शब्द का अर्थ
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					दंडक					 :
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					वि० [सं०√दंड+णिच्+ण्वुल्—अक] दंड देने या दंडित करनेवाला। पुं० १. डंडा। सोंटा २. दंड देनेवाला व्यक्ति। ३. राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र जिनके मान पर दंडकारण्य का नामकरण हुआ था। ४. छंदशास्त्र के अनुसार (क) ऐसा मात्रिक छंद, जिसके प्रत्येक चरण में ३२ से अधिक मात्राएँ हों अथवा (ख) ऐसा वर्णिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २६ से अधिक वर्ण हों। ५. एक प्रकार का वात रोग जिसमें हाथ, पैर, पीठ, कमर आदि अंग स्तब्ध होकर ऐंठ-से जाते हैं। ६. संगीत में शुद्ध राग का एक प्रकार या भेद। ७. दे० ‘दंडकारण्य’।				 | 
			
			
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					दंडक-ज्वर					 :
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					पुं० [सं०] मच्छरों के दंश से फैलनेवाला एक प्रकार का ज्वर जिसमें सारे शरीर में पीडा होती है और शरीर तथा आँखे लाल हो जाती हैं। (डेंग्यु)				 | 
			
			
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					दंडकला					 :
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					स्त्री० [सं०] दुर्मिल छंद का एक भेद, जिसके अंत में एक गुरु अथवा सगण होता है।				 | 
			
			
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					दंडका					 :
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					स्त्री० [सं० दण्यक+टाप्]=दंडकारण्य। (दे०)				 | 
			
			
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					दंडकारण्य					 :
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					पुं० [सं० दण्डक-अरण्य मध्य० स०] एक प्रसिद्ध बहुत बड़ा वन, जो विंध्यपर्वत और गोदावरी नदी के बीच में पड़ता है। सीता का हरण रावण ने इसी वन में किया था। आज-कल इसका कुछ अंश साफ करके मनुष्यों के बसने योग्य किया जाने लगा है।				 | 
			
			
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					दंडकी					 :
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					स्त्री० [सं० दण्डक+ङीष्] १. छोटा डंडा। २. छड़ी।				 | 
			
			
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