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घाँ  : स्त्री० [सं० ख, या घाट=ओर।] १. दिशा। दिक्। २. ओर। तरफ। ३. जगह। स्थान।
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घा  : स्त्री० [सं० ख अथवा घाट-ओर] १. ओर। तरफ। जैसे– चहूँघा। २. दिशा।
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घाइ  : पुं०=घाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=घायल।
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घाइल  : वि०=घायल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घाई  : स्त्री० [हिं० घाँ या घा] १. ओर। तरफ। २. दो चीजों के बीच की जगह। अवकाश। ३. बार। दफा। ४.पानी में का चक्कर भंवर। अव्य० =तरह। नाई (बुन्देल०)।
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घाई  : स्त्री० [सं० गभस्ति=उँगली] १. दो उँगलियों के बीच की संधि। अंटी। २. कोई ऐसा कोना जहाँ दो रेखाएँ आकर मिलती हों। जैसे–पौधे की पेड़ी और डाल के बीच की घाई। ३.अँगीठी के ऊपरी सिरे पर का उबार। स्त्री० [सं० घात] १. आघात। प्रहार। वार। जैसे– बनेठी या सोटे की घाई। २. चोट लगने से होनेवाला घाव। जैसे– कुठार की घाई। ३.चालाकी या धोखे की चाल। मुहावरा–(किसी को) घाइयाँ बताना=धोखा देने के लिए इधर-उधर की बातें करना। झाँसा पट्टी या दम-बुत्ता देना। स्त्री०=गाही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाऊ  : पुं० [सं० घात] १. आघात। चोट। उदाहरण– यह सुनि परा निसानहिं घाऊ।–तुलसी। २. घाव। जखम।
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घाऊघम  : वि० [हिं० खाऊ+गप वा घप] १. गुप्त रूप से या चुपचाप दूसरों का माल उड़ाने, खाने या हजम करनेवाला। २. सब कुछ खा-पी या फूँक-तापकर नष्ट करनेवाला। ३. बहुत बड़ा चालाक या धूर्त।
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घाग  : पुं०=घाघ।
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घागही  : स्त्री० [देश] पटसन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाघ  : पुं० [?] १. गोंडे के रहनेवाले एक बहुत चतुर और अनुभवी कवि जिसकी कही हुई बहुत सी कहावतें उत्तरीय भारत में प्रसिद्ध हैं। ये कहावतें खेती-बारी ऋतु-काल तथा लग्न,मुहूर्त आदि के संबंध में हैं और देहातों में बहुत प्रचलित हैं। २. उल्लू की जाति का एक बड़ा पक्षी। घाघरा
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घाँघरा  : पुं० [स्त्री,.घाँघरी] १. =घाघरा। २. =लोबिया (फली)।
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घाघरापलटन  : स्त्री० [हिं०] स्काँटलैंड देश के पहाड़ी गोरों की सेना जिनका पहनावा कमर से घुटने तक लहँगे की तरह का होता है।
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घाँघल  : स्त्री० [?] बखेड़ा। झंझट। (राज०)
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घाघस  : पुं० [?] १. बटेर की जाति का भूरे रंग का पक्षी जिसका मांस खाया जाता है। २. एक प्रकार की मुरगी। पुं०=घाघ (उल्लू की जाति का बड़ा पक्षी)।
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घाघी  : स्त्री० [सं० घर्घर] मछलियाँ फाँसने का एक प्रकार का बड़ा जाल।
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घाँची  : पुं० [हिं० घान+ची] तेली। (डिं०)।
