शब्द का अर्थ
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					अलक					 :
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					स्त्री० [सं०√अल्+क्वन्-अक] १. मस्तक के इधर-उधर के लटकते हुए बाल। २. घुँघराले तथा छल्लेदार बाल। ३. हरताल। ४. सफेद आक। ५. पागल कुत्ता। ६. महावर। ७. आठ से दस वर्ष तक की कन्या की संज्ञा।				 | 
			
			
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					अलक-प्रभा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] कुबेर की राजधानी। अलकापुरी।				 | 
			
			
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					अलक-रचना					 :
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					स्त्री० [सं० ष०त०] बालों के सँवारने तथा उनकी सुंदर लटें बनाना या उन्हें घूँघरदार या छल्लेदार बनाना।				 | 
			
			
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					अलक-लड़ैता					 :
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					वि० [सं० अलक-बाल+हिं० लाड़=दुलार] [स्त्री० अलकलडैती] दुलारा। लाड़ला (लड़का)।				 | 
			
			
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					अलक-संहति					 :
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					स्त्री० [ष० त०] सँवारे हुए घुँघराले बालों की पंक्तियाँ।				 | 
			
			
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					अलकत					 :
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					वि० [अ० अल्कत] १. (लेख) जो काटकर रद्द कर दिया गया हो। २. जो निकम्मा या निरर्थक ठहराया गया हो। रद्दी। पुं० [सं० अलक] महावर। उदाहरण—झाँई नाहिं जिनकी धरत अलकत है।—सेनापति।				 | 
			
			
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					अलकतरा					 :
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					पुं० [अं० अल्करतः] एक गाढ़ा तरल पदार्थ, जो पत्थर के कोयले को विशेष रासायनिक क्रिया द्वारा गलाने से बनता है।				 | 
			
			
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					अलकनंदा					 :
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					स्त्री० [सं० नन्द्+अच्,टाप्, अलक=नन्दा, कर्म० स०] १. एक नदी जो हिमालय से निकलकर गंगोत्री के पास गंगा में मिलती है। २. आठ से दस वर्ष के बीच की बालिका।				 | 
			
			
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					अलकसलोना					 :
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					वि० [सं० अलक-बाल+हिं० सलोना-अच्छा] दुलारा। लाड़ला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					अलका					 :
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					स्त्री० [सं० अलक+टाप्] १. आठ और दस वर्ष के बीच की बालिका। २. कुबेर की नगरी, अलकापुरी। ३. कुसुम विचित्रा नामक छंद।				 | 
			
			
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					अलका-पति					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] अलकापुरी का राजा, कुबेर।				 | 
			
			
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					अलकाउरि					 :
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					स्त्री०=अलकावलि। उदाहरण—अलकाउरि मुरि मुरि गौ मोरी।—जायसी।				 | 
			
			
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					अलकाधिप					 :
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					पुं० [सं० अलका-अधिप, ष० त०] =अलकापति।				 | 
			
			
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					अलकाब					 :
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					पुं० [अ० ‘लकब’ का बहु०] वे आदरसूचक शब्द या पद जिनका प्रयोग संबोधन के रूप में होता है।				 | 
			
			
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					अलकावलि					 :
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					स्त्री० [सं० अलक-अवलि, ष० त०] १. सँवारे हुए बालों की पंक्तियाँ। २. घुँघराले या छल्लेदार बाल।				 | 
			
			
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					अलकेश					 :
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					पुं० [सं० अलका-ईश, ष० त०] १. इंद्र। २. कुबेर।				 | 
			
			
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					अलक्त					 :
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					पुं० [सं० न-रक्त, न० ब० लत्व] १. कुछ वृक्षों से निकलने वाला एक प्रकार का लाल रस जो उसकी डालों या तनों पर जम जाता है। लाक, लाही, चपरा आदि इसके विभिन्न प्रकार या रूप हैं। २. उक्त लाख से तैयार किया हुआ रंग जिसे स्त्रियाँ पैरों में लगाती है। महावर।				 | 
			
			
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					अलक्त-राग					 :
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					पुं० [ष० त०] महावर का लाल रंग।				 | 
			
			
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					अलक्तक					 :
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					पुं० [सं० अलक्त+कन्]=अलक्त।				 | 
			
			
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					अलक्षण					 :
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					पुं० [सं० न० त०] [स्त्री० अलक्षणा] १. लक्षण अथवा चिन्ह का अभाव। चिन्ह या संकेत न मिलना। २. अशुभ या बुरा लक्षण। वि० [न० ब०] (पदार्थ या व्यक्ति) जिसमें अशुभ या बुरे लक्षण हों।				 | 
			
			
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					अलक्षणा					 :
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					वि० [सं० अलक्षण-टाप्] [स्त्री० अलक्षणी] अशुभ या बुरे लक्षणवाला।				 | 
			
			
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					अलक्षित					 :
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					भू० कृ० [सं० न० त०] १. जो लक्ष्य या ध्यान में न आया हो। २. जिसकी ओर लक्ष्य या ध्यान न गया हो। (अन-आब्जर्वड्) ३. जो दिखाई न दिया हो। ४. जिसका चिन्ह या संकेत न मिला हो।				 | 
			
			
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					अलक्ष्मी					 :
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					स्त्री० [सं० न० त०] १. लक्ष्मी का अभाव। दरिद्रता। गरीबी। २. दुर्भाग्य। ३. ऐसी स्त्री जिसमें अनेक अशुभ लक्षण हो।				 | 
			
			
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					अलक्ष्य					 :
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					वि० [सं० न० त०] जिस पर लक्ष्य या ध्यान न दिया गया हो, अथवा न दिया जा सकता हो।				 | 
			
			
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					अलक्ष्य-गति					 :
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					पुं० [ब० स०] १. वह जो अदृश्यरूप धारण करके चलता हो। २. वह जिसकी गति का कुछ पता न चलता हो।				 | 
			
			
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