शब्द का अर्थ
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					तपस					 :
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					पुं० [सं०√तप्+असच्] १. चंद्रमा। २. सूर्य। ३. चिड़िया। पक्षी। पुं०=तपस्वी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री=तपस्या।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तपसा					 :
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					स्त्री० [सं० तपस्या] १. तपस्या। तप। २. ताप्ती नदी का दूसरा नाम।				 | 
			
			
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					तपसाली					 :
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					पुं० [सं० तपःशालिन्] तपस्वी।				 | 
			
			
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					तपसी					 :
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					पुं० [तपस्वी] तपस्वी। स्त्री० [सं० तपस्या मत्स्य] बंगाल की खाड़ी में होनेवाली एक प्रकार की छोटी मछली।				 | 
			
			
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					तपसोमूर्ति					 :
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					पुं० [सं० अलुक्० स०] बारहवें मन्वंतर के चौथे सावर्णि के सप्तर्षियों में से एक। (हरिवंश)।				 | 
			
			
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					तपस्तक्ष					 :
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					पुं० [सं० तपस्√तक्ष् (क्षीण करना)+अण्] इंद्र।				 | 
			
			
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					तपस्पति					 :
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					पुं० [सं०, ष० त०] विष्णु।				 | 
			
			
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					तपस्य					 :
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					पुं० [सं० तपस्+यत्] १. तप। तपस्या। २. तापस मनु के दस पुत्रों में से एक। ३. फाल्गुन का महीना। ४. कुंद का फूल।				 | 
			
			
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					तपस्या					 :
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					स्त्री० [सं० तपस्+क्यङ+अ-टाप्] १. मन की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से किये जानेवाले वे कठोर और कष्टदायक आचरण तथा नियम पालन जो एकांत में रहकर किए जाते हैं। तप। २. ब्रह्मचर्य। ३. अपराध, पाप आदि के प्रायश्चित स्वरूप किया जानेवाला ऐसा आचरण जिससे शरीर को कष्ट हो। ४. इंतजार या प्रतीक्षा। स्त्री०=तपसी (मछली)।				 | 
			
			
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					तपस्वत्					 :
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					पुं० [सं० तपस्+मतुप्, वत्व] तपस्वी।				 | 
			
			
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					तपस्वि-पत्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] दौने का पौधा। दमनक।				 | 
			
			
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					तपस्विता					 :
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					स्त्री० [सं० तपस्विन+तल्-टाप्] तपस्वी होने की अवस्था, गुण या भाव।				 | 
			
			
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					तपस्विनी					 :
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					स्त्री० [सं० तपस्विन+ङीष्] १. तपस्या करने वाली स्त्री। २. तपस्वी का स्त्री। ३. पतिव्रता और सती स्त्री। ४. वह स्त्री जो पति के मरने पर केवल सन्तान के पालन-पोषण के विचार से सती न हो और ब्रह्मचर्यपूर्वक शेष जीवन बितावे। ५. गोरखमुंडी। ६. कुकी नाम का वनस्पति। ७. जटामासी।				 | 
			
			
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					तपस्वी (स्विन्)					 :
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					पुं० [सं० तपस्+विनि] [स्त्री० तपस्विनी] १. वह जो बराबर तपस्या करता रहता हो। तपी। २. तपसी (मछली)। ३. कपसोमूर्ति। का एक नाम। ४. घीकुआँर वि० दीन-हीन और दया का पात्र।				 | 
			
			
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