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घाट  : पुं० [सं० घट्ट] १. जलाशय,नदी आदि के तट पर वह स्थान जहाँ लोग विशेष रूप से नहाते, धोते, जल भरते, नावों पर चढ़ते-उतरते, अथवा उन पर सामान आदि लादते उतारते हों मुहावरा– घाट नहाना=किसी के मरने पर उदक क्रिया करना। (नाव का) गाट लगना=नाव का सवारियाँ चढ़ाने या उतारने,सामान लादने या उतारने के लिए घाट पर पहुँचना या किनारे पर लगना। (लोगों का) घाट लगना=नाव द्वारा नदी पार जाने के इच्छुक व्यक्तियों का घाट पर इकट्ठा होना। २. तालाब, नदी आदि के तट के आस-पास का वह स्थान जहाँ सीढ़ियाँ आदि बनी होती है तथा जिस पर से होकर लोग जल तक पहुँचते हैं। ३. चढ़ाव-उतार का पहाड़ी मार्ग। ४. पहाड़। जैसे– पूर्वी तट। ५. किसी चीज की बनावट में वह अंश जिसमें कुछ चढ़ाव उतार या गोल रेखा का सा रूप हो। पद-घर घाट।(देखे)। ५. कोई काम पूरा होने की जगह या स्थान। ठिकाना। मुहावरा–घाट-घाट का पानी पीना= (क अनेक स्थानों को देख आना अथवा वहाँ रह आना। (ख) अनेक तथा तरह-तरह की चीजों के स्वाद लेना अथवा तरह-तरह के काम करना। ६. ओर। तरफ। दिशा। ७. चाल-चलन। रंग-ढंग। ८. तलवार की धार। ९. जौ की गिरी। १॰. दुलहिन का लहँगा। ११. रहस्य संप्रदाय में, घट का हृदय। स्त्री० [हिं० घटिया=बुरा] १. धोखा। छल। कपट। २. कुकर्म। बुराई। स्त्री० [हिं,.घटना] घटने या घटकर होने की अवस्था या भाव। वि० [हिं० घट] १. कम। थोड़ा। २. घटिया। क्रि० वि० घटकर। पुं० [सं०√घट्+घञ्+अच्] [स्त्री० घाटी,घाटिका] १. गरदन का पिछला भाग। २. अंगिया में का गला।
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घाट-पहल  : पुं० [हिं०] गढ़ या तरासकर बनाई जानेवाली चीज में उसकी बनावट का उतार-चढ़ाव और पार्श्व जो उसे सुड़ौल बनाते हैं। जैसे– इस हीरे का घाट-पहर बहुत बढ़िया है।
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घाट-बंदी  : स्त्री० [हिं० घाट+बंदी] १. घाट पर नाव लाने-ले जाने अथवा माल आदि चढ़ाने या उतारने का निषेध या रुकावट। (एम्बार्गो) २. घाट बाँधने अर्थात् बनाने की क्रिया, ढंग भाव या रूप।
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घाटना  : अ०=घटना।(कम होना)।
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घाटवाल  : पुं० [हिं० घाट+वाला (प्रत्य)] १. घाट का अधिकारी, मालिक या स्वामी। २. वह ब्राह्मण जो घाट पर बैठकर स्नान करनेवाले से दान-दक्षिणा लेता हो। घाटिया।
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घाटा  : पुं० [हिं० घटना] १. घटने की क्रिया या भाव। २. वह (धन या सामग्री) जो कुछ घंटे या कम पड़े। ३. लेन-देन व्यापार आदि में होनेवाली आर्थिक हानि। टोटा। नुकसान। (लाँस)। क्रि०प्र०-आना।–उठाना।–खाना।–देना।–पड़ना।–भरना।–सहना।–होना। पुं० [हिं० घाटी] पहाड़ी मार्ग।
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घाटारोह  : पुं० [हिं० घाट+सं० रोध] घाट पर का आवागमन बंद करना। घाट पर किसी को आने-जाने उतरने-चढ़ने न देना। घाट रोकना।
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घाटि  : वि० [हिं० घटना] कम। न्यून। क्रि० वि० किसी की तुलना में कम,थोड़ा या हलका। स्त्री० [सं० घात] अनुचित और निंदनीय कर्म। दुष्कर्म।
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घांटिक  : वि० [सं० घंटा+ठक्-इक] घंटा या घंटी बजानेवाला। पुं० १. स्तुति-पाठक। २. धूतरा।
