शब्द का अर्थ
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					तना					 :
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					पुं० [फा०] पेड़-पौधों का जमीन से ऊपर निकला हुआ वह मोटा भाग जिसके ऊपरी सिरे पर डालियाँ निकली होती है। धड़। अव्य० वि० दे० ‘तनु’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तनाई					 :
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					स्त्री० [हिं० तानना] तानने की क्रिया, भाव या मजदूरी।				 | 
			
			
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					तनाऊ					 :
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					पुं०=तनाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तनाकु					 :
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					क्रि० वि०=तनिक।				 | 
			
			
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					तनाजा					 :
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					पुं० [अ० तनाजः] १. दो० पक्षों में कुछ समय तक बराबर चलता रहनेवाला झगड़ा। २. वैर। शत्रुता।				 | 
			
			
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					तनाना					 :
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					स० [हिं० तानना का प्रे०] कोई चीज किसी को तानने में प्रवृत्त करना। तनवाना।				 | 
			
			
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					तनाब					 :
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					स्त्री० [अ० तिनाब] १. वह डोरी या रस्सी जिससे खेमे या तंबू के बाँस आदि खींचकर खूँटों से बाँधे जाते हैं। २. बाजीगरों का वह रस्सा जिसपर चलकर वे तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। ३. वह डोरी या रस्सी जिसपर धोबी कपड़े सुखाने के लिए टाँगते हैं। ४. डोरी। रस्सी।				 | 
			
			
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					तनाय					 :
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					पुं०=तनाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तनाव					 :
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					पुं० [हिं० तनना] १. तने अर्थात् कसे या खिचें हुए होने की अवस्था या भाव। २. राग-द्वेष आदि के कारण उत्पन्न होनेवाली वह स्थिति जिसमे दोनों पक्ष एक दूसरे की ओर प्रवृत्त नहीं होते। स्त्री० दे० ‘तनाब’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तनासुख					 :
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					पुं० [अ०] इस लोक में आत्मा का होनेवाला आवा गमन या बार-बार शरीर धारण।				 | 
			
			
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