शब्द का अर्थ
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					अवन					 :
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					पुं० [सं०√अव (रक्षण आदि)+ल्युट्-अन] १. प्रसन्न या संतुष्ट करना। २. प्रीति। प्रेम। ३. रक्षा करना। बचाना। स्त्री० [सं० अवनि] १. पृथ्वी। २. जमीन। भूमि। ३. मार्ग। रास्ता।				 | 
			
			
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					अवनत					 :
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					वि० [सं० अव√नम (झुकना)+क्त] [भाव० अवनति] १. झुका हुआ। नत। २. नम्र। ३. नीचे की ओर गिरा हुआ। पतित। ४. दुर्दशा की ओर बढ़ा हुआ। दुर्दशा-ग्रस्त। ‘उन्नत’ का विपर्याय।				 | 
			
			
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					अवनति					 :
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					स्त्री० [सं० अव√नम्+क्तिन्] [वि० अवनक, कर्त्ता अवनायक] १. नीचे की ओर जाना या झुकना। झुकाव। २. नम्रता। ३. दुर्दशा या दीन दशा में जाना। पतन। ४. कमी। घटाव। ह्रास।				 | 
			
			
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					अवनद्ध					 :
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					भू० कृ० [सं० अव√नह् (बाँधना)+क्त] १. किसी के साथ या नत्थी किया या बँधा हुआ। २. जड़ा या बैठाया हुआ। ३. ढका हुआ। पुं० ढोल या मृदंग की तरह का एक बाजा।				 | 
			
			
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					अवनमन					 :
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					पुं० [सं० अव√नम्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अवनमित] १. नीचे की ओर आने या झुकने की क्रिया या भाव। नत होना। २. गुण, बल, महत्त्व या मान घटना या कम होना। उतार। ३. ग्रह, नक्षत्र आदि का क्षितिज से नीचे की ओर जाना या होना। ४. किसी तल या स्तर का नीचे की झुकाव या बढ़ाव। (डिप्रेसन) जैसे—मेघों का अवनमन।				 | 
			
			
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					अवनयन					 :
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					पुं० [सं० अव√नी (ले जाना)+ल्युट्-अन] नीचे की ओर लाना या ले जाना।				 | 
			
			
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					अवना					 :
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					अ० [हिं० आना या पुराना रूप] १. अस्तित्व में आना, बनना या घटित होना। २. दे० ‘आना’। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					अवनाम					 :
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					पुं० [सं० अव√नम्+घञ्] =अवनमन।				 | 
			
			
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					अवनामक					 :
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					वि० [सं० अव√नम्+णिच्+ण्युल्-अक] १. अवनति करने या गिरानेवाला। उन्नायक का विपर्याय। २. जो अवनति, पतन या ह्रास की ओर प्रवृत्त हों। ३. नीचे की ओर गिरनेवाला। (फाँलिंग) जैसे—अवनायक मूल्य।				 | 
			
			
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					अवनासिक					 :
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					वि० [सं० ब० स०] झुकी हुई या चिपटी नाकवाला।				 | 
			
			
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					अवनाह					 :
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					पुं० [सं० अव√नह्(बाँधना)+घञ्] १. कसकर बाँधना। २. बंधन। ३. ढकना।				 | 
			
			
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					अवनि					 :
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					स्त्री० [सं० अव√अव (रक्षण आदि)+आनि] १. वह समस्त विस्तृत तल जिस पर मनुष्य रहता है और कार्य करता है। २. पृथ्वी। ३. उँगली। ४. एक प्रकार की लता।				 | 
			
			
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					अवनि-तल					 :
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					पुं० [ष० त०] जमीन की सतह। धरातल।				 | 
			
			
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					अवनि-पति					 :
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					पुं० [ष० त०] राजा।				 | 
			
			
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					अवनि-पाल					 :
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					पुं० [ष० त०] राजा।				 | 
			
			
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					अवनि-पालक					 :
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					पुं० [ष० त०] १. राजा। २. पहाड़। पर्वत।				 | 
			
			
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					अवनि-सुत					 :
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					पुं० [ष० त०] मंगल ग्रह।				 | 
			
			
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					अवनि-सुता					 :
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					स्त्री० [ष० त०] जानकी। सीता।				 | 
			
			
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					अवनिचर					 :
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					वि० [सं० अवनि√चर् (गति)+ट] जगह-जगह घूमता रहनेवाला। घुमक्कड़।				 | 
			
			
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					अवनिज					 :
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					पुं० [सं० अवनि√जन् (उत्पन्न होना)+ड] मंगल-ग्रह।				 | 
			
			
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					अवनिध्र					 :
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					पुं० [सं० अवनि√धृ (धारण करना)+ट] पर्वत। पहाड़।				 | 
			
			
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					अवनिप					 :
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					पुं० [सं० अवनि√पा (रक्षण)+क] राजा।				 | 
			
			
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					अवनी					 :
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					स्त्री० [सं० अवनि+ङीष्] दे० ‘अवनि’।				 | 
			
			
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					अवनींद्र					 :
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					पुं० [अवनि-इन्द्र, ष० त०] राजा।				 | 
			
			
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					अवनीप					 :
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					पुं० [सं० अवनी√पा(रक्षा)+क] राजा।				 | 
			
			
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					अवनीश					 :
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					पुं० [अवनी-ईश,ष०त०] राजा।				 | 
			
			
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					अवनीश्वर					 :
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					पुं० [अवनी-ईश्वर, ष० त०] =अवनीश।				 | 
			
			
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					अवनेजन					 :
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					पुं० [सं० अव√निज् (पवित्र करना)+ल्युट्-अन] १. प्रक्षालन्। धोना। २. आचमन। ३. श्राद्ध में वेदी पर कुश से जल छिड़कना।				 | 
			
			
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					अवन्निय					 :
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					स्त्री०=अवनि। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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