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घाटिका  : स्त्री० [सं० घाट+कन्-टाप्,इत्व] गले का पिछला भाग। गरदन।
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घाटिया  : पुं० [सं० घाट+इया(प्रत्यय)] १. वह ब्राह्मण जो घाट पर बैठकर नहाने वालों से दान-दक्षिणा आदि लेता हो। २. घाट का स्वामी।
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घाँटी  : स्त्री० [सं० घंटिका] १. गले के अंदर की घंटी। कौआ। २. कंठ। गला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाटी  : स्त्री० [सं० घाट] १. दो पर्वत-श्रेणियों के बीच का तंग या सकरा मार्ग। २. पर्वतीय प्रदेशों के बीच में पड़नेवाला मैदान। जैसे– कश्मीर की घाटी। ३. चढ़ाव या उतार का पहाड़ी मार्ग। पहाड़ की ढाल। ४. वह पत्र जिसमें यह लिखा रहता है कि घाट पर आने या वहाँ से जानेवाले माल का महसूल चुका दिया गया है। स्त्री० [सं० घाटिया] गले का पिछला भाग।
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घाटी-मार्ग  : पुं० [हिं० घाट+सं० मार्ग] १. पहाड़ियों के बीच में नदी की धारा आदि से बना हुआ संकीर्ण पथ। २. दर्रा।
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घाँटो  : पुं० [?] चैती की तरह का एक प्रकार का लोक-गीत जो चैत-वैसाख में गाया जाता है। (पूरब)
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घाटो  : पुं०=घाटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० घटना] दरिद्र। गरीब। पुं० [हिं० घाट] १. एक प्रकार का गीत जो घाट पर पानी भरने के समय स्त्रियाँ गाती थी। २. दे० ‘घाँटो’।
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घात  : पुं० [सं०√हन् (हिंसा)+घञ्, कुत्व, त० आदेश] [वि० घाती] १. अस्त्र-शस्त्र अथवा हाथ-पैर आदि से किसी पर की जानेवाली चोट। प्रहार। मार। २. जान से मार डालना। वध। हत्या। जैसे–गोघात। ३.धोखे में रखकर किया जाने वाला अहित या बुराई। ४. गणित में किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा करने से निकलनेवाला गुणनफल। (पावर) स्त्री० १. अपना स्वार्थ सिद्ध करने का उपयुक्त अवसर। मुहावरा– घात ताकना=उपयुक्त अवसर की ताक में रहना। (किसी के) घात पर चढ़ना या घात में आना=ऐसी अवस्था में होना जिससे कोई दूसरा आसानी से अपना मतलब गाँठ सके। (किसी को) घात में पाना= किसी को ऐसी स्थिति में पाना जिससे कोई स्वार्थ सिद्ध होता हो। (किसी की) घात में फिरना,रहना या होना=किसी को हानि पहुँचाने का अवसर ढूँढ़ते रहना। (किसी की) घात में बैठना=ऐसी जगह छिपकर बैठना जहाँ से किसी पर सहज में आघात या वार किया जा सके। घात लगना=ऐसा इष्ट और उपयुक्त अवसर मिलना जिससे कोई दुष्ट उद्देश्य या स्वार्थ सहज में सिद्ध हो सके। घात लगाना=कोई काम करने (विशेषतः अपना मतलब साधने) की युक्ति निकालना। २. वह स्थान या स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति ऐसे उपयुक्त अवसर की प्रतिक्षा में हो जिसमें कोई काम बन या उद्देश्य सिद्ध हो सकता हो। ३. दाँव। पेच। छल। ४. रंग-ढंग। तौर-तरीका। वि,.अमंगल या हानि करनेवाला। अशुभ। जैसे– घात तिथि, घात नक्षत्र,घात वार।
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घात-स्थान  : पुं० [ष० त०] वह स्थान जहाँ पर प्रहार किया गया हो या होता हो। वध-स्थान।
