शब्द का अर्थ
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					अवरोह					 :
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					पुं० [सं० अव√रुह्+घ़ञ्] १. ऊपर या ऊँचाई से नीचे आना या उतरना। जैसे—संगीत में स्वरों का अवरोह। २. अवनति। पतन। ३ ०मूल में शाखाएँ निकलना। ४. लता का वृक्ष के चारों ओर लिपटना। ५. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी प्रकार के उतार का उल्लेख होता है। (वर्द्धमान नामक अलंकार का विपरीत रूप)।				 | 
			
			
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					अवरोहक					 :
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					वि० [सं० अव√रुह्+ण्वुल्-अक] ऊपर या ऊँचाई से नीचे की ओर आने या उतरनेवाला। पुं० अश्वगंध। असगंध।				 | 
			
			
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					अवरोहण					 :
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					पुं० [सं० अव√रुह्+ल्युट्-अन] ऊपर या ऊँचाई से नीचे उतरने की क्रिया या भाव। उतार।				 | 
			
			
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					अवरोहना					 :
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					अ० [सं० अवरोहण] ऊपर या ऊँचाई से नीचे आना या उतरना। स० [सं० अवरोधन] रोकना। स० दे० ‘उरेहना’।				 | 
			
			
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					अवरोहशाखी (खिन्)					 :
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					पुं० [सं० अवरोह-शाखा, कर्म० स०+इनि] वट-वृक्ष।				 | 
			
			
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					अवरोहिका					 :
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					स्त्री० [सं० अव√रुह्+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] अश्वगंध (ओषधि)।				 | 
			
			
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					अवरोहिणी					 :
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					स्त्री० [सं० अव√रुह्+णिनि णिनि-ङीष्] फलित ज्योतिष में एक अनिष्ट दशा जो नक्षत्रों के कुछ विशिष्ट स्थानों में पहुँचने से उत्पन्न होती है।				 | 
			
			
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					अवरोहित					 :
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					भू० कृ० [सं० अवरोह+इतच्] १. जिसने अवरोह किया हो या जिसका अवरोह हुआ हो। नीचे आया या उतरा हुआ। २. अवनत। पतित।				 | 
			
			
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					अवरोही (हिन्)					 :
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					वि० [सं० अव√रुह्+णिनि] १. ऊपर से नीचे की ओर आने वाला। २. जो क्रम के विचार से ऊँचे से नीचे की ओर हो। (डिसेन्डिंग) जैसे—अवरोही स्वर। पुं० १. संगीत में आलाप, स्वर साधन आदि का वह प्रकार या रूप जिसमें क्रमशः ऊँचे स्वर के उपरांत नीचे स्वरों का उच्चारण होता है। आरोही का विपर्याय। २. वटवृक्ष।				 | 
			
			
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