधर्व।
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देव-जुष्ट  : वि० [तृ० त०] देवता का जूठा किया हुआ अर्थात् उन्हें चढ़ाया हुआ।
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देव-तरु  : पुं० [मध्य० स०] कल्पवृक्ष।
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देव-तर्पण  : पुं० [ष० त०] देवताओं के उद्देश्य से किया जानेवाला तर्पण।
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देव-ताड़  : पुं० [सं० देव-ताल कर्म० स०, ल को ड] १. एक प्रकार का बड़ा तृण या पौधा जो देखने में धीकुँआर के पौधे की तरह होता है। इसे रामबाँस भी कहते हैं। २. दे० ‘देव-ताड़ी’।
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देव-तीर्थ  : पुं० [ष० त०] देवपूजन का उपयुक्त समय। २. देव-पूजा का स्थान। ३. दाहिने हाथ की एक साथ सटी हुई चारों उँगलियों का अग्रभाग जिससे तर्पण का जल छोड़ा जाता है।
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देव-त्रयी  : पुं० [सं० त०] ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीन देवताओं का वर्ग।
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देव-दंडा  : स्त्री० [ब० स०] गँगेरन। नागबला।
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देव-दत्त  : वि० [सं० तृ० त०] १. देवता का दिया हुआ। देवता से प्राप्त। २. [च० त०] जो देवता के निमित्त अलग किया या निकाला गया हो। पुं० १. ऐसी संपत्ति, जो किसी देवता के निमित्त अलग की गई हो। २. शरीर की पाँच वायुओं में से एक जिससे जँभाई आती है। ३. अर्जुन के शंख का नाम। ४. नागों के आठ कुलों में से एक कुल। ५. शाक्य वंशीय एक राजकुमार जो गौतम बुद्ध का चचेरा भाई था और उनसे बहुत द्वेष रखता था। यशोधरा के साथ यही विवाह करना चाहता था।
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देव-दर्शन  : पुं० [ष० त०] १. देवता का किया जाने या होनेवाला दर्शन। २. एक प्राचीन ऋषि।
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देव-दारु  : पुं० [ष० त०] देवदार।
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देव-दाली  : स्त्री० [ब० स०, ङीष्] एक तरह की लता जो तोरी की बेल से मिलती-जुलती होती है। इसके फल ककोडे (खेखसे) की तरह काँटेदार होते है। घघरबेल। बंदाल।
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देव-दीप  : पुं० [मध्य० स०] १. किसी देवता के सम्मुख अथवा किसी देवता के निमित्त जलाया जानेवाला दीपक। २. आँख। नेत्र।
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देव-दुंदुभि  : पुं० [ष० त०] लाल तुलसी।
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देव-दूत  : पुं० [ष० त०] [स्त्री० देवदूती] १. देवता या देवताओं का संदेश पहुँचानेवाला दूत। फरिश्ता। २. ऐसा व्यक्ति जो कु-समय में किसी का उद्धार या सहायता करे।
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देव-दूती  : स्त्री० [ष० त०] १. स्वर्ग की अप्सरा। २. बिजौरा नींबू।
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देव-देव  : पुं० [सं० त०] १. शिव। २. ब्रह्मा। ३. विष्णु। ४. गणेश। ५. इंद्र।
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देव-द्रुम  : पुं० [ष० त०] १. कल्पव्रक्ष। २. देवदार।
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देव-द्रोणी  : पुं० [ष० त०] १. देवयात्री। २. शिवलिंग का अरधा।
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देव-धन  : पुं० [मध्य० स०] देवता के निमित्त उत्सर्ग किया या अलग निकाला हुआ धन।
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देव-धान्य  : पुं० [मध्य० स०] ज्वार।
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देव-धाम (न्)  : पुं० [ष० त०] तीर्थस्थान। देवस्थान।
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देव-धुनी  : स्त्री० [ष० त०] १. गंगा नदी। २. कोई पवित्र नदी।
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देव-धूप  : पुं० [मध्य० स०] गुग्गुल। गूगुल।
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देव-धेनु  : स्त्री० [ष० त०] कामधेनु।
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देव-नदी  : स्त्री० [ष० त०] १. गंगा। २. दृषद्वती नदी। ३. सरस्वती नदी।
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देव-नल  : पुं० [उपमि० स०] एक तरह का सरकंडा। नरसल।
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देव-नागरी  : स्त्री० [सं०] आधुनिक भारत की प्रसिद्ध राष्ट्रीय लिपि, जिसमें संस्कृत, हिंदी, मराठी आदि भाषाएँ लिखी जाती हैं। हिंदी में इसके ४५ ध्वनि चिह्न है जिनमें ३२ व्यंजनों के और १३ स्वरों के हैं। संयुक्त ध्वनियों के चिह्न अनेक अतिरिक्त है।
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देव-नाथ  : पुं० [ष० त०] शिव। महादेव।
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देव-नायक  : पुं० [ष० त०] देवताओं के नायक, इंद्र।
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देव-निकाय  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का समूह। २. देवताओं के रहने का स्थान; अर्थात स्वर्ग।
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देव-निर्मिता  : स्त्री० [तृ० त०] गुडूची। गुरुच।
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देव-पति  : पुं० [ष० त०] इंद्र।
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देव-पत्नी  : स्त्री० [ष० त०] १. देवता की स्त्री। २. मध्वालु नाम का कंद।
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देव-पथ  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं के चलने का मार्ग; आकाश। २. देव-मन्दिर की ओर जाने का रास्ता। ३. प्रचीन भारत में, वह ऊँचा मार्ग जो किले की दीवार के ऊपर चारों ओर आने-जाने के लिए होता था। दे० ‘देव-यान’।
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देव-पर  : पुं० [ब० स०] ऐसा भाग्यवादी पुरुष जो संकट पडने पर भी उद्मम न करता हो, बल्कि किसी देवता के भरोसे बैठा रहता हो।
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देव-पर्ण  : पुं० [ब० स०] माचीपत्र।
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देव-पशु  : पुं० [च० त०] १. वह पशु जो देवता को बलि चढ़ाया जाने को हो। २. देवता का उपासक।
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देव-पात्र  : पुं० [ष० त०] अग्नि, जिसमें देवताओं को अर्पत की जाने वाली चीजें डाली जाती हैं।
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देव-पान  : पुं० [ष० त०] सोमपान करने का एक प्रकार का पात्र।
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देव-पालित  : वि० [तृ० त०] (क्षेत्र) जिसमें सिंचाई के अन्य साधन दुर्लभ होने पर भी केवल वर्षा के जल से अन्न उत्पन्न होता हो।
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देव-पुत्र  : पुं० [ष० त०] [स्त्री० देव-पुत्री] देवता का पुत्र।
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देव-पुत्रिका  : स्त्री०=देव-पुत्री।
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देव-पुत्री  : स्त्री० [ष० त०] १. देवता की पुत्री। २. इलायची ३. कपूरी साग।
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देव-पुर  : पुं० [ष० त०] अमरावती।
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देव-पुरी  : स्त्री० [ष० त०] देवताओं की नगरी जो स्वर्ग में इन्द्र की राजधानी मानी गई है। अमरावती।
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देव-पूजा  : स्त्री० [ष० त०] देवताओं का किया जानेवाला पूजन।
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देव-प्रयाग  : पुं० [सं०] हिमालय में, गंगा और अलकनंदा नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ।
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देव-प्रश्न  : [ष० त०] फलित ज्योतिष में, वह प्रश्न जो ग्रह, नक्षत्र, ग्रहण आदि के संबंध में हो। २. भविष्य-संबंधी प्रश्न।
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देव-प्रस्थ  : पुं० [सं०] एक प्राचीन नगरी जो कुरुक्षेत्र से पूर्व की ओर थी।
