शब्द का अर्थ
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					अपह					 :
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					वि० [सं० अप√हन् (मारना)+ड] नाश करनेवाला। नाशक।				 | 
			
			
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					अपहत					 :
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					वि० [सं० अप√हन्+क्त] १. नष्ट किया हुआ। मारा हुआ। २. दूर किया या हटाया हुआ।				 | 
			
			
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					अपहरण					 :
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					पुं० [सं० अप√हृ (हरण करना)+ल्युट् अन] १. किसी की कोई चीज बलपूर्वक छीनकर ले जाना। २. रुपये वसूल करने या कोई स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को बल-पूर्वक कहीं से उठा ले जाना। (किडनैपिंग) ३. छिपाव। दुराव। ४. चुंगी, महसूल आदि बचाने के लिए छिपाकर माल ले जाना। (कौ०)				 | 
			
			
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					अपहरणीय					 :
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					वि० [सं० अप√हृ+अनीयर] १. (वस्तु या व्यक्ति) जिसका अपहरण किया जा सकता हो अथवा जिसका अपहरण होने को हो। २. गोपनीय।				 | 
			
			
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					अपहरना					 :
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					स० [सं० अपहरण] १. अपहरण करना। छीनना। २. लूटना। ३.चुराना। ४.कम करना। घटाना। ५.दूर या नष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					अपहर्ता (र्तृ)					 :
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					वि० [सं० अप√ह्र+तृच्] अपहरण करने या छीनने या हर लेनेवाला। २. लूटनेवाला। ३. छिपानेवाला।				 | 
			
			
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					अपहसित					 :
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					वि० [सं० अप√हस् (हँसना)+क्त] १. अकारण हँसनेवाला। २. जिसका अपहास या उपहास हुआ हो।				 | 
			
			
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					अपहस्त					 :
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					पुं० [सं० प्रा० स०] १. दूर फेंकना। २. हटाना। ३.लूटना। ४.अर्द्धचंद्र।				 | 
			
			
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					अपहस्तित					 :
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					वि० [सं० अपहस्त+णिच् क्त] १. गर्दन में हाथ देकर निकाला हुआ। अर्द्धचंद्रित। २. फेंका हुआ। ३.परित्यक्त।				 | 
			
			
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					अपहान					 :
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					पुं० [सं० अप√हा (त्याग)+क्त] १. परित्याग। २. कम होना। ३.गायब होना।				 | 
			
			
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					अपहानि					 :
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					स्त्री० [अप√हा+क्तिन्] दे० ‘अपहान’।				 | 
			
			
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					अपहार					 :
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					पुं० [सं० अप√हृ (हरण करना)+घञ्] [कर्ता अपहारक, भू० कृ० अपहृत] १. दूसरे की चीज छीनना। अपहरण करना। २. विधिक क्षेत्र में धोखे या बेईमानी से किसी के धन या संपत्ति पर अधिकार करना और उसे भोगना। (एम्बेजल्मेंट) ३.छिपाव। दुराव।				 | 
			
			
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					अपहारक					 :
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					वि० [सं० अप√हृ+ण्वुल्-अक] अपहरण करने, छीनने या लूटनेवाला। पुं० १. चोर। २. डाकू। ३. लुटेरा।				 | 
			
			
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					अपहारित					 :
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					भू० कृ० [सं० अप√हृ+णिच् क्त]=अपहृत।				 | 
			
			
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					अपहारी (रिन्)					 :
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					पुं० [सं० अप√हृ+णिनि] १. अपहरण करने या छीननेवाला। २. नाश करनेवाला।				 | 
			
			
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					अपहार्य					 :
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					वि० [सं० अप√ह्र+ण्यत्] १. (पदार्थ) जिसका अपहरण हो सके। जो छीना या लूटा जा सके। २. (व्यक्ति) जिसकी चीज छीनी या लूटी जा सके।				 | 
			
			
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					अपहास					 :
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					पुं० [अप√हस् (हँसना)+घञ्] १. अनुचित रूप से या अनुपयुक्त समय पर होने वाला हास्य। २. अनुचित या बुरी हँसी। उपहास।				 | 
			
			
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					अपहृत					 :
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					भू० कृ० [अप√हृ+क्त] १. (पदार्थ) जो छीना अथवा जिस पर जबरदस्ती अधिकार किया गया हो। २. (व्यक्ति) जिसकी चीज छीनी या लूटी गई हो।				 | 
			
			
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					अपहेला					 :
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					पुं० [सं० प्रा० स०] १. तिरस्कार। २. डाँट-फटकार। ३. घुड़की और झिड़की।				 | 
			
			
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					अपह्रव					 :
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					पुं० [सं० अप√ह्र (हटाना)+अप] १. कोई बात किसी से छिपाना। २. सच बात छिपाना। ३. टाल-मटोल। बहाना। ४. तृप्त या संतुष्ट करना। ५. प्रेम। ६. दे० ‘अपह्रति’।				 | 
			
			
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					अपह्रुति					 :
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					स्त्री० [सं० अप√ह्र+क्तिन्] १. दुराव। छिपाव। २. टाल-मटोल। बहानेबाजी। ३.एक काव्यालंकार जिसमें उपमेय का निषेध करके उपमान का स्थापन किया जाए। (कन्सीलमेंट) जैसे—(क) यह मुख नहीं चंद्रमा ही है। (ख) इन्हें मनुष्य मत समझो यह साक्षात् देवता ही हैं। इसके हेत्वापह्रति, कैतवापह्रति, परिहासापह्रुति, छेकापह्रति, भ्रांतापह्रुति, पर्यस्तापह्रति आदि अनेक भेद हैं।				 | 
			
			
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