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घातक  : वि० [सं०√हन्+ण्वुल्-अक,कुत्व, त० आदेश] १. घात या प्रहार करनेवाला। २. मार डालनेवाला। बधिक। ३. कष्ट या हानि पहुँचानेवाला। जैसे– घातक विचार। ४. जिसके कारण या द्वारा कोई मर सकता हो या मर जाए। (फैटल) जैसे– घातक रोग। पुं० १. हिंसक। २. हत्यारा। ३. फलित ज्योतिष में, वह योग जिसके फलस्वरूप आदमी मर सकता हो। ४. दुश्मन। शत्रु।
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घातकी  : वि० पुं०=घातक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घातन  : पुं० [सं०√हन्+णिच्+ल्युट्-अन,कुत्व,.त० आदेश] १. घात करने की क्रिया या भाव। २,. मारना।
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घाता  : पुं० [?] १. वह चीज जो ग्राहक को तौल या गिनती के ऊपर दी जाए। घाल। २. कोई काम करते समय बीच में अनायास होनेवाला लाभ। जैसे–पुस्तक तो वापस मिली ही,तिस पर जलपान मिल गया घाते में।
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घाति  : पुं० [सं०√हन्+क्तिन्,कुत्व,त० आदेश] पक्षियों को फँसाना या मारना। स्त्री० चिड़िया फँसाने का जाल।
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घातिक  : वि०=घातक।
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घातिया  : वि०=घाती।
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घाती(तिन्)  : वि० [सं०√हन्+णिनि, कुत्व,. त० आदेश] [स्त्री० घातिनी] १. घात या प्रहार करने वाला। २. मार डालने या वध करनेवाला। ३. नाश करनेवाला।
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घातुक  : वि० [सं०√हन्+उकञ्, कुत्व० त० आदेश] १. घातक। २. हानि करनेवाला। ३. क्रूर। निर्दय।
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घात्य  : वि० [सं०√हन्+ण्यत्,कुत्व० त० आदेश] १. जिसका या जिसे घात किया जा सके या किया जाने को हो। २. नष्ट किये या मारे जाने के योग्य।
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घान  : पुं० [सं० घना-समूह] १. किसी वस्तु की उतनी मात्रा जितनी एक बार कड़ाही, कोल्हू, चक्की आदि में तलने,पेरने,पीसने आदि के लिए डाली जाय। २. उतना अंश जितना एक बार में पकाया, बनाया या तैयार किया जाय। ३. हर बार क्रमशः उक्त प्रकार के या ऐसे ही और काम करने की क्रिया या भाव। जैसे– दूसरा या चौथा घान। मुहावरा– घान उतरना=उक्त प्रकार से एक बार काम ठीक उतरना या पूरा होना। घान डालना=उक्त प्रकार का कोई काम शुरू करना। घान पड़ना या लगना=उक्त प्रकार का कोई काम आरंभ होना। पुं० [हिं० घन=बड़ा हथौड़ा] १. बड़ा हथौड़ा। घन। २. बहुत बड़ा आघात या प्रहार। पुं० [सं० घ्राण] १. सूँघने की क्रिया या भाव। २. गंध। बू। उदाहरण– जहाँ न राति न दिवस है, जहाँ न पौन न घानि।–जायसी।
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घाना  : स० [सं० घात,प्रा० घाय+ना (प्रत्य)] १,.घात या प्रहार करना। २. नाश या संहार करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० गहना (पकड़ना)।
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घानि  : स्त्री० १=घान (गंध)। २. =घानी।
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घानी  : स्त्री० [हिं० घान] १. वह स्थान जहाँ कोई काम करने के लिए एक-एक करके घान डाले जाते हों। २. ऊख,तेल आदि पेरने का कोल्हू या उसकी जगह। ३. ढेर। राशि। ४. दे० घान। मुहावरा– घानी करना=पीसना,पेरना या ऐसा ही और कोई काम करना। घानी की सवारी-स्त्री० [हिं०] मालखंभ की एक जिसमें एक हाथ में मोंगरा पकड़कर माल खंभ के चारों ओर घानी या कोल्हू की तरह चक्कर लगाते हैं।