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देव-प्रिय  : पुं० [ष० त०] १. अगस्त (पेड़ और फूल)। २. पीली भँगरैया।
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देव-बला  : स्त्री० [ब० स०, टाप्] सहदेई (बूटी)।
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देव-ब्रह्मन्  : पुं० [उपमि० स०] नारद।
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देव-ब्राह्मण  : पुं० [मध्य० स०] देवताओं का पूजन करके जीविका निर्वाह करनेवाला ब्राह्मण।
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देव-भवन  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का घर या स्थान। देव-मंदिर। २. स्वर्ग। ३. अश्वत्थ या पीपल जिसमें देवताओं का निवास माना जाता है।
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देव-भाग  : पुं० [ष० त०] किसी चीज विशेषतः संपत्ति का वह भाग जो किसी देवता के निमित्त अलग किया गया हो।
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देव-भाषा  : स्त्री० [ष० त०] संस्कृत भाषा।
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देव-भिषक् (ज्)  : पुं० [सं० ष० त०] अश्विनी कुमार।
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देव-भू  : स्त्री० [ष० त०] स्वर्ग।
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देव-भूति  : स्त्री० [ष० त०] १. देवताओं का ऐश्वर्य। २. मंदाकिनी।
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देव-भूमि  : स्त्री० [ष० त०] देवताओं की भूमि अर्थात् स्वर्ग।
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देव-भृत्  : पुं० [सं० देव√भ्र (भरण)+क्विप्] देवताओं का भरण करनेवाले (क) इन्द्र, (ख) विष्णु।
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देव-भोज्य  : पुं० [ष० त०] देवताओं का भोजन। अमृत।
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देव-मंजर  : पुं० [स०] कौस्तुभ मणि।
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देव-मणि  : पुं० [स० त०] १. सूर्य। २. [कर्म० स०] कौस्तुभ मणि। ३. महामेदा। ४. घोड़ों की गरदन पर की एक प्रकार की भौंरी।
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देव-मंदिर  : पुं० [ष० त०] देवता का मंदिर। देवालय।
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देव-मनोहरी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देव-मातृक  : वि० [ब० स०, कप्] दे० ‘देवपालित’।
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देव-मादन  : वि० [ष० त०] देवताओं को मत्त करनेवाला। पुं० सोम।
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देव-मान  : पुं० [ष० त०] काल-गणना में वह मान जो देवताओं के संबंध में काम में लाया जाता है। जैसे—देव-मान के विचार से मनुष्यों का एक सौ वर्ष देवताओं का एक दिन होता है।
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देव-मानक  : पुं० [ब० स०, कप्] कौस्तुभ मणि। देवमणि।
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देव-माया  : स्त्री० [ष० त०] १. देवताओं की माया। २. वह ईश्वरीय या प्राकृतिक माया जो अविद्या के रुप में रहकर जीवों को सांसारिक बंधनो में फँसाये रखती है।
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देव-मार्ग  : पुं० [ष० त०] देवयान।
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देव-मालवी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देव-मास  : पुं० [च० त०] १. गर्भ का आठवाँ महीना। २. तीन हजार वर्ष के बराबर का समय जो देवताओं की काल-गणना के अनुसीर एक महीने के बराबर होता है।
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देव-मित्र  : पुं० [ब० स०] शाकल्य ऋषि का एक नाम।
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देव-मीढ  : पुं० [सं०] मिथिला के एक राजा जो महाराजा जनक के पुर्वजों में से थे।
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देव-मीढुष  : पुं० [सं०] वसुदेव के पितामह।
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देव-मुखारी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देव-मुख्या  : स्त्री० [सं०] कस्तूरी।
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देव-मुनि  : पुं० [कर्म० स०] १. नारद ऋषि। २. सूर नामक ऋषि।
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देव-मूर्ति  : पुं० [ष० त०] किसी स्थान पर प्रतिष्ठित देवता की प्रतिमा या मूर्ति।
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देव-यजन  : पुं० [ष० त०] यज्ञ की वेदी।
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देव-यजनी  : स्त्री० [ष० त०] पृथिवी।
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देव-यज्ञ  : पुं० [ष० त०] होमादि कर्म जो पंचयज्ञों में से एक है तथा जिसे करना गृहस्थों का प्रतिदिन का कर्तव्य माना गया है।
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देव-यान  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं की ओर ले जानेवाला मार्ग। २. शरीर के अलग होने उपरांत जीवात्मा के जाने के दो मार्गो में से एक जिसमें से होता हुआ वह ब्रह्म-लोक को जाता है। ३. उत्तरायण।
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देव-युग  : पुं० [मध्य० स०] सत्ययुग।
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देव-योनि  : स्त्री० [ब० स०] स्वर्ग, अंतरिक्ष आदि में रहनेवाले उन जीवों का वर्ग जो देवताओं के अंतर्गत माने जाते है। जैसे—अप्सरा, किन्नर, गंधर्व, यक्ष आदि।
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देव-रक्षित  : वि० [तृ० त०] जो देवताओं द्वारा रक्षित हो। पुं० राजा देवक के एक पुत्र का नाम।
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देव-रंजनी  : स्त्री० [सं० ] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देव-रथ  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का रथ। विमान। २. सूर्य का रथ।
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देव-राज्य  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का राज्य, स्वर्ग।
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देव-रात  : पुं० [तृ० त०] १. देवताओं द्वारा रक्षित राजा परीक्षीत। २. शुनःक्षेप का वह नाम जो विश्वामित्र के आश्रम में पड़ा था। ३. याज्ञवल्क्य ऋषि के पिता का नाम। ४. निमि के वंश के एक राजा। ५. एक प्रकार का सारस।
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देव-लता  : स्त्री० [मध्य० स०] नवमल्लिका। नेवारी।
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देव-लांगुलिका  : स्त्री० [सं० देव=व्यथाकारक लाङ्गुलिक=शूक ब० स०, टाप्] वृश्चिकाली लता।
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देव-लोक  : पुं० [ष० त०] स्वर्ग।
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देव-वक्त्र  : पुं० [ष० त०] अग्नि, जिसके द्वारा देवताओं का भाग उन तक पहुँचता है।
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देव-वधू  : स्त्री० [ष० त०] १. देवता की स्त्री। २. देवी। ३. अप्सरा।
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देव-वर्णिनी  : स्त्री० [सं०] भरद्वाज की कन्या और कुबेर को माता जो विश्रवा मुनि की पत्नी थी।
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देव-वर्त्म (न्)  : पुं० [ष० त०] आकाश।
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देव-वर्द्धन  : पुं० [सं०] पुराणानुसार राजा देवक का एक पुत्र जो देवकी का भाई और श्रीकृष्ण का मामा था।
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देव-वर्ष  : पुं० [ष० त०] पुराणानुसार एक द्वीप का नाम। पुं०=दैव वर्ष।
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देव-वल्लभ  : वि० [ष० त०] देवताओं को प्रिय लगनेवाला। पुं० १. केसर। २. सुरपुन्नाग नामक वृक्ष।
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देव-वाणी  : स्त्री० [ष० त०] १. संस्कृत भाषा जो देवतओ की भाषा कही गई है। २. देवता के मुँह से निकली हुई बात। ३. देवताओं की ओर से होनेवाली आकाशवाणी।
