शब्द का अर्थ
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					अर्गल					 :
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					पुं० [सं०√अर्ज् (प्रयत्न)+कलच्, बं० अगड़, पं० अग्गल, क० अगली, गुं० अगली, आगले, सिध, अगुल, मराठी० अगला-अगल] १. लकड़ी का वह डंडा जो किवाड़े बंदकरके, उन्हें खोलने से रोकने के लिए अंदर की ओर लगाया जाता है। अगरी। परिघ। २. लाक्षणिक रूप से वह अवरोधक तत्त्व जो किसी काम या बात को अच्छी तरह रोक रखने में समर्थ हो। (क्लाँग, उक्त दोनों अर्थो में) ३. किवाड़। ४. कल्लोल। लहर। ५. मांस। ६. एक नरक का नाम। ७. सूर्योदय के समय पूर्व या पश्चिम दिशा में दिखाई देने वाले रंग-बिरंगी बादल।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					अर्गला					 :
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					स्त्री० [सं० अर्गल+टाप्] १. दे०अर्गल। २. अवरोध। ३. रुकावट। ३. किवाड़ बंद करने की कील या सटकनी। ४. हाथी के पैर में बाँधा जाने वाला सिक्कड़। ५. दुर्गा सप्तशती के पाठ के पहले पढ़ा जाने वाला मत्स्य सूक्त नामक स्तोत्र।				 | 
			
			
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					अर्गलिका					 :
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					स्त्री० [सं० अर्गल+कन्-टाप्, ह्रस्व, इत्व] छोटी अर्गला। अगरी।				 | 
			
			
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					अर्गलित					 :
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					भू० कृ० [सं० अर्गला+इतच्] १. (दरवाजा) जिसमें अर्गल लगा हो या अर्गल से बंद किया गया हो। २. जिसके आगे कोई अवरोध या रुकावट लगाई गई हो।				 | 
			
			
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					अर्गली					 :
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					स्त्री० [सं० अर्गल+ङीष्] दे० ‘अर्गला’। स्त्री० [?] एक प्रकार की भेड़ जो पश्चिमी एशिया में पायी जाती है।				 | 
			
			
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