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घाप  : स्त्री० [?] बादलों की घटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाम  : पुं० [सं० घर्म, प्रा० घम्म,पा.गिहन] १. सूर्य या ताप युक्त प्रकाश। धूप। मुहावरा– घाम खाना= (क) सरदी दूर करने के लिए धूप में रहना। (ख) धूप के अधिक या तीव्र प्रभाव में पड़ना। घाम लगना=लू लगना। २. कष्ट। विपत्ति। संकट। मुहावरा–(कहीं या किसी पर) घाम आना=कठिनाई या संकट आना। घाम बचाना या बराना-कष्टदायक बात से बचना। ३. पसीना।
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घामड  : वि० [हिं० घाम] १. (पशु) जो अधिक घाम या धूप लगने के कारण विकल हो गया हो। २. ना-समझ। मूर्ख। ३. आलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घामरी  : स्त्री० [हिं० घामड़ी] १. धूप आदि न रह सकने के कारण होनेवाली विकलता। २. प्रेम के कारण होनेवाली विह्ललता।
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घाय  : पुं०=घाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घायक  : वि०=घातक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घायल  : वि० [हिं० घाय] १. जिसे घाव या चोट लगी हो, विशेषतः ऐसी चोट लगी हो जिसके कारण उसके शरीर का कोई अंग कट या फट गया हो और रक्त बहने लगा हो। जख्मी। २. (व्यक्ति) जिसे किसी के कुव्यवहार से क्लेश हुआ हो। दूसरे के अनुचित व्यवहार से अपने को अपमानित समझनेवाला। (व्यक्ति) ३. जुए में हारा हुआ (जुआरी) पुं० कनकौआ या गुड्डी लड़ाने का एक ढंग य़ा प्रकार।
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घार  : स्त्री० [सं० गर्त्त] पानी के बहाव से कटकर बना हुआ गड्ढा या नाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घारी  : स्त्री० दे० ‘खरिक’।
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घार्षणिक  : वि.[सं० घर्षण+ठक्-इक] घर्षण संबंधी। घर्षण का।
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घाल  : पुं० [हिं० घालना=डालना] १. किसी चीज का वह थोड़ा सा अंश जो सौदा बिक चुकने पर उचित गिनती या तौल के अतिरिक्त अन्त में ग्राहक के माँगने पर दुकानदार उसे प्रसन्न रखने के लिए देता है। घलुआ। २. उक्त के आधार पर बहुत ही तुच्छ या हेय पदार्थ। मुहावरा–घाल न गिनना=कुछ भी न समझना। तुच्छ समझना। उदाहरण–सरग न घालि गनै बैरागा।–जायसी। ३ आघात। प्रहार. उदाहरण–को न गएउ एहि रिसि कर घाला।–जायसी। क्रि.वि.बे-फायदा। व्यर्थ। स्त्री० घालने की क्रिया या भाव। उदाहरण–तिसकी घाल अजोई जाए।–कबीर।
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घाल-मेल  : पुं० [हिं० घालना+मेलना] १. विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की ऐसी मिलावट अथवा विभिन्न बातों का ऐसा सम्मिश्रण जो देखने अथवा सुनने में भला प्रतीत न होता है। २. अनुचित संबंध । ३. मेल-जोल।
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घालक  : वि० [हिं० घालना] [स्त्री० घालिका] १. मारने या वध करने वाला। २. नाशक। ३. बहुत अधिक अपकार या हानि करनेवाला।
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घालकता  : स्त्री० [घालक+ता(प्रत्यय)] घालक होने की अवस्था,गुण या भाव.