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देव-वाहन  : पुं० [सं० देव=हवि√वह्+णिच्+ल्यु—अन] अग्नि (जो देवताओं का हव्य उनके पास पहुँचाती है)।
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देव-विद्या  : स्त्री० [मध्य० स०] निरुक्त।
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देव-विसर्ग  : पुं० [च० त०] १. देवताओं के लिए विसर्ग या अर्पण करना। २. वह चीज हो देवताओं को समर्पित की गई हो।
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देव-विहाग  : पुं० [सं० देवविभाग] संगीत में, एक राग जो कल्याण और विहाग अथवा कुछ लोगों के मत से सारंग और पूरबी के योग से बना है।
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देव-वृक्ष  : पुं० [मध्य० स०] १. मंदार का पौधा। आक। २. गूगुल। ३. सतिवन।
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देव-व्रत  : पुं० [मध्य० स०] १. कोई धार्मिक संकल्प। २. एक प्रकार का सामगान। ३. [ब० स०] भीष्म पितामह। ४. कार्तिकेय।
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देव-शत्रु  : पुं० [ष० त०] देवताओं का शत्रु; राक्षस।
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देव-शाक  : पुं० [सं०] एक संकर राग जो शंकरा भरण, कान्हड़ा और मल्लार के योग से बना है।
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देव-शिल्पी (ल्पिन्)  : पुं० [ष० त०] विश्वकर्मा।
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देव-शेखर  : पुं० [ब० स०] दौने का पौधा। दमनक।
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देव-श्रवा (बस्)  : पुं० [सं०] १. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। २. वसुदेव के एक भाई का नाम।
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देव-श्रुत  : पुं० [सं० त०] १. ईश्वर। २. रद ऋषि। ३. शुक्राचार्य के एक पुत्र। ४. एक जिन देव। ५. शास्त्र।
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देव-श्रेणी  : स्त्री० [ष० त०] १. देवताओं का वर्ग। २. मरोड़-फली। मूर्वा।
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देव-श्रेष्ठ  : वि० [स० त०] देवताओं में श्रेष्ठ। पुं० बारहवें मनु के एक पुत्र का नाम।
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देव-सखा  : पुं० [सं०] उत्तर दिशा का एक पर्वत। (वाल्मीकि रा०)
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देव-सत्र  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का यज्ञ।
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देव-सदन  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं के रहने का स्थान। स्वर्ग। २. देव-मन्दिर।
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देव-सद् (सस्)  : पुं० [ष० त०] देवस्थान।
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देव-सभा  : स्त्री० [ष० त०] १. देवतओं की सभा या समाज। २. सुधर्मा नाम का वह सभास्थल जो दानव ने अर्जुन और युधिष्ठिर के लिए बनाया था। ३. राज-सभा। ४. जूआ खेलने का स्थान।
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देव-समाज  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का समाज। २. सुधर्मा नाम का सभास्थल।
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देव-सर्षप  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार की सरसों।
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देव-सृष्टा  : स्त्री० [च० त०] मदिरा। शराब।
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देव-सेना  : स्त्री० [ष० त०] १. देवताओं की सेना। २. देवताओं के सेनापति स्कंद की पत्नी जो सावित्री के गर्भ से उत्पन्न प्रजापति की कन्या मानी तथा मातृकाओं में श्रेष्ठ कही गई है।
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देव-सेनापति  : पुं० [ष० त०] कार्तिकेय। स्कंद।
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देव-स्थान  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं के रहने की जगह या स्थान। २. देवमन्दिर। ३. एक ऋषि जिन्होंने पांडवों को वनवास के समय उपदेश दिया था।
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देव-हेति  : स्त्री० [ष० त०] दिव्य अस्त्र। देवास्त्र।
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देवँक  : स्त्री०=दिमक।
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देवक  : पुं० [सं०] १. देवता। २. एक यदुवंशी राजा जो उग्रसेन के छोटे भाई, देवकी के पिता और श्रीकृष्ण के नाना थे। ३. युधिष्ठिर के एक पुत्र का नाम।
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देँवका  : स्त्री०=दीमक।
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देवकाँडर  : पुं० [सं० देव-कांड] जल-पीपल नामक क्षुप।
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देवकिरि  : स्त्री० [सं० देव√कृ (बिखेरना)+क—ङीष्] एक रागिनी जो मेघ राग की भार्या मानी जाती है।
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देवकी  : स्त्री०[सं० देवक+ङीष्] वसुदेव की स्त्री और श्रीकृष्ण की माता।
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देवकी-नंदन  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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देवकी-पुत्र  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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देवकी-मातृ  : पुं० [ब० स०] श्रीकृष्ण (जिनकी माता देवकी हैं)।
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देवकीय  : वि० [सं० देव+छ—ईय, कुक्] देवता-संबंधी। देवता का।
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देवकुरु  : पुं० [सं०] जैन पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के छः खंडों में से एक जो सुमेरु और निषध के बीच में स्थित माना गया है।
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देवक्रिय  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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देवगढ़ी  : स्त्री० [देवगढ़ (स्थान)] एक तरह की ईख।
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देवगन  : पुं०=देव-गण।
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देवगिरि  : पुं० [सं०] १. रैवतक पर्वत जो गुजरात में है। गिरनार। २. दक्षिण भारत के आधुनिक प्रमुख नगर का पुराना नाम।
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देवगिरी  : स्त्री० [?] हेमंत ऋतु में दिन के पहले पहर में गाई जानेवाली षाड़व संपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं।
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देवगुही  : स्त्री० [सं०] सरस्वती।
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देवघन  : पुं० [देश०] एक तरह का पेड़।
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देवचाली  : पुं० [सं०] इंद्रताल के छः भेदों में से एक।
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देवच्छद  : पुं० [सं० देव√छंद् (आकांक्षा)+घञ्] पुरानी चाल का एक तरह का बड़ा हार जिसमें ८१,१॰॰ या १॰८ लड़ियाँ होती थी।
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देवज  : वि० [सं० देव√जन् (उत्पत्ति)+ड] देवता से उत्पन्न। देवसंभूत। पुं० एक प्रकार का साम गान।
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देवजन-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] संगीत शास्त्र।
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देवज्य  : पुं० [देव-इज्य ष० त०] बृहस्पति।
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देवट  : पुं० [सं०√दिव् (क्रीड़ा, आदि)+अटन्] कारीगर। शिल्पी।
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देवठान  : पुं० दे० ‘देवोत्थान’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवडोंगरी  : स्त्री० [सं० देव+देश० डोंगरी] देवदाली लता। बंदाल।
