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शब्द का अर्थ

अपरा  : स्त्री० [सं० अपर+टाप्] १. अध्यात्म या ब्रह्मविद्या को छोड़कर अन्य विद्या। २. लौकिक या पदार्थ-विद्या। ३. पश्चिम दिशा। ४. ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष की एकादशी।
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अपरांग  : पुं० [सं० अपर—अंग, ष० त०] गुणीभूत व्यंग्य का एक भेद। (साहित्य)
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अपराग  : पुं० [सं० अप√रञ्ज्+घञ्] १. प्रेम या राग का विरोधी भाव। २. वैर। शत्रुता। ३. अरुचि। ४. दे० ‘अपरक्ति’।
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अपराग्नि  : स्त्री० [सं० अपर-अग्नि, कर्म० स०] १. गार्हपत्य अग्नि। २. चिता की आग।
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अपराजित  : वि० [सं० न० त०] जो पराजित न हुआ हो। पुं० १. विष्णु। २. शिव।
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अपराजिता  : स्त्री० [सं० अपराजित+टाप्] १. विष्णुक्रांता लता। कौवाठोठी। २. कोयल। ३. दुर्गा। ४. शंखिनी आदि पौधे। ५. अयोध्या का एक नाम। ६ उत्तर-पूर्व विदिशा। ७. एक योगिनी। ८. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण, एक रगण, एक सगण, एक लघु और एक गुरु होता है।
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अपराजेय  : वि० [सं० न० त०] जो पराजित न किया जा सके। स्त्री० पराजित न होने का भाव। अपराजय।
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अपरांत  : पुं० [सं० अपरा-अंत, ष० त०] पश्चिम का देश या प्रांत।
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अपरांतक  : पुं० [सं० अपरांत+कन्] पश्चिम दिशा में स्थित एक पर्वत। (पुरा०)
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अपरांतिका  : स्त्री० [सं० अपरांत+कन्—टप्, इत्व] वैताल छंद का वह भेद जिसमें चौथी और पाँचवीं मात्राएँ मिलकर दीर्घ अक्षर बन जाती हैं।
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अपराद्ध  : वि० [सं० अप√राध् (सिद्धि)+क्त] १. (व्यक्ति) जिसने अपराध किया हो। २. (कार्य) जिसका आचरण कानून की दृष्टि में अपराध माना जाय।
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अपराध  : पुं० [सं० अप√राध्+घञ्] १. ऐसा अनुचित कार्य जिसने किसी का अपमान या हानि हो। (आफेन्स) २. कोई ऐसा अनुचित फलतः दंडनीय काम जो किसी विधि या विधान के विरुद्ध हो। ३. कोई अनुचित या बुरा काम। ४. दोष। ५. पाप। ६. भूल-चूक।
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अपराध-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] वह विज्ञान जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि लोग अपराध क्यों करते हैं और उनकी यह प्रवृत्ति कैसे ठीक हो सकती है। (क्रिमिनालजी)
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अपराध-स्वीकरण  : पुं० [ष० त०] न्यायाधीश अथवा किसी उच्च अधिकारी के सामने अपना किया हुआ अपराध स्वीकार करना। (कन्फेशन)
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अपराधशील  : वि० [ब० स०] (व्यक्ति) जो प्रायः और स्वभावतः अपराध करता रहता हो। (क्रिमिनल)
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अपराधि-साक्षी (क्षिन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] दे० ‘भेद-साक्षी’।
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अपराधिक  : वि० दे० ‘अपराधिक’।
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अपराधी (धिन्)  : वि० , पुं० [सं० अप√राध्+णिनि] १. वह जिसने अपराध किया हो। २. कानून की दृष्टि में ऐसा व्यक्ति जिसने अपराध किया हो।
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अपरामृष्ट  : वि० [सं० न० त०] १. जिसको किसी ने छुआ न हो। अछूता। २. अव्यवहृत। कोरा।
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अपरार्क  : वि० [सं० अपर—अर्क, कर्म० स०] सूर्य के समान तेजस्वी।
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अपरांर्द्ध  : पुं० [सं० अपर—अर्द्ध, कर्म स०] दूसरा या बादवाला आधा अंश। उत्तरार्द्ध।
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अपरावर्त्ती (तिन्)  : वि० [सं० परा√वृत् (बरतना)+णिनि, न० त०] १. न लौटनेवाला। २. पीछे न हटनेवाला। ३. किसी काम से मुँह न मोड़नेवाला। मुस्तैद।
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अपराह्ल  : पुं० [सं० अपर—अहन्, एकदेशि त० स०] १. दिन का वह भाग जो दोपहर या मध्याह्न के बाद आरंभ होता है। (पी०एम०) २. साधारण बोलचाल में तीसरा पहर।
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अपराह्ल  : पुं०=अपराह्ल।
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