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घालना  : स० [प्रा० अप० घल्ल,मरा.घालगें] १. कोई चीज किसी के अंदर डालना या रखना। उदाहरण–को अस हाथ सिंह मुख घालै।–जायसी। २. कोई चीज किसी दूसरी चीज पर बैठाना,रखना या लगाना। उदाहरण–(क) राजकुँवरि घाली वर-माल।–नरपति नाल्ह। (ख) घालि कचपची टीका सजा।–जायसी। ३. (अस्त्र या शस्त्र किसी पर) चलाना,छोड़ना या फेंकना। ४. कोई कार्य संपन्न या संपादित करना। ५. बुरी तरह से चौपट या नष्ट करना। बिगाड़ना। जैसे–किसी का घर घालना। ६. वध या हत्या करना। मार डालना।
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घाव  : पुं० [सं० घात,पा० घातो,प्रा० घाअ,गु० पं० घा० सि० घाऊ,मरा० घाव,घाय] १. शरीर के किसी अंग पर किसी वस्तु का आघात लगने से होनेवाला कटाव या पडनेवाली दरार। क्षत। जख्म। मुहावरा–घाव खाना=आघात या प्रहार सहने के कारण घायल होना। घाव पूजना या भरना=क्षत या घाव में नया मांस भर आने के कारण उसका अच्छा होना। २. शरीर का वह अंग या अंश जो कटने-फटने,सड़ने-गलने आदि के कारण विकृत हो गया हो। ३. मानसिक आघात आदि के कारण होनेवाली मन की दुःखपूर्ण स्थिति। मुहावरा– घाव पर नमक छिड़कना=दुःखी या पीड़ित को और अधिक दुःख या पीड़ा पहुँचाना।
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घाव-पत्ता  : पुं० [हिं० घाव+पत्ता] एक प्रकार की लता जिसके पत्ते घाव पर बाँधने से घाव जल्दी भरता है।
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घावरा  : पुं० [देश] एक प्रकार का ऊँचा सुंगधित वृक्ष जिसकी छाल चिकनी और लकड़ी मजबूत तथा चमकीली होती है।
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घावरिया  : पुं० [हिं० घाव+वरिया(वाला)] घावों की चिकित्सा करनेवाला व्यक्ति। जर्राह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घावा  : वि०=घायल। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घास  : स्त्री० [सं०√घस् (खाना)+ घञ्, पा० घास,पं० घाह,सिं० गाहु,गु० घास्,ने० घाँसू,उ० मरा० घास] १. छोटी हरी वनस्पतियों में से कोई हर एक जिसके पत्ते चरने वाले पशु खाते है। तृण। पद-घास-पात या घास-फूस-(क) तृण और वनस्पति। (ख) कूड़ा-करकट। घास-भूसा= (क) पशुओं का चारा। (ख) व्यर्थ की रद्दी चीजें। मुहावरा– घास काटना,खोदना,गढ़ना या छीलना=तुच्छ या व्यर्थ का काम करना। २. घास की आकृति के कटे हुए कागज,पन्ना आदि के पतले लंबोत्तरे टुकडे। ३. एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
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घासलेट  : पुं० [अं.गैस लाइट] १. मिट्टी का तेल। २. तुच्छ या अग्राह्रा वस्तु।
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घासलेटी  : वि० [हिं० घासलेट+ई.प्रत्यय] १. हलके किस्म का। साधारण या निम्न कोटि का। २. अश्लील या गंदा और रद्दी। जैसे– घासलेटी साहित्य।
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घासी  : स्त्री० [हिं० घास] घास। चारा। तृण। पुं० घसियारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाँह  : स्त्री० =घा(ओर या तरफ)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाह  : स्त्री० [सं० ख=ओर] ओर। दिशा। उदाहरण–उतरि समुद्द अथाह,घाह लंका घर धुज्जिय।–चंदवरदाई। स्त्री०=घाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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