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देवढी  : स्त्री०=ड्योढ़ी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवता  : पुं० [सं० देव+तल्—टाप्] १. स्वर्ग में रहनेवाले प्राणी जो पूज्य तथा जरा और मृत्यु से रहित माने गये हैं। २. देव-प्रतिमा। ३. ज्ञानेंद्रिय। विशेष—संस्कृत में ‘देवता’ स्त्री० होने पर भी हिन्दी में पुंर्लिग माना जाता है।
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देवता-मंगल  : पुं० [सं०] रंग-मंच पर देवता को प्रसन्न करने के लिए होनेवाला मंगलात्मक नृत्य।
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देवतागार  : पुं० [सं० देवता-आगार ष० त०] देवागार। (दे०)
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देवताड़ी  : स्त्री० [सं० देव+हिं० ताड़] १. देवदाली लता। बंदाल। २. तुरई। तोरी।
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देवतात्मा (त्मन्)  : वि० [सं० देवता-आत्मन् ब० स०] १. पवित्र। पावन। २. देवताओं की तरह का। पुं० १. अलौकिक शक्ति। २. पीपल।
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देवताधिप  : पुं० [सं० देवता-अधिप ष० त०] देवताओं के राजा, इंद्र।
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देवताध्याय  : पुं० [सं० देवता-अध्याय ब० स०] सामवेद का एक ब्राह्मण।
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देवत्त  : वि० [सं० देव-दत्त तृ० त०] देवता या दवताओं द्वारा दिया हुआ।
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देवत्व  : पुं० [सं० देव+त्व] देवता होने की अवस्था, गुण, पद और भाव।
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देवदानी  : स्त्री० [?] बड़ी तोरई।
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देवदार  : पुं० [सं० देवदारु] एक प्रसिद्ध सीधे तने वाला ऊँचा पेड़ जिसके पत्ते लंबे और कुछ गोलाई लिये होता हैं तथा जिसकी लकडी मजबूत किन्तु हलकी और सुगंधित होती है, और इमारतों में काम आती है। इसे स्निग्ध और काष्ठ दो भेद हैं। काष्ठ दारु लोक में अशोक वृक्ष के नाम से प्रसिद्व है। स्निग्ध देवदारु की लकडी और तैल दवा के काम भी आता है।
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देवदार्वादि  : पुं० [सं० देवदारु-आदि ब० स०] जच्चा अर्थात् प्रसूता स्त्री को दिया जानेवाला एक तरह का क्वाथ। (भाव प्रकाश)
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देवदालिका  : स्त्री० [सं० देवदाली√कै (प्रतीत होना)+क-टाप्, ह्रस्व] महाकाल वृक्ष।
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देवदासी  : स्त्री० [सं० देव√दास्( हिंसा)+अण्-ङीष्] १. प्राचीन भारत में वह कन्या जो देवता को अर्पित कर दी जाती थी और उसके मंदिर में रहकर नाचती-गाती थी। २. नर्तकी। ३. रंडी। वेश्या। ४. बिजौरा नींबू।
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देवद्युर  : पुं० [सं०] भरतवंशीय एक राजा जो देवाजित् के पुत्र थे। (भागवत)
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देवन  : पुं० [सं०√दिव्+ल्युट्—अन] १. किसी से आगे बढ़ जाने की कामना। २. क्रीड़ा। खेल। ३. उपवन। बगीचा। ४. कमल। पद्म। ५. कांति। चमक। ६. प्रशंसा। स्तुति। ७. गति। चाल। ८. जूआ। द्यूत। ९. खेद। रंज।
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देवनंदी (दिन्)  : पुं० [सं० देव√नन्द् (समृद्धि)+णिनि] इंद्र का द्वारपाल।
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देवना  : स्त्री० [सं० √दिव्+युच्—अन, टाप्] १. क्रीडा। खेल। २. जूआ। ३. टहल। परिचर्या। सेवा।
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देवनामा (मन्)  : पुं० [सं०] कुश द्वीप के एक वर्ष का नाम।
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देवनाल  : पुं० [ष० त०] एक तरह का सरकंड़ा। नरसल।
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देवनीक  : पुं० [देव-अनीक ष० त०] १. देवताओं की सेना। २. सावर्णि मनु के एक पुत्र का नाम। ३. सगर के वंशज एक राजा।
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देवपत्तन  : पुं० [सं०] काठियावाड़ का वह क्षेत्र जिसमें सोमनाथ का मंदिर है।
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देवपद्मिनी  : स्त्री० [सं०] आकाश में बहनेवाली गंगा का एक नाम।
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देवपाल  : पुं० [सं०] शाकद्वीप के एक पर्वत का नाम।
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देवबंद  : पुं० [सं० देववंद] घोड़ों की एक भँवरी जो उनकी छाती पर होती है और शुभ मानी जाती है।
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देवबाँस  : पुं० [सं०] एक तरह का बाँस जिसके नरम हरे कल्लों का अचार डाला जाता है।
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देवमाता (तृ)  : स्त्री० [ष० त०] देवताओं की माता (क) अदिति, (ख) दाक्षायणी।
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देवमूक  : पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम। (गर्गसंहिता)
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देवयात्री (त्रिन्)  : पुं० [सं०] पुराणानुसार एक दानव।
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देवयानी  : स्त्री० [सं०] राजा ययाति की पत्नी जो शुक्राचार्य की कन्या थी।
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देवर  : पुं० [सं०√दिव्+अर] [स्त्री० देवरानी] १. विवाहिता स्त्री की दृष्टि से उसके पति का छोटा भाई। २. पति का कोई भाई, चाहे उससे छोटा हो या बड़ा। (क्व०) ३. रहस्य संप्रदाय में (क) भ्रम या संशय, (ख) कामदेव।
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देवरक्षिता  : स्त्री० [सं०] देवक राजा की एक कन्या।
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देवरा  : पुं० [सं० देव] [स्त्री० अल्पा० देवरी] १. छोटा-मोटा देवता। २. उक्त प्रकार के देवता का मंदिर। ३. ऊँचे शिखरवाला देवमंदिर। ४. किसी महापुरुष की समाधि। पुं० [?] एक प्रकार का पटसन जिससे रस्सयाँ बनती हैं।
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देवराज  : पुं० [ष० त०] देवताओं के राजा, इंद्र।
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देवरानी  : स्त्री० [हिं० देवर] देवर अर्थात् पति के छोटे भाई की स्त्री। स्त्री० देवराज इंद्र की पत्नी शची। इंद्राणी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवराय  : पुं०=देवराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवरी  : स्त्री० [हि० देवरा] छोटी-मोटी देवी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवर्द्धि  : पुं० [सं०] जैनों के एक प्रसिद्ध स्थविर जिन्होंने जैन सिद्धान्त लिपिबद्ध किये थे।
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देवर्षि  : पुं० [सं० देवऋषि ष० त०] देवताओं में ऋषि। जैसे—नारद।
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देवल  : पुं० [सं० देव√ला (लेना)+क] १. वह ब्राह्मण जो देवताओं पर चढ़ाई हुई चीजों से अपनी जीविका निर्वाह करे। पंड़ा। २. धार्मिक व्यक्ति। ३. नारद मुनि। ४. एक प्रचीन स्मृतिकार। ५. देवालय। मंदिर। ६. पति का छोटा भाई। देवर। पुं० [देश०] एक प्रकार का चावल। स्त्री० दीवार।
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देवलक  : पुं० [सं० देवल+कन्]=देवल। (दे०)
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देवला  : पुं० [हिं० दीवा] [स्त्री० अल्पा० देवली] मिट्टी का छोटा दीया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देववती  : स्त्री० [सं०] ग्रामणी नामक गंधर्व की कन्या जो सुकेश राक्षस की पत्नी और माल्यवान, सुमाली तथा माली की माता थी।
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देववर्द्धकि  : पुं० [ष० त०] विश्वकर्मा।
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देववात  : पुं० [सं०] एक वैदिक ऋषि।
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देववायु  : पुं० [सं०] बारहवें मनु के एक पुत्र का नाम।
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देवसरि (त्)  : स्त्री० [ष० त०] गंगा।
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देवसहा  : स्त्री० [सं० देव√सह् (सहना)अच्—टाप्] सफेद फूलोंवाला दंडोत्पल।
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देवसाक  : पुं०=देवशाक (राग)।
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देवसार  : पुं० [सं०] संगीत में, इंद्रताल के छः भेदों में से एक।
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देवसावर्णि  : पुं० [सं०] भागवत के अनुसार तेरहवें मनु।
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देवस्व  : पुं० [ष० त०] १. वह संपति जो किसी देवता को अर्पित की गई हो और उसकी संपत्ति मानी जाती हो। यज्ञ करनेवाले धर्मात्मा का धन।
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देवहरा  : पुं० [देव+सं० घर] देवालय। मंदिर। उदा०—गिरिस देव हरै उतरा सोई।—नूर मुहम्मद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवहरिया  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की नाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवहंस  : पुं० [देश०] हंसों की एक जाति।
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देवहा  : स्त्री० [सं० देववहा] सरयू नदी। पुं० [?] एक प्रकार का बैल।
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देवहूति  : स्त्री० [सं०] १. देवताओं का आवाहन। २. कर्द्दम मुनि की पत्नी जो स्वयंभुव मनु की कन्या थी।
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देवह्रद  : पुं० [सं०] एक सरोवर जो श्रीपर्वत पर स्थित माना गया है।
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देवा  : स्त्री० [सं० देव+टाप्] १. पद्मचारिणी लता। २. पटसन पुं०=देव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० देना] देनेवाला। देवैया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवा-लेई  : स्त्री० [हिं० देना+लेना] १. किसी के कुछ देने और उससे कुछ लेने की क्रिया या भाव २. बराबर परस्पर कुछ लेते-देते रहने का बरताव। लेन-देन का व्यवहार।
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देवाक्रीड़  : पुं० [देव-आक्रीड ष० त०] देवताओं और इंद्र का बगीचा, नंदनवन।
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देवांगना  : स्त्री० [देव-अंगना ष० त०] १. देवता की स्त्री। २. स्वर्ग में रहने वाली स्त्री। ३. अप्सरा।
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देवागार  : पुं० [देव-आगार ष० त०] १. देवतओं के रहने का स्थान; स्वर्ग। देवालय। मंदिर।
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देवाजीव  : पुं० [सं० देव,आ√जीव् (जीना)+अच्]=देवाजीवी।
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देवाजीवी (विन्)  : पुं० [सं० देव-आ√जीव्+णिनि] १. वह जिसकी जीविका देवताओं के द्वारा या उनके सहारे चलती हो। २. पंडा या पुरोहित।
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देवाट  : पुं० [सं० देव-आट ब० स०] हरिहर-क्षेत्र तीर्थ का पुराना नाम।
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देवांतक  : पुं० [देव-अंतक ष० त०] रावण का एक पुत्र जिसे हनुमान् ने युद्ध में मारा था।
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देवातिदेव  : पुं० [सं० देव-अति√दिव+अच्] विष्णु।
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देवात्मा (त्मन्)  : पुं० [देव-आत्मन् ब० स०] १. वह जिसकी आत्मा देवताओं की तरह पवित्र और शुद्ध हो। २. अश्वत्थ। पीपल।
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देवांध (स्)  : पुं० [देव-अंधस् ष० त०] १. अमृत। २. देवता का नैवेध या भोग।
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देवाधिदेव  : पुं० [सं० देव-अधिदेव ष० त०] १. विष्णु। २. शिव।
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देवाधिप  : पुं० [सं० देव-अधिप ष० त०] १. परमेश्वर। २. देवताओं के अधिपति, इन्द्र। ३. द्वापर के एक राजा।
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देवान  : पुं०=दीवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवाना  : पुं० [?] एक प्रकार की चिडिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=दीवाना। स०=दिलाना।
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देवानां-प्रिय  : पुं० [सं० अलुक् स०] १. देवताओं को प्रिय। २. बडों के लिए प्रयुक्त होनेवाला एक आदर-सूचक विशेषण पद जो उनके परम भाग्यशाली और श्रेष्ठ होने का सूचक होता है। ३. मूर्ख। बेवकूफ। पुं० बकरा, जो देवताओं को बलि चढ़ाया जाता था।
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देवानुग  : पुं० [देव-अनुग ष० त०] १. देवता का सेवक। २. विद्याधर, यक्ष आदि उपदेव जो देवताओं का अनुगमन करते हैं।
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देवानुचर  : पुं० [देव-अनुचर ष० त०]=देवानुग।
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देवानुयायी (यिन्)  : पुं० [देव-अनुयायिन् ष० त०]= देवानुग।
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देवान्न  : पुं० [देव-अन्न ष० त०] हवि। चरु।
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देवाब  : स्त्री० [देश०] धौंमर, गोंद, चूनें, बीझन आदि के योग से बनाई जानावाली एक तरह की लेई।
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देवाभरण  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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देवाभियोग  : पुं० [देव-अभियोग ष० त०] जैनों के अनुसार वह स्थिति जिसमें कोई देवता शरीर में प्रविष्ट होकर अनुचित कामों की ओर प्रव्रत्त करता है।
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देवाभीष्टा  : स्त्री० [देव-अभीष्टा ष० त०] पान की लता। तांबूली।
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देवायतन  : पुं० [देव-आयतन ष० त०] देवता के रहने का स्थान; स्वर्ग। २. देवालय। मंदिर।
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देवायु (स्)  : स्त्री० [देव-आयुस् ष० त०] देवताओं का जीवनकाल जो बहुत लंबा होता है।
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देवायुध  : पुं० [देव-आयुध ष० त०] १. देवताओं का अस्त्र। दिव्य-अस्त्र। २. इन्द्र-धनुष।
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देवारण्य  : पुं० [देव-अरण्य ष० त०] १. देवताओं का वन या उपवन। २. एक प्राचीन तीर्थ। (महाभारत)
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देवाराधन  : पुं० [देव-आराधन ष० त०] देवताओं का आराधन, पूजन आदि।
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देवारि  : स्त्री० [देव-अरि ष० त०] देवताओं के शत्रु, असुर। स्त्री०=दीवार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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देवारी  : [सं० दावाग्नि] कछारों में दिखाई देनेवाला लुक। छलावा। उदा०—जानहुँ मिरिग देवारी मोहे।—जायसी। स्त्री०=दीवाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवार्पण  : पुं० [देव-अर्पण च० त०] देवताओं के निमित्त किया जानेवाला अर्पण या उत्सर्ग।
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देवार्ह  : पुं० [सं० देव√अर्ह् (योग्य होना)+अण्] सुरपर्ण। माचीपत्र।
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देवाल  : वि० [हिं० देना] १. देनेवाला। देवैया। २. दूसरो को कुछ देने की प्रव्रत्ति रखनेवाला। स्त्री०=दीवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देवालय  : पुं० [देव-आलय ष० त०] १. देवताओं के रहने का स्थान; स्वर्ग। २. वह स्थान जहाँ किसी देवता की प्रतिमा प्रतिष्ठित हो। मंदिर।
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देवाला  : पुं० १. दिवाला। २. देवालय।
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देवाली  : स्त्री०=दीवाली।
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देवावसथ  : पुं० [देव-आवसथ ष० त०] १. देवता के रहने का स्थान। २. मंदिर।
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देवावास  : पुं० [देव-आवास ष० त०] १. देवता का मंदिर। २. पीपल का पेड़।
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देवावृध्  : पुं० [सं० देव√वृध् (बढ़ना)+क्विप्] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम।
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देवांश  : पुं० [देव-अंश ष० त०] १. किसी वस्तु का वह अंश जो देवताओं को समर्पित किया गया हो अथवा किया जाना चाहिए। २. ईश्वर का अंशावतार।
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देवाश्व  : पुं० [देव-अश्व ष० त०] इंद्र का घोड़ा। उच्चैःश्रवा।
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देवाहार  : पुं० [देव-आहार ष० त०] १. देवताओं का आहार या भोजन। २. अमृत।
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देविक  : वि० [सं० दैविक] १. देवतओं में होनेवाला। देवता-संबंधी। २. देवताओं द्वारा होनावाला। दैवी। ३. दिव्य। स्वर्गीय। पुं० धर्मात्मा।
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देविका  : स्त्री० [सं० √दिव्+णवुल्—अक, टाप, इत्व] घाघरा नदी।
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देविदह  : पुं० [सं०] १. देवी का कुंड। २. देवी का स्थान।
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देवी  : स्त्री० [सं० देव+ङीप्] १. स्त्री देवता। २. देवता की पत्नी। ३. दुर्गा, सरस्वती, पार्वती आदि स्त्री-देवताओं का नाम। ४. श्रेष्ठ गुणोंवाली और सुशीला स्त्री। ५. प्रचीन भारत में राजा की वह पत्नी जिसका राजा के साथ अभिषेक होता था। पटरानी। ६. स्त्री के लिए एक आदरसूचक संज्ञा या संबोधन। ७. स्त्रियों के नाम के अंत में लगनेवाला शब्द। जैसे—शीला देवी, कृष्णा देवी। ८. सफेद इंद्रायन। ९. असबर्ग। पृक्का। १॰. अड़हुल। आदित्यभक्ता। ११. लिंगनी नाम की लता। पँचगुरिया। १२. वन-ककोड़ा। १३. शालपर्णी। सरिवन। १४. महाद्रोणी। बड़ा गुमा। १५. पाठा। १६. नागरमोथा। १७. हरीतकी। हर्रै। १८. अलसी। तीसी। १९. श्यामा नाम की चिड़िया। २॰. सूर्य की संक्रांति। पुं० [सं० देविन्] जूआ खेलनेवाला व्यक्ति। जुआरी। स्त्री० [अ० डेविट्स] १. लकड़ी का वह चौखटा जिसमें दो खड़े खंभो के ऊपर आड़ा बल्ला लगा रहता है। २. जहाज के किनारे पर बाहर की ओर निकले या झुके हुए वे खंभे जिनमें घिरनियाँ लगी होती है।
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देवी-गृह  : पुं० [ष० त०] १. देवी या भगवती का मंदिर। २. राज-प्रासाद में राज-महिषी के रहने का निजी कमरा।
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देवी-पुराण  : पुं० [मध्य० स०] एक उपपुराण जिसमें दुर्गा का माहात्म्य वर्णित है।
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देवी-भागवत  : पुं० [मध्य० स०] एक पुराण जिसमें भगवती दुर्गा का माहात्म्य वर्णित है। कुछ लोग इसे उपपुराण मानते है।
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देवी-भोया  : पुं० [हिं० देवी+भोयना=भुलाना] वह ओझा जो देवी का ही उपासक हो और उसी के द्वारा सब काम करता-कराता हो।
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देवी-वीर्य  : पुं० [ष० त०] गंधक।
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देवी-सूक्त  : पुं० [मध्य० स०] ऋग्वेद शाकल संहिता का एक देवी विषयक सूक्त।
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देवीकोट  : पुं० [सं०] वाणासुर की राजधानी। शोणितपुर।
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देवीबीज  : पुं० [सं० देवीवीर्य] गंधक।
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देवेंद्र  : पुं० [देव-इंद्र ष० त०] देवताओं के अधिपति, इंद्र।
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देवेश  : पुं० [देव-ईश ष० त०] देवताओं के राजा इंद्र। २. ईश्वर। ३. शिव। ४. विष्णु।
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देवेशय  : पुं० [सं० देवे√शी (सोना)+अच्, अलुक् स०] १. परमेश्वर। २. विष्णु।
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देवेशी  : स्त्री० [देव-ईश ष० त०, ङीष्] १. पार्वती। २. देवी।
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देवेष्ट  : वि० [देव-इष्ट ष० त०] जिसे देवता चाहते हों। पुं० गुग्गुल।
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देवेष्टा  : स्त्री० [सं० देवेष्ट+टाप्] बड़ा बिजौरा नींबू।
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देवैया  : वि० [हिं० देना] १. देनेवाला। २. दूसरों को कुछ देने की प्रवृत्ति रखनेवाला।
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देवोत्तर  : पुं० [देव-उत्तर ष० त० ?] देवता को अर्पित अथवा उसके निर्मित उत्सर्ग की हुई संपत्ति।
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देवोत्थान  : पुं० [देव-उत्थान ष० त०] कार्तिक शुक्ला एकादशी (विष्णु का शेष की शय्या पर से सोकर उठना, जो पर्व का दिन माना जाता है)।
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देवोद्यान  : पुं० [देव-उद्यान ष० त०] नंदन, चैत्ररथ, वैभ्राज और सर्वतोभ्रद देवताओं के उद्यान।
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देवोन्माद  : पुं० [सं०] एक प्रकार का उन्माद जिसमें रोगी, पवित्रता पूर्वक रहता है, सुगंधित फूलों की मालाएँ पहनता है और प्रायः मन्दिरों में दर्शन और परिक्रमा करता फिरता है।
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देवौक (स्)  : पुं० [देव-ओकस् ष० त०] देवताओं का वासस्थान।
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देव्युन्माद  : पुं० [सं०] एक प्रकार का उन्माद जिसमें शरीर सूख जाता है। मुँह और हाथ टेढ़े हो जाते हैं और स्मरण-शक्ति जाती रहती है।
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देश  : पुं० [सं०√दिश् (बताना)+अच्] १. सब ओर फैला हुआ वह विस्तृत अवकाश जिसके अंतर्गत दिखाई देने वाली सभी चीजें रहती है। २. उक्त का कोई परिमित या सीमित अंश या भाग। जैसे—तारों का देश। ३. जगह। स्थान। ४. किसी अंग या पदार्थ के आस-पास का स्थान। जैसे—उदर देश, कटि देश, ललाट देश। ५. कोई विशिष्ट भू-भाग या खंड जिसका प्रक्रतिक या कृत्रिम आधारों पर विभाजन हुआ हो तथा जहाँ कुछ विशिष्ट जातियाँ, कुछ विशिष्ट भाषा-भाषी तथा कुछ विशिष्ट परंपराओं और संस्कृतियों वाले लोग रहते है। ६. उक्त लोग। ७. किसी का अथवा उसके पूर्वजों का जन्म स्थान। जैसे—छुट्टियों में वे देश चले जाते हैं। ८. संगीत में संपूर्ण जाति का एक राग। ९. जैन शास्त्रानुसार चौथा पंचक जिसके द्वारा अर्थानुसंधान पूर्वक तपस्या अर्थात गुरु, जन, गुहा, श्मशान, और रुद्र की वृद्धि होती है।
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देश-कली  : स्त्री० [सं०] एक रागिनी जिसमें गांधार, कोमल और बाकी सब स्वर शुद्ध लगते हैं।
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देश-चरित्र  : पुं० [ष० त०] देश की प्रथा। रवाज। (कौं०)
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देश-चारित्र  : पुं० [ष० त०] जैन शास्त्रानुसार गार्हस्थ्य धर्म जिसके बारह भेद हैं।
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देश-धर्म  : पुं० [ष० त०] किसी विशिष्ट देश की रीति, नीति, आचार, व्यवहार आदि।
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देश-निकाला  : पुं० [हिं० देश+निकालना] १. देश से निकालने की क्रिया या भाव। २. अपराधी विशेषतः देशद्रोही को दिया जानेवाला वह दंड जिसमें वह देश के बाहर निकाल दिया जाता है। क्रि० प्र०—देना।—मिलना।
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देश-पति  : पुं० [ष० त०] १. देश का स्वामी; राजा। २. देश का प्रधान शासक। राष्ट्रपति।
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देश-पाली  : स्त्री० [सं०] देशकारी (रागिनी)।
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देश-पीड़न  : पुं० [ष० त०] सारी प्रजा पर होनेवाला अत्याचार। राष्ट्र को कष्ट पहुँचाना। (कौ०)
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देश-भक्त  : पुं० [ष० त०] वह व्यक्ति जिसे अपना देश परम प्रिय हो तथा जो उसकी स्वतन्त्रता और स्वार्थो को सर्वोपरी समझता हो। ऐसा व्यक्ति किसी अच्छे उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सब-कुछ उत्सर्ग करने को प्रस्तुत रहता हो।
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देश-भक्ति  : स्त्री० [ष० त०] देशभक्त होने की अवस्था, गुण या भाव।
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देश-भाषा  : स्त्री० [ष० त०] वह भाषा जो किसी विशिष्ट देश या प्रांत में ही बोली जाती हो। जैसे—पंजाबी, बँगला, पराठी आदि।
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देश-मल्लार  : पुं० [सं०] संपूर्ण जाति का एक राग।
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देशक  : पुं० [सं०√दिश्+ण्वुल्—अक] १. देश का शासक। २. मार्ग दर्शक। ३. उपदेश करनेवाला। उपदेशक।
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देशकारी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, संपूर्ण जाति की एकरागिनी जो मेघराग की भार्या कही गई है। यह वर्षा ऋतु में दिन के पहले पहर में गाई जाती है।
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देशगांधार  : पुं० [सं०] एक राग जो सबेरे एक दंड से पाँच दंड तक गाया जाता है।
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देशज  : वि० [सं० देश√जन् (उत्पत्ति)+ड] (शब्द) जो देश में ही उपजा या बना हो। जो न तो विदेशी हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। पुं० ऐसा शब्द जो न संस्कृत हो, न संस्कृत का अपभ्रंश हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो, बल्कि किसी प्रदेश के लोगों ने बोल-चाल में जों ही बना लिया हो। विशेष—यह शब्दों के तीन प्रकारों या विभागों में से एक है। शेष दो विभाग तत्सम और तद्भव है।
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देशज्ञ  : पुं० [सं० देश√ज्ञा (जानना)+क] किसी देश की दशा, रीति, नीति आदि सब बातें जाननेवाला।
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देशना  : स्त्री० [सं०] १. उपदेश। (जैन) २. कोई ऐसी बात जिसके अनुसार कोई काम करने को कहा जाय। हिदायत।
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देशराज  : पुं० [सं०] राजा परमाल (प्रमर्दि देव) के एक सामंत जो आल्हा और ऊदल के पिता थे।
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देशस्थ  : वि० [सं० देश√स्था (ठहरना)+क] १. देश में स्थिति। २. देश में रहनेवाला। पुं० महाराष्ट्र ब्राह्मणों का एक भेद।
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देशाका  : पुं० [सं०] एक प्रकार की रागिनी।
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देशांकी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की रागिनी।
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देशाक्षी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देशाखी  : स्त्री० [सं०] षाड़व जाति की एक रागिनी जो हनुमत् के मत से हिंडोल की दूसरी रागिनी है।
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देशाचार  : पुं० [सं० देश-आचार ष० त०] किसी विशिष्ट देश के रीति-रिवाज।
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देशाटन  : पुं० [सं० देश-अटन, स० त०] भिन्न-भिन्न देशों में घूम-घूमकर की जानेवाली यात्रा या पर्यटन।
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देशांतर  : पुं० [सं० देश-अंतर; मयू० स०] [वि० देशांतरी, भू० कृ० देशांतरित] १. अपने अथवा प्रस्तुत देश से भिन्न, अन्य या दूसरा देश परदेश। विदेश। २. दे० ‘देशांतरण’। ३. भूगोल में, याम्योतर रेखा के विचार से निश्चित की हुई किसी स्थान की पूर्वी या पश्चिमी दूरी जो अक्षांश की परह संख्या-सूचक अंशों में बताई जाती है। (लांगी च्यूड)
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देशांतर सूचक यंत्र  : पुं० [सं०] किसी स्थान का देशांतर सूचित करनेवाला एक प्रकार का यंत्र जिसका उपयोग मुख्यतः समुद्री जहाजों पर देशांतर जानने के लिए किया जाता है। (क्रोनोमीटर)
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देशांतरण  : पुं० [सं० देशांतर+णिच्+ल्युट्—अन] १. एक देश को छोडकर दूसरे देश में जाना तथा उसमें जाकर रहना। २. राज्य की ओर से दिया जानेवाला निर्वासन का दंड।
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देशांतरित  : भू० कृ० [सं० देशांतर+णिच्+क्त] १. जो किसी दूसरे देश जा बसा हो। २. जिसे देश-निकाले का दंड मिला हो। ३. जो किसी दूसरे देश में पहुँचा या भेज दिया गया हो।
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देशांतरित-पण्य  : पुं० [कर्म० स०] दूर देश से आया हुआ माल। विदेशी माल। (कौ०)
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देशांतरी (रिन्)  : वि०, पुं० [सं० देशांतर+इनि] विदेशी।
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देशावकाशिक (व्रत)  : पुं० [सं०] जैन शास्त्रानुसार, एक प्रकार का शिक्षा-व्रत जिसमें स्वार्थ के लिए सब दिशाओं में आने-जाने के जो प्रतिबंध हैं उनकी ओर भी कठोरता तथा दृढ़ता से पालन किया जाता है।
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देशावली  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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देशांश  : पुं०=देशांतर।
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देशिक  : वि० [सं० देश+ठन्—इक] किसी विशिष्ट देश या प्रदेश से संबंध रखने या उसकी सीमा में होनेवाला। (इन्टरनल)। पुं० पथिक बटोही।
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देशित  : भू० कृ० [सं०√दिश्+णिच्+क्त] १. जिसे आदेश दिया गया हो। आदिष्ट। २. जिसे उपदेश दिया गया हो। उपदिष्ट। ३. जिसे कोई बात बतलाई या समझाई गई हो।
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देशिनी  : स्त्री० [सं०√दिश्+णिनि—ङीप्] १. सूची। सूई। २. तर्जनी उँगली।
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देशी  : वि० [सं० देशीय] १. देश संबंधी। देश का। जैसे—देशी भाषा। २. किसी व्यक्ति की दृष्टि से, स्वयं उसके देश में बहने, रहने या होनेवाला। स्वदेशी। जैसे—देशी माल। पुं० १. संगीत के दो भेदों में से एक (दूसरा भेद ‘मार्गी’ कहलाता है)। २. एक प्रकार का ताण्डव नृत्य जिसमें अभिनय कम और अंग-विक्षेप अधिक होता है। स्त्री एक रागिनी जो हनुमत के मत से दीपक राग की भार्या है और जो ग्रीष्मकाल में मध्याह्र के समय गाई जाती है।
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देशी-राज्य  : पुं० दे० ‘रियासत’।
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देशीय  : वि० [सं० देश+छ—ईय] देश में होने अथवा उसके भीतरी भागों से संबंध रखनेवाला।
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देश्य  : वि० [सं०] १. किसी देश, प्रान्त या स्थान से संबध रखने या उसमें होनेवाला। देशी। २. प्रान्तीय या स्थानीय। ३. [√दिश्+ण्यत्] (तथ्य) जो प्रमाणित किया जाने को हो। पुं० १. देश का निवासी। २. ऐसा गवाह जिसने कोई घटना अपनी आँखों से देखी हो। प्रत्यक्षदर्शी। ३. न्याय में ऐसा कथन या तथ्य जो प्रमाणिक किया जाने को हो। पूर्व-पक्ष।
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देस  : पुं० देश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देसकार  : पुं०=देशकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देसंतर  : पुं० [सं० देशान्तर] दूसरा देश। विदेश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देसवाल  : वि० [हिं० देस+वाला] स्वदेश का, दूसरे देश का नहीं (मनुष्य के लिए) जैसे—देसवाल बनिया। पुं० एक प्रकार का पटसन।
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देसावर  : पुं० [सं० देश+अपर] [वि० सावरी] अपने देश से भिन्न कोई दूसरा देश।
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देसावरी  : वि० [हिं० देसावर] देसावर अर्थात् अन्य देश का।
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देसी  : वि०=देशी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देह  : स्त्री० [सं०√दिह् (वृद्धि)+घञ्] [वि० देही] १. शरीर। तन। बदन। मुहा०—देह छोड़ना या त्यागना=मृत्यु होना। देह धरना या लेना=जन्म लेकर शरीर धारण करना। देह बिसरना=तन-बदन की सुध न रहना। २. शरीर का कोई अंग। ३. जिन्दगी। जीवन। ४. देवता आदि की मूर्ति। विग्रह। पुं० [फा०] गाँव। खेड़ा। विशेष—‘देहात’ वस्तुतः इसी ‘देह’ का बहु० है।
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देह-त्याग  : पुं० [ष० त०] मरण। मृत्यु।
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देह-धारक  : वि० [ष० त०] शरीर को धारण करनेवाला। देह-धारी। पुं० अस्थि। हड्डी।
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देह-धारण  : पुं० [ष० त०] १. शरीर प्राप्त करना। जन्म लेना। २. शरीर प्राप्त होने पर उसका पालन और रक्षा करना। शरीर के धर्मों का निर्वाह करना।
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देह-पात  : पुं० [ष० त०] देह अर्थात् शरीर का नाश। मृत्यु।
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देह-यात्रा  : स्त्री० [च० त०] १. भोजन। भरण-पोषण आदि ऐसे काम जिनसे शरीर चलता रहे। २. [ष० त०] मृत्यु। मौत।
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देह-शंकु  : पुं० [सं०] पत्थर का खंभा।
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देह-संचारिणी  : स्त्री० [सं० देह-सम्√चर् (गति)+णिनि—ङीप्] कन्या। लड़की।
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देह-सार  : पुं० [ष० त०] शरीर में की मज्जा नामक धातु।
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देहकान  : पुं०=दहकान।
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देहकानी  : वि०=दहकानी।
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देहद  : पुं० [सं० देह√दै (शोधन)+क] पारा।
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देहधारी (रिन्)  : वि० [सं० देह√धृ (धारण)+णिनि] [स्त्री० देहधारिणी] १. जन्म लेकर शरीर धारण करनेवाला। २. जिसे शरीर हो। शरीरी। पुं० जीव। प्राणी।
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देहधि  : पुं० [सं० देह√धा+कि] चिडि़यों का पंख। डैना।
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देहधृज्  : पुं० [सं० देह√धृज् (संचरण)+क्विप्] वायु जिससे शरीर बना रहता है।
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देहनी  : पुं० [सं०] १. जीवित व्यक्ति। प्राणी। २. मनुष्य। स्त्री० पत्नी (राज०)।
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देहंभर  : वि० [सं० देह√भृ (पोषण)+खच्, मुम्] १. अपने ही शरीर का पोषण करनेवाला। २. परम स्वार्थी।
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देहभुज  : पुं० [सं० देह√भुज् (भोगना)+क्विप्] जीव। प्राणी। २. आत्मा। ३. सूर्य। ४. मरण। मृत्यु।
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देहभृत्  : [सं० देह√भृ (भरण)+क्विप्] जीव। प्राणी।
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देहर  : स्त्री० [सं० देवह्रद] नदी के किनारे की वह नीची भूमि जो बाढ़ के समय जलमग्न रहती है।
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देहरा  : पुं० [हिं० देव+घर] [स्त्री० अल्पा० देहरी] देवालय। मंदिर। पुं०=देह (शरीर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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देहरि  : स्त्री०=देहली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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देहरी  : स्त्री०=देहली।
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देहला  : स्त्री० [सं०] मदिरा। शराब।
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देहली  : स्त्री० [सं० देह√ला (ग्रहण)+कि—ङीष्] १. दीवार में लगे हुए दरवाजे में चौखट के नीचे की लकड़ी। दहलीज। २. उक्त लकड़ी के आस-पास का स्थान अथवा वह स्थान जहाँ पर उक्त लकड़ी रहती है।
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देहली-दीपक  : पुं० [मध्य० स०] १. देहरी पर रखा हुआ दीपक जो भीतर बाहर दोनों ओर प्रकाश फैलाता है। २. उक्त के आधार पर प्रचलित एक न्याय का सिद्धान्त जिसका प्रयोग ऐसे अवसरों पर होता है जहाँ एक चीज या बात दोनों पक्षों पर प्रकाश डालती हो। ३. साहित्य में, एक अर्थालंकार जिसमें किसी एक बीचवाले शब्द का अर्थ पहले और बाद के अर्थात् दोनों पदों में समान रूप से लगता हो। जैसे—हम न आप में ‘न’ जिसके कारण पद का अर्थ होता है—न हम और न आप।
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देहवंत  : वि० [सं० देहवान का बहु०] जिसका देह हो। शरीरधारी।
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देहवान् (वत्)  : वि० [सं० देह+मतुप्] शरीरधारी। पुं० जीव। प्राणी।
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देहांत  : पुं० [देह-अंत ष० त०] देह का अंत। शरीरांत। मृत्यु।
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देहात  : पुं० [फा० देह (गाँव) का बहु०] [वि० देहाती] १. गाँव। ग्राम। २. देश के वे विभाग जिनमें अनेक गाँव हों।
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देहांतर  : पुं० [देह-अंतर, मयू० स०] एक शरीर छोड़ने पर दूसरा प्राप्त होने वाला शरीर। जन्मांतर।
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देहांतरण  : पुं० [सं० देहांतर+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० देहांतरित] आत्मा का एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में जाना। नया देह या शरीर धारण करना।
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देहाती  : वि० [हिं० देहात] [भाव० देहातीपन] १. देहात संबंधी। २. देहात अर्थात् गाँव में रहनेवाला। ३. उक्त लोगों की प्रकृति, रुचि, व्यवहार आदि के अनुरूप। जैसे—देहाती पहनावा या रहन-सहन। पुं० गँवार।
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देहातीत  : वि० [सं० देह-अतीत द्वि० त०] १. जो शरीर से परे या स्वतंत्र हो। २. जिसे देह का अभिमान, ममता आदि न हो।
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देहातीपन  : पुं० [हिं० देहाती+पन (प्रत्य०)] देहाती होने की अवस्था या भाव।
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देहात्म-ज्ञान  : पुं० [ष० त०] देह और आत्मा के अभेद का ज्ञान।
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देहात्म-वाद  : पुं० [ष० त०] एक दार्शनिक सिद्धान्त जिसके अनुसार देह को आत्मा मानते हैं और देह से भिन्न आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं मानते।
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देहात्मवादी (दिन्)  : पुं० [सं० देहात्मवादी+इनि] देहात्मवाद का अनुयायी या समर्थक।
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देहात्मा (त्मन्)  : पुं० [सं०देह-आत्मन् द्व० स०] देह और आत्मा।
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देहाध्यास  : पुं० [देह-अध्याय, ष० त०] देह को ही आत्मा समझने का भ्रम।
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देहावरण  : पुं० [देह-आवरण, ष० त०] १. शरीर पर पहनने के या उसे ढकने के कपड़े। २. जिरह। बक्तर।
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देहावसान  : पुं० [देह-अवसान ष० त०] देह का अवसान अर्थात् अंत या नाश। देहांत। मृत्यु।
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देहिका  : स्त्री० [सं०√दिह्+ण्वुल्—अक, टाप् इत्व] एक प्रकार का क्रीड़ा।
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देही (हिन्)  : वि० [सं० देह+इनि] देह को धारण करनेवाला। शरीरी। पुं० जीवात्मा। आत्मा।
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देहेश्वर  : पुं० [देह-ईश्वर, ष० त०] आत्मा।
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देहोद्भव, देहोद्भूत  : वि० [देह-उद्भव ब० स० देह-उद्भूत, पं० त०] १. देह से उद्भूत या प्राप्त होनेवाला। २. जन्